भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां ही नहीं, घरेलू एजेन्सियां भी चिंता जता चुकी हैं। लगभग सबका मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था दिन बन दिन बद से बदतर होती जा रही है। इनका यह भी मानना है कि पहले जो अनुमान था, स्थिति उससे कहीं अधिक ख़राब होने जा रही है।
केअर रेटिंग्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर शून्य से 8.2 प्रतिशत तक नीचे जा सकती है। इसने पहले जीडीपी के शून्य से 6.4 प्रतिशत तक नीचे जाने का अनुमान लगाया था।
केअर रेटिेंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से कहा है कि जीडीपी की नई दर का अनुमान यह सोच कर लगाया गया है कि सरकार अब और कोई राहत स्कीम नहीं ला रही है।
मांग-खपत कम
उन्होंने यह भी कहा कि जीडीपी गिरने से पूंजीगत खर्च में भी कमी आएगी और इसका असर अगले बजट पर भी पड़ेगा। आय में कम वृद्धि होने की वजह से मांग और खपत भी कम होगी।
केअर रेटिंग्स की रिपोर्ट में आशा की किरण यह है कि इस साल की नीचे गिरी जीडीपी दर के बाद अगले वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है और जीडीपी की दर बढ़ सकती है।
बता दें कि इसके पहले दूसरी एजेन्सियों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था के नीचे गिरने का अनुमान लगाया था।
गोल्डमैन सैक्स
केअर रेटिंग्स के पहले अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 14.8 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यानी जीडीपी वृद्धि दर शून्य से 14.8 प्रतिशत से नीचे चली जाएगी। यह इसी कंपनी के पहले के अनुमान से कम है। पहले इस निवेश बैंक ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 11.8 प्रतिश सिकुड़ेगी।फ़िच
इसी तरह अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी फ़िच ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 10.5 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यह उसके पहले के अनुमान से बदतर स्थिति है। फ़िच रेटिंग्स ने पहले कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारत की जीडीपी शून्य से 5 प्रतिशत नीचे चली जाएगी।