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ममता का ख़त, बाँग्लादेश के साथ पीएम की वार्ता में नहीं बुलाने पर आलोचना क्यों?

ममता का ख़त, बाँग्लादेश के साथ पीएम की वार्ता में नहीं बुलाने पर आलोचना क्यों?

किसी देश के साथ द्विपक्षीय वार्ता में जब केंद्र को ही वार्ता करने का अधिकार होता है तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री आख़िर इस पर आपत्ति क्यों जता रही हैं?

बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के साथ पीएम मोदी की द्विपक्षीय वार्ता में शामिल नहीं करने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नाराज़गी जताई है। उन्होंने खुद को आमंत्रित नहीं करने पर केंद्र सरकार की आलोचना की है। ममता ने इसको लेकर सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ख़त लिखा है। 

पश्चिम बंगाल की सीएम ने केंद्र और बांग्लादेश के बीच जल बंटवारे पर बातचीत पर आपत्ति जताई है। उन्होंने पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ संबंधों का ज़िक्र किया है और कहा, 'राज्य सरकार की राय और परामर्श के बिना इस तरह के एकतरफ़ा विचार-विमर्श और चर्चा न तो स्वीकार्य है और न ही ज़रूरी।'

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में दोनों नेताओं ने तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन तथा 1996 की गंगा जल संधि को नया रूप देने पर चर्चा की। बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए एक तकनीकी टीम जल्द ही बांग्लादेश का दौरा करेगी।

समझौते के अनुसार, भारत तीस्ता नदी के पानी के प्रबंधन और संरक्षण के लिए एक बड़ा जलाशय और उससे संबंधित बुनियादी ढाँचा बनाने के लिए तैयार है।

हालाँकि, इससे ममता बनर्जी नाराज़ हैं। वह लंबे समय से जल बंटवारे के समझौते का विरोध कर रही हैं और फरक्का बैराज पर राज्य में कटाव, गाद और बाढ़ की समस्या के लिए आरोप लगा रही हैं।

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कहा, 'इस तरह के समझौतों के प्रभाव से पश्चिम बंगाल के लोग सबसे ज्यादा पीड़ित होंगे। मुझे पता चला है कि भारत सरकार भारत बांग्लादेश फरक्का संधि (1996) को नया रूप देने की प्रक्रिया में है, जो 2026 में समाप्त हो रही है। यह एक संधि है जो बांग्लादेश और भारत के बीच पानी के बँटवारे के सिद्धांतों को रेखांकित करती है और जैसा कि आप जानते हैं कि इसका पश्चिम बंगाल के लोगों की आजीविका को बनाए रखने पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है और फरक्का बैराज में जो पानी मोड़ा जाता है, वह कोलकाता बंदरगाह की नौवहन क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है।'

उन्होंने भारत-बांग्लादेश एंक्लेव, भारत-बांग्लादेश रेलवे लाइन और बस सेवाओं के आदान-प्रदान की ओर इशारा करते हुए कहा, 'पश्चिम बंगाल राज्य ने पहले कई मुद्दों पर बांग्लादेश के साथ सहयोग किया है। हालांकि, पानी बहुत कीमती है और लोगों की जीवन रेखा है। हम ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकते जिसका लोगों पर गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।'

उन्होंने लिखा, 'ऐसा लगता है कि बैठक में भारत सरकार ने बांग्लादेश में तीस्ता के पुनरुद्धार के लिए भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय सहयोग का प्रस्ताव रखा है। मैं इस तथ्य से हैरान हूँ कि भारत की ओर से नदी को उसके मूल स्वरूप में बहाल करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।'

उन्होंने कहा, 'इन कारणों से पिछले कुछ वर्षों में