कोरोना वैक्सीन पर प्रशांत भूषण के ट्वीट को ट्विटर ने भ्रामक क्यों लिखा?

04:01 pm Jun 29, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

कोरोना वैक्सीन पर जाने माने वकील प्रशांत भूषण के ट्वीट को ट्विटर ने मिसलीडिंग यानी 'भ्रामक' क़रार दिया है। उन्होंने वैक्सीन के प्रति झिझक को लेकर ट्वीट किया था। उनके ट्वीट को लोगों ने सोशल मीडिया पर वैक्सीन लेने को हतोत्साहित करने वाला क़रार दिया। आलोचनाओं के बाद प्रशांत भूषण ने फिर से ट्वीट किया और इस बार एक बड़ा लेख ही साझा किया। यह समझाते हुए और उन तथ्यों का ज़िक्र करते हुए कि उनको वैक्सीन लेने के प्रति हिचक क्यों है। ट्विटर ने फिर से उनके ट्वीट को 'भ्रामक' बताया। इसके साथ ही ट्विटर ने यह भी लिखा कि 'वैज्ञानिकों और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश लोगों के लिए टीके सुरक्षित हैं।'

अपने ट्वीट को ट्विटर द्वारा ऐसा टैग किए जाने की जानकारी ख़ुद प्रशांत भूषण ने ही ट्वीट कर दी है।

आख़िर ऐसा प्रशांत भूषण ने क्या ट्वीट कर दिया कि ट्विटर को उसे भ्रामक लिखना पड़ा? इसके लिए उन्होंने क्या आधार दिया है? और क्या उनके द्वारा रखे गए तर्क सही हैं?

इसकी शुरुआत तब हुई जब उन्होंने अख़बार में एक छपी ख़बर की क्लिपिंग को ट्विटर पर पोस्ट किया। उस ख़बर में दिल्ली के गणेश नगर निवासी गंगा प्रसाद गुप्ता अपनी पत्नी की मौत के लिए ख़ुद को इसलिए दोषी ठहराते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी को वैक्सीन लगाने के लिए राजी किया था। उस ख़बर में गंगा प्रसाद दावा करते हैं कि वैक्सीन लेने के बाद उनकी पत्नी की तबीयत ख़राब हुई थी और 10 दिन बाद उनकी मौत हो गई। इसमें उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि इसके बाद मौत के मामले में जाँच करने कोई नहीं आया। प्रशांत भूषण ने उस पोस्ट में परिवार के आरोपों को कोट किया था और लिखा था कि सरकार वैक्सीन के विपरीत असर की न तो निगरानी कर रही है और न ही आँकड़े जारी कर रही है। 

हालाँकि ट्विटर ने 27 जून के उस ट्वीट पर 'भ्रामक' होने का टैग नहीं लगाया है, लेकिन इसके बाद 28 जून के ट्वीट पर लगाया है। 28 जून के उस ट्वीट में उन्होंने गंगा प्रसाद की पत्नी की मौत वाली ख़बर को रिट्वीट करते हुए लिखा था कि दोस्त और परिवार वाले मुझपर वैक्सीन के प्रति झिझक पैदा करने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने लिखा था कि वह अपनी स्थिति साफ़ करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी साफ़ किया कि वह वैक्सीन विरोधी नहीं हैं। 

उन्होंने ट्वीट में लिखा, 'लेकिन मेरा मानना ​​है कि प्रायोगिक और परीक्षण न किए गए टीकों के सार्वभौमिक टीकाकरण को बढ़ावा देना ग़ैर-ज़िम्मेदाराना है, खासकर युवा और कोविड से ठीक हुए लोगों के लिए।' उन्होंने तो यहाँ तक लिख दिया कि 'स्वस्थ युवाओं में कोविड के कारण गंभीर प्रभाव या मृत्यु की संभावना बहुत कम होती है। टीकों के कारण उनके मरने की संभावना अधिक होती है। कोरोना के ख़िलाफ़ प्राकृतिक रूप से आई प्रतिरोधक क्षमता वैक्सीन की तुलना में कहीं बेहतर है। वैक्सीन उनकी प्राकृतिक प्रतिरक्षा को नुक़सान भी पहुँचा सकते हैं।'

