सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रचार के लिए राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के संस्थापक शरद पवार के नाम और तस्वीरों के कथित इस्तेमाल पर गुरुवार को अजित पवार खेमे को फटकार लगाई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने अजित पवार गुट को शनिवार तक इस पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। याचिका के जरिए एनसीपी के बंटने के बावजूद शरद पवार की फोटो के लगातार इस्तेमाल के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा- “अब आप एक अलग राजनीतिक दल हैं। आपने उसके साथ न रहने का निर्णय लिया है। तो उनकी तस्वीर का इस्तेमाल क्यों... अब अपनी पहचान के साथ जाएं।'' अदालत ने कहा, ''हमें एक स्पष्ट और बिना शर्त शपथपत्र की जरूरत है कि शरद पवार के नाम, तस्वीरों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।'' इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट 19 मार्च को करेगा।
कोर्ट को यह बात तब कहना पड़ी जब शरद पवार समूह ने एक आवेदन दायर सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी दी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि अजीत पवार गुट मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए शरद पवार के नाम और फोटो का दुरुपयोग कर रहा है। अजीत पवार ने एनसीपी से बगावत करते हुए अलग पार्टी बना ली और पार्टी के नाम और प्रतीक पर दावा किया।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने अजीत गुट को वास्तविक एनसीपी के रूप में मान्यता दी। चुनाव आयोग ने अपने आदेश में अजीबोगरीब तर्क देते हुए कहा था- “अजीत पवार गुट को विधायकों के बहुमत का समर्थन प्राप्त है। इसीलिए अजीत पवार को एनसीपी के नाम और चुनाव चिह्न 'घड़ी' का इस्तेमाल करने का हक है।'' चुनाव आयोग ने शरद पवार गुट को पार्टी का नाम 'एनसीपी-शरदचंद्र पवार' आवंटित किया।
शरद पवार गुट ने चुनाव आयोग के अजीबोगरीब फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले समूह को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के रूप में मान्यता देने के चुनाव आयोग के 6 फरवरी के आदेश के खिलाफ शरद पवार की याचिका पर अजीत पवार के नेतृत्व वाले गुट से जवाब मांगा था।
यह पहला मौका नहीं था, जब चुनाव आयोग ने ऐसा फैसला दिया था। इससे पहले चुनाव आयोग ने शिवसेना के टूटने पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न दे दिया था। यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। शिवसेना की स्थापना उद्धव ठाकरे के पिता बाला साहेब ठाकरे ने की थी। बाद में शिंदे ने बगावत कर अलग गुट बना लिया। शिंदे ने भाजपा से समझौता किया और महाराष्ट्र में सरकार बना ली।