अर्थव्यवस्था में मंदी के बीच अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ भी भारत की अनुमानित जीडीपी विकास दर घटाने वाला है। आईएमएफ़ में भारतीय मूल की प्रमुख अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि संस्था अगले महीने यह अनुमानित आँकड़ा जारी करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अकेला ऐसा इमर्जिंग मार्केट है जो इस तरह का चौंकाने वाला ट्रेंड दिखा रहा है। बता दें कि आईएमएफ़ ने भारत के लिए अक्टूबर महीने में अनुमान लगाया था कि 2019 में विकास दर 6.1 फ़ीसदी और 2020 में 7 फ़ीसदी रह सकती है।
आरबीआई सहित दूसरी संस्थाओं ने वित्त वर्ष 2020 के लिए विकास दर में गिरावट के अनुमान लगाए हैं। कुछ दिन पहले ही भारतीय रिज़र्व बैंक यानी आरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.1 फ़ीसदी से घटा कर 5 फ़ीसदी कर दिया है। इससे पहले दूसरी तिमाही की रिपोर्ट आई थी और इसमें यह 4.5 फ़ीसदी ही रही है। बता दें कि सरकारी एजेन्सी सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस यानी सीएसओ ने बीते दिनों इस साल की दूसरी छमाही के लिए जीडीपी वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत कर दी थी। सरकारी कंपनी स्टेट बैंक ने अपनी ताज़ा रपट में कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में जीडीपी वृद्धि दर घट कर 4.2 प्रतिशत पर आ सकती है।
एक निजी मीडिया समूह द्वारा आयोजित इंडिया इकॉनमिक कॉन्क्लेव में गोपीनाथ ने कहा, ‘यदि आप हाल ही में आने वाले आँकड़े को देखते हैं तो हम अपनी संख्याओं को संशोधित करेंगे और जनवरी में आँकड़े आएँगे और यह भारत के लिए काफ़ी गिरावट वाला संशोधन होने की संभावना है।’ हालाँकि उन्होंने ठीक-ठीक संख्या नहीं बतायी, लेकिन इतना ज़रूर कहा कि यह 5 फ़ीसदी से नीचे रहने की संभावना है।
कन्जंप्शन यानी सामान की खपत में गिरावट, निजी निवेश में कमी और निर्यात कम होना जीडीपी विकास दर में गिरावट के मुख्य कारण माने जा रहे हैं।
गोपीनाथ ने कहा कि भारत 2025 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को शायद ही हासिल कर पाएगा। उन्होंने कहा कि भारत को इसके लिए 10.5 फ़ीसदी की दर से विकास दर्ज करना होगा। भारत पिछले छह साल से क़रीब छह फ़ीसदी की विकास दर हासिल कर पाया है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए महत्वाकांक्षाएँ रखना अच्छा है और भारत को उस लक्ष्य को पाने के लिए सबकुछ करते रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यदि भारत को पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को पाना है तो सरकार को मिले ज़बरदस्त जनमत का इस्तेमाल करते हुए भूमि और श्रम बाज़ार जैसे ज़रूरी सुधार जैसे उपाय करने होंगे।
इसके साथ ही गोपीनाथ ने चेताया है कि भारत के लिए आर्थिक स्थिति चुनौतियों भरी है और यह निश्चित है कि राजकोषीय घाटे को 3.4 फ़ीसदी से नीचे रखने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। उन्होंने यह भी सुझाया कि भारत की समस्या वित्तीय क्षेत्र में गड़बड़ियाँ हैं और नीति निर्माताओं को इसका समाधान जितना जल्द हो सके करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आय को बढ़ाना चाहिए जिसमें किसानों के उत्पाद को बढ़ाना भी शामिल है। वैश्विक स्तर से तुलना करें तो भारत की कृषि उत्पादकता काफ़ी कम है।
मोदी के पूर्व सलाहकार ने भी कहा था- हालत ख़राब
सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीक रहे अरविंद सुब्रमणियन ने पिछले हफ़्ते कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुँच चुकी है। उनका यह कहना महत्वपूर्ण है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय विकास केंद्र के लिए एक शोध पत्र तैयार करते हुए उन्होंने यह लिखा। सुब्रमणियन ने कहा, ‘भारत की यह आर्थिक सुस्ती साधारण सुस्ती नहीं है, यह बहुत बड़ी सुस्ती है और भारतीय अर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुँच चुकी है।’
उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा था कि यह टीबीएस यानी ट्विन बैलंस सिस्टम के कारण हुआ है। बोलचाल की भाषा में कहें तो भारत में बैंकों ने जो कर्ज़ दिए, उसका बहुत बड़ा हिस्सा एनपीए बन चुका है, यानी उस पर बैंकों को ब्याज नहीं मिल रहा है, पैसा फँस गया है।
इसे हम इस तरह समझ सकते हैं। साल 2016 में नोटबंदी की वजह से बहुत सारा नकद पैसा बैंकों में जमा हो गया, बैंकों ने पैसे की अधिकता के कारण ग़ैर वित्तीय कंपनियों को बहुत सारा कर्ज़ दे दिया। इन ग़ैर वित्तीय कंपनियों ने रियल इस्टेट को कर्ज़ के रूप में बहुत बड़ी रकम दे दी।
अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है, बेरोज़गारी बेतहाशा बढ़ी है। बाज़ार में उत्पाद की माँग कम हुई है। लोगों की आय भी कम हुई है। सरकार ने पाँच साल में अर्थव्यवस्था को दोगुना कर पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा की है। लेकिन सवाल है कि गिरती अर्थव्यवस्था में यह कैसे संभव हो पाएगा