पीएम वर्चुअल मीटिंग कर सकते हैं तो NEET, JEE परीक्षाएं वर्चुअल क्यों नहीं?

10:24 am Aug 30, 2020 | प्रेम कुमार - सत्य हिन्दी

केंद्र सरकार जेईई और एनईईटी परीक्षाएं हर हाल में करवाने पर अडिग है और छात्रों की तमाम समस्याओं  को अनदेखा करते हुए उनकी तमाम आपत्तियों को खारिज कर रही है। पर छात्रों की दिक्क़तें अपनी जगह हैं। लेकिन इसके साथ ही कई तरह के सवाल भी उठते हैं और संवदेनशीलता का मुद्दा भी उठता है। 

छात्रों के प्रति संवेदनहीन क्यों

करीब 26 लाख छात्रों और उनके परिजनों समेत तकरीबन 1 करोड़ लोगों को कोरोना से जुड़ी हर छोटी-बड़ी ख़बर जितना परेशान कर रही है, उसे महसूस करने के लिए संवेदना का होना बहुत ज़रूरी है।

इसी संवेदना की आस आज छात्रों को है। कोविड-19 से जुड़ी ख़बरों का प्रभाव कम नहीं हो रहा है क्योंकि आए दिन यह बड़ी, और भी बड़ी बेचैनी की वजह बनती जा रही है। 

कोरोना से जुड़ी ताज़ा खबरों पर ग़ौर करें: 

  • तमिलनाडु से कांग्रेस सांसद हरिकृष्णन वसंत कुमार की कोरोना की वजह से मौत
  • संसद सत्र शुरू होने के 72 घंटे पहले हर सांसद को कराना होगा कोविड-19 टेस्ट
  • 1 लाख से ज्यादा कोरोना वाला देश का 10 वां प्रदेश बना असम
  • ओडिशा सरकार JEE-NEET परीक्षार्थियों को सेंटर तक पहुंचाने ठहराने का इंतजाम करेगी
  • भीड़ में जाने का डर सता रहा है 26 लाख परीक्षार्थियों को
  • 2 विधायकों के कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद पंजाब के सीएम सेल्फ क्वारंटीन
  • दुबई में आईपीएल खेलने गयी टीम सीएसके के गेंदबाज और कई स्टाफ को कोरोना का संक्रमण 

सांसदों का कोरोना टेस्ट ज़रूरी

कोरोना से जुड़ी हर ख़बर जेईई-एनईईटी  के परीक्षार्थियों की धड़कनें बढ़ाने वाली हैं। मगर, इस ख़बर ने तो हर किसी को चौंका दिया है कि संसद सत्र शुरू होने से पहले हर सांसद को कोविड-19 टेस्ट कराना ज़रूरी है। चौंकाया इसलिए है कि ऐसा ही एहतियात देश के आम लोगों के लिए क्यों नहीं बरता जा रहा है! 

जेईई-एनईईटी के परीक्षार्थी और उनके अभिभावक सोच रहे हैं कि छात्रों के लिए भी परीक्षा की तारीख से पहले तक कोविड-19 टेस्ट क्यों नहीं अनिवार्य कर दिया गया।

ऐसा क्यों है कि नीति निर्माताओं की जान को स्पेशल माना जा रहा है और जो छात्र देश के भविष्य हैं उनकी जान के साथ खिलवाड़ करने की केंद्र सरकार ने ठान ली है

देश के सांसद की जान बेशकीमती है। मगर, छात्रों की जान तो अनमोल है। देश के सांसद कानून बनाते हैं तो छात्र देश का भविष्य होते हैं।

12 गुणा कम जगह में बैठेंगे परीक्षार्थी

2 लाख 61 हजार 360 वर्ग फीट क्षेत्रफल वाले पार्लियामेंट के दोनों सदनों में 788 सदस्य हैं। इनमें 245 राज्यसभा में और 543 लोकसभा में। इसका मतलब यह हुआ कि हरेक सांसद के लिए 331.675 वर्गफीट उपलब्ध है। यह क्षेत्रफल तकरीबन 20 x 16 वर्गफीट के कमरे के क्षेत्रफल के बराबर है। इतने बड़े कमरे में एनईईटी-जेईई के 24 परीक्षार्थियों के लिए बैठने की व्यवस्था हो सकती है। 6 बेंच-डेस्क वाली दो जोड़ियाँ कमरे में बन सकती हैं।

मानव संसाधन मंत्रालय के निर्देश मानें तो एक कमरे में अगर 12 परीक्षार्थी ही बैठे, तो इसका मतलब होगा कि एक सांसद के मुकाबले परीक्षार्थी को 12 गुणा छोटी जगह बैठने को मिलेगी।

संसद भवन के भीतर जो सुविधाएं होती हैं वह निश्चित रूप से परीक्षा भवन में नहीं हो सकतीं। इसके बावजूद परीक्षार्थियों की जिन्दगी से क्यों खिलवाड़ किया जा रहा है यह सवाल कम और चिंता ज्यादा है।

