अमेरिकी चुनौती से घिरे बजट 2025 में मध्यवर्ग और कॉरपोरेट की चांदी
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने आठवें केंद्रीय बजट में आयकर राहत देकर मध्यवर्ग के हाथ में नकदी का अनुपात तो बढ़ा दिया मगर सबसे गरीब और निचले तबके सहित निम्न मध्यम वर्ग की आशाओं पर पानी फेर दिया। वित्तमंत्री ने जहां अनेक वस्तुओं और सेवाओं के आयात पर सीमा शुल्क घटाया है वहीं अमेरिका से परमाणु समझौते के तहत दुर्घटना के दायित्व संबंधी प्रावधानों में कतर-ब्योंत की भी मंशा जताई है।
सवाल है कि ये कहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डाॅनल्ड ट्रम्प की भारत पर तटकर की मोटी दरें थोपने की धमकी से उपजी पहल तो नहीं है? इसी तरह सालाना 12 लाख रुपये तक कमाई को आयकर मुक्त करने सहित निजी आयकर प्रणाली को पुनर्निर्धारित करके मध्य वर्ग को राहत देने में एक लाख करोड़ रुपये के घाटे का दावा तो बजट भाषण में किया गया मगर कॉरपोरेट टैक्स की दर 22 फीसद से बढ़ाकर इसकी भरपाई की हिम्मत वित्तमंत्री की नहीं हुई। क्योंकि निजी पूंजी निवेश तो अब भी 21 से 24 फीसद के बीच अटका है जबकि कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती नए पूंजी निवेश के लिए पूंजीपतियों के हाथों में अधिक पैसा उपलब्ध कराना था। निजी पूंजी निवेश की धीमी दर ने सार्वजनिक पूंजी निवेश की दर भी पिछले पांच साल में दशमलव नौ फीसद घटा दी है। इसकी वजह कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से गिरी सरकारी राजस्व वसूली की दर से घटी आय है।
नए एयरपोर्ट या कॉरपोरेट प्रेम
बजट भाषण में सारा जोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कॉरपोरेट प्रेम के कारण निजीकरण और कॉरपोरेट का मुनाफा बढ़ाने पर ही आधारित है। बजट में घोषित 100 से अधिक नए हवाई अड्डों और हवाई पट्टियों के निर्माण की मंशा हो अथवा जहाजरानी उद्योग के विस्तार संबंधी उपाय, सभी का फायदा अंततः पूंजीपतियों की झोली में गिरेगा।
इसी तरह राज्यों में बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए 1.5 लाख करोड़ के फंड से भी केंद्र उनकी सार्वजनिक परिसंपत्तियों के माॅनिटाइजेशन अर्थात उन्हें निजी हाथों में सौंपने की दर तय करने पर ही है। इससे राज्यों के नए बनने वाले बुनियादी ढांचे के साथ ही वर्तमान राजमार्गों और पुलों आदि के प्रयोग पर भी टोल टैक्स वसूली शुरू हो जाएगी जिससे राज्य परिवहन निगमों की बसों में आम जनता को ज्यादा किराया देना पड़गा जिससे निजी कंपनियों का मुनाफा बढ़ेगा।
अलबत्ता गिग वर्करों, महिलाओं, स्टार्ट अप उद्यमों, सूक्ष्म,लघु एवं मझोले उद्योगों के लिए करमुक्ति, कर्ज, एवं कारोबारी वित्तीय सीमा और सामाजिक एवं पोषण सुरक्षा का दायरा बढ़ा कर बजट को जनहितैषी मुलम्मा पहनाने के लिए मोदी सरकार ने कांग्रेस के 2024 के चुनाव घोषणापत्र की नकल की है।
गौरतलब है कि आम चुनाव 2024 में 240 लोकसभा सीट ही जीत पाने पर एनडीए की कृपा से प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले साल जुलाई के बजट में भी नरेंद्र मोदी पांच साल में एक करोड़ अप्रेंटिसशिप और युवाओं की स्किलिंग करके कार्यकुशल बनाने का माॅडल कांग्रेस के घोषणापत्र से ही उधार लिया था। इससे साफ है कि सत्ता पाने के लिए कांग्रेस सहित विपक्षी दलों की भरपूर मजम्मत करने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को उनके कल्याणकारी उपायों के सहारे अपनी कॉरपोरेट प्रेमी छवि को सुधारना पड़ रहा है।
ताजा बजट में रक्षा मंत्रालय को सबसे अधिक 3.44 फीसद यानी 6.5 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसमें से मोटी राशि पूंजीगत मद में अर्थात हथियारों को स्वदेश में बनाने तथा नए हथियार बहुराश्ट्रीय कंपनियों से खरीदने पर खर्च होगी। स्वदेश में नए हथियार और रक्षा उपकरण बनाने का ठेका तो अब अधिकतर निजी कंपनियों को ही दिया जा रहा है जिनमें अडानी और अंबानी भी शामिल हैं। अलबत्ता प्रौद्योगिकी प्रधान अर्थात संवेदनशील रक्षा उपकरणों की खरीद में अबकी मोदी सरकार को अमेरिकी कंपनियों को तवज्जो देनी पड़ सकती है।
क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प तो प्रधानमंत्री मोदी से अपनी पहली ही बातचीत में रक्षा उपकरणों की खरीद अमेरिका से बढ़ाने की चेतावनी दे चुके हैं। ट्रम्प के दुबारा राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों नेताओं की कथित पहली बातचीत के सार्वजनिक किए गए अंशों से तो ऐसा ही प्रतीत होता है। इन अंशों के अनुसार ट्रम्प ने भारत को तटकर दरें घटाकर अमेरिका से विनिर्मित माल का आयात तथा रक्षा उपकरणों का आयात बढ़ाने को कहा है। ऐसा न करने पर उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ बताते हुए हमारे से अमेरिका में आयातित माल पर सौ फीसद तटकर थोपने की चेतावनी दी है।
अब देखना यही है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार डाॅलर में ही जारी रखने के मामले में घुटने टेक चुका भारत ट्रम्प की बाकी चेतावनियों पर अमल के बदले कुछ हासिल करने की कोशिश करेगा अथवा आत्मसमर्पण कर देगा। यहां पांच नए परमाणु बिजली घरों की स्थापना के ऐलान के सिलसिले में परमाणु रिएक्टर लगाने वाली कंपनी के दायित्व संबंधी प्रावधानों पर पुनर्विचार की बजट घोषणा को भी ट्रम्प के दबाव के सिलसिले में आंकना मौजूं है। क्योंकि डा. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार द्वारा किए गए ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर अमल पिछले 16 साल से परमाणु रिएक्टर लगाने वाली कंपनी के ही संपूर्ण दायित्व संबंधी भारतीय नियमों के कारण लटका हुआ है।
अमेरिकी तथा यूरोपीय देशों की परमाणु रिएक्टर लगाने कंपनियों में से कोई भी दुर्घटना की स्थिति में उसकी भरपाई का समूचा दायित्व वहन करने को तैयार नहीं है। इसी वजह से भारत-अमेरिकी शांतिपूर्ण परमाणु समझौते पर अमल और वहां के परमाणु रिएक्टर लगाकर भारत में नए परमाणु बिजली घरों का निर्माण डेढ़ दशक के बाद भी संभव नहीं हो पाया। देखना यही है कि इतने संवेदनशील संशोधन को विकसित भारत-समर्थ भारत की चाशनी में लपेट कर मोदी सरकार संसद में पारित करवाने और जनसुरक्षा की इतनी बड़ी चुनौती से जनता के दरबार में पार पाने में कैसे कामयाब होगी।