प्रशांत भूषण के इसी ट्वीट को पहली बार ट्विटर ने 'भ्रामक' बताया। ऐसा इसलिए कि 'टीकों के कारण मरने की संभावना अधिक' वाली उनकी बात को विशेषज्ञ सही नहीं मानते हैं। यूरोपी संघ की मेडिकल एजेंसी यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी यानी ईएमए से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक कहते रहे हैं कि वैक्सीन लेने के फ़ायदे ख़तरे से ज़्यादा हैं। ऐसा इसलिए कि वैक्सीन का गंभीर विपरीत असर नाममात्र के मामलों में ही होता है। 

भारत की ही बात करें तो देश में अब तक 32 करोड़ से ज़्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है जिसमें से एक की मौत केंद्र सरकार ने वैक्सीन की वजह से होना माना है।

जून के मध्य में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाली एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्युनाइज़ेशन यानी एईएफ़आई कमेटी ने यह रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट के अनुसार 31 गंभीर दुष्परिणाम के मामलों का मूल्यांकन किया गया था। इसमें 28 लोगों की मौत हुई थी। रिपोर्ट में कहा गया कि इनमें से एक की मौत कोरोना वैक्सीन के दुष्परिणाम के कारण हुई है। 31 मार्च को एक 68 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराकें ली थीं। और बाक़ी लोगों की मौत दूसरे कारणों से हुई है। 

यूरोपीय देशों में ख़ून का थक्का जमने के जो मामले आए थे वह भी वैक्सीन के दुष्परिणामों में से एक है। हालाँकि इसके बारे में कहा गया कि लाखों लोगों में से एक में इस तरह के दुष्परिणाम सामने आए हैं। कुछ ऐसा ही भारत में आए दुष्परिणामों के बारे में भी कहा गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की कमिटी एडवर्स इवेंट फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन यानी एईएफ़आई ने पिछले दिनों अध्ययन में पाया था कि भारत में प्रति दस लाख में 0.61 लोगों में क्लॉटिंग यानी ख़ून जमने की समस्या आयी थी। पैनल ने कहा था कि उसने 700 में से 498 'गंभीर मामलों' का अध्ययन किया और पाया कि केवल 26 मामले थ्रोम्बोम्बोलिक मामले के रूप में रिपोर्ट किए गए थे। यानी ऐसा लाखों-करोड़ों में किसी एक के साथ हो सकता है। लिहाज़ा डरने की ज़रूरत नहीं है।

दुनिया भर के वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि कोरोना से ठीक हुए लोगों को भी वैक्सीन लगाई जानी चाहिए क्योंकि शरीर में कोरोना के ख़िलाफ़ बनी एंटीबॉडी धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगती है।

इन्हीं तथ्यों के आधार पर ट्विटर ने उनके ट्वीट पर कार्रवाई की। लेकिन इस कार्रवाई के बाद फिर से उन्होंने एक लेख लिखा और उसको ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि वह इन बातों से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि कुछ विषयों में वैज्ञानिक नज़रिये भी व्यवसायिक, राजनीतिक और मीडिया के अपने हित से प्रभावित होते हैं। इसके लिए उन्होंने कई उदाहरण दिए। 

उनके इस ट्वीट को भी ट्विटर ने भ्रामक बता दिया। बाद में प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर कहा कि ट्विटर ने उनके ट्वीट को भ्रामक बताया है और उनके खाते को 12 घंटों के लिए ब्लॉक कर दिया। भले ही ट्विटर पर उन्होंने इस तरह की सफ़ाई दी हो लेकिन अब तक उनके तर्क और तथ्यों के समर्थन में एक भी वैज्ञानिक, महामारी रोग विशेषज्ञ या फिर टीके के जानकार लोग नहीं आए हैं। जाहिर तौर पर फ़िलहाल तो कोरोना को विज्ञानिक तरीक़ों से ही हराया जा सकता है और वैज्ञानिकों के पास फ़िलहाल इन वैक्सीन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।