वर्चुअल परीक्षा क्यों नहीं

सवाल यह भी है कि जब कॉरपोरेट घराने नौकरी के लिए इंटरव्यू तक वर्चुअल कर रहे हैं तो परीक्षा वर्चुअल कराने की सोच सरकार के पास क्यों नहीं है

माननीय न्यायाधीश वर्चुअल सुनवाई कर सकते हैं, प्रधानमंत्री वर्चुअल मीटिंग कर सकते हैं और यहाँ तक कि स्कूल-कॉलेज सब वर्चुअल है। ऐसे में परीक्षा वर्चुअल क्यों नहीं हो सकती

यूजीसी गाइडलाइन्स

सुप्रीम कोर्ट यूजीसी के उस गाइडलाइन को सही ठहराता है जिसमें बगैर परीक्षा दिए किसी को प्रोमोट नहीं किया जा सकता। मगर, वर्चुअल परीक्षा कराने की ज़िम्मेदारी पर खामोशी है। यूजीसी और सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चुप हैं। क्या इसलिए कि छात्रों में और उनके अभिभावकों के पास वो ताकत नहीं है जो सुविधाभोगी वर्ग के पास है 

आम दिनों की तरह न ट्रेनें चल रही हैं और न ही हवाई जहाज। सड़कों पर अंतरराज्यीय बसें भी नहीं चल रही हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि देश के स्कूल-कॉलेज सब बंद हैं।

स्कूल-कॉलेज बंद क्यों

अगर परीक्षा देने के लिए छात्र स्कूलों में बने सेंटरों तक जा सकते हैं तो नियमित कक्षा के लिए वे स्कूल क्यों नहीं पहुँच सकते तो क्या इसका मतलब यह है कि स्कूल-कॉलेज खोल दिए जाने चाहिए और जो अब तक बंद रखे गये थे वह ग़लत हैं

एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पहुँचने पर लोगों को क्वारंटीन में भेजा जाना बदस्तूर जारी है। प्रांतीय सीमाओं को कोरोना का डर है तो प्रांत के भीतर जिले की सीमाओं को यह डर क्यों नहीं है क्या कोरोना प्रांत-जिला या देश-परदेश समझने लगा है

छात्रों का सहारा स्ट्रीट फ़ूड

कोविड-19 के दौर में यह जोखिम भरा है। सड़क पर इडली-डोसा खा लेना, मोमोज़ का स्वाद चख लेना या फिर चाय-समोसे से भूख भुला देना छात्रों की फितरत रही है। छात्र इस स्वभाव को छोड़ नहीं सकते। और, अगर इस स्वभाव पर वे टिके रहते हैं तो इसका मतलब होगा कोरोना के मकड़जाल में फंसने को तैयार रहना। क्या यह महत्वपूर्ण बात नहीं है

कोरोना से सिर्फ नेता डरें, छात्र नहीं!

कोरोना की वजह से राजस्थान में चुनी हुई सरकार को विधानसभा का सत्र बुलाए जाने का आदेश नहीं दे रहे थे राज्यपाल। तरह-तरह की शर्तें लगा रहे थे। क्यों क्योंकि, उन्हें जनप्रतिनिधियों की जान की फिक्र थी!  मध्यप्रदेश के स्पीकर को भी ऐसी ही फिक्र हुई थी जब 26 मार्च तक विधानसभा का सत्र स्थगित कर दिया गया था। 

हालांकि यह स्थगन अदालती हस्तक्षेप से निष्प्रभावी हो गया था और तय फ्लोर टेस्ट से पहले ही कमलनाथ सरकार ने इस्तीफा दे दिया। 24 मार्च को लॉकडाउन से पहले अकेले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शपथ ले ली।

2 जुलाई को 28 मंत्रियों को शपथ दिलायी गयी। इसके लिए संक्षिप्त सत्र बुलाना पड़ा। काम खत्म होते ही सत्र स्थगित। ये सब कोरोना के खौफ़ के उदाहरण हैं। सवाल यह है कि क्या कोरोना से सिर्फ नेता डरें, छात्रों को डरने की जरूरत नहीं है

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोरोना से संक्रमित हो गये। उत्तर प्रदेश में दो केंद्रीय मंत्री की जान चली गयी। देश के गृहमंत्री तक इसकी चपेट में आए।

देश की ज्यादातर विधानसभाएं कोरोना के इस दौर में ज़रूरी वजहों से ही बहुत थोड़े दिनों के लिए चली हैं। सबको कोरोना का डर है सिर्फ बच्चे ना डरें- यह हम अपने बच्चों से कैसी अपेक्षा पाल रहे हैं छात्रों की जान की फिक्र छात्रों से ज्यादा सरकार को होनी चाहिए जिसे जनता ने चुनकर भेजा है। 

संवेदना ऐसी चीज नहीं होती कि वह नेताओं के लिए हो, छात्रों के लिए ना हो। निस्संदेह सांसदों की जान बेशकीमती है लेकिन छात्रों की ज़िन्दगी तो अनमोल है।