कोरोना वायरस महामारी के पहले से ही लोगों की नौकरियाँ जा रही थीं अब लॉकडाउन के बाद ने तो स्थिति भयावह कर दी है। लॉकडाउन से पहले 15 मार्च वाले सप्ताह में जहाँ बेरोज़गारी दर 6.74 फ़ीसदी थी वह तीन मई को ख़त्म हुए सप्ताह में बढ़कर 27.11 फ़ीसदी हो गई है। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई ने यह ताज़ा आँकड़ा जारी किया है। हालाँकि पूरे अप्रैल महीने में बेरोज़गारी दर 23.52 फ़ीसदी रही जो मार्च महीने में 8.74 फ़ीसदी रही थी।
कोरोना महामारी के बाद 24 मार्च को लॉकडाउन लगाए जाने के बाद देश में आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। शुरुआत में ज़रूरी उत्पादों के निर्माण और परिवहन के लिए छूट दी गई थी। हालाँकि बाद में जब कुछ ग़ैर ज़रूरी सामानों को छूट दी गई लेकिन तब न तो मज़दूर काम करने के लिए उपलब्ध हुए और न ही सामान लोडिंग और अनलोडिंग करने वाले मज़दूर। लॉकडाउन के दौरान बीच रास्ते में फँसे ट्रक चालक भी गाड़ियों को वहीं छोड़कर घर चले गए। जब पहले लॉकडाउन की 21 दिन की मियाद ख़त्म हुई तो इसे पहले तीन मई के लिए बढ़ा दिया गया और फिर 17 मई तक के लिए। ऐसे में लोगों के रोज़गार पर असर तो पड़ना ही है, चाहे वह शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र।
सीएमआईई की रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरों में बेरोज़गारी ज़्यादा बढ़ी है और ख़ासकर उन क्षेत्रों में जिन्हें कोरोना वायरस के ज़्यादा संक्रमण की वजह से रेड ज़ोन में रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार तीन मई को ख़त्म हुए सप्ताह में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर जहाँ 26.16 फ़ीसदी रही वहीं शहरी क्षेत्रों में यह दर 29.22 फ़ीसदी रही। इससे पहले 26 अप्रैल को ख़त्म हुए सप्ताह में यह दर ग्रामीण क्षेत्रों में 20.88 फ़ीसदी और शहरी क्षेत्रों में 21.45 फ़ीसदी थी।
अप्रैल के आख़िर में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी पुडुचेरी में 75.8 फ़ीसदी रही। इसके बाद तमिलनाडु में 49.8 फ़ीसदी, झारखंड में 47.1 फ़ीसदी, बिहार में 46.6 फ़ीसदी, हरियाणा में 43.2 फ़ीसदी, महाराष्ट्र में 20.9 फ़ीसदी, उत्तर प्रदेश में 21.5 फ़ीसदी और कर्नाटक में 29.8 फ़ीसदी रही।
इससे पहले 30 मार्च से 5 अप्रैल के दौरान यानी छह दिन में बेरोज़गारी दर बढ़कर 23.4 प्रतिशत हो गई थी। जबकि पूरे मार्च महीने में यह दर 8.7 फ़ीसदी थी। मार्च का यह आँकड़ा 43 महीनों में सबसे ज़्यादा था। बता दें कि बेरोज़गारी दर का आँकड़ा जुलाई 2017 से लगातार बढ़ता ही रहा है तब यह दर सिर्फ़ 3.4 फ़ीसदी थी।
बता दें कि लॉकडाउन जैसा कड़ा क़दम इसलिए उठाया गया है क्योंकि इस वायरस का इलाज नहीं ढूँढा जा सका है और अर्थव्यवस्था को बचाने से पहले लोगों की ज़िंदगियों को बचाने की ज़रूरत है। इसी कारण पूरी दुनिया भर के कई देशों में लॉकडाउन का सहारा लिया गया है। इस लॉकडाउन का असर अर्थव्यवस्था पर बुरी तरह पड़ रहा है। हालाँकि लॉकडाउन से पहले ही कोरोना वायरस जब काफ़ी तेज़ी से फैल रहा था तभी अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ने लगा था और आशंका जताई गई थी कि इसका असर काफ़ी ज़्यादा होगा। अब रिपोर्टों में कहा गया है कि दुनिया वैश्विक आर्थिक मंदी की तरफ़ बढ़ चुकी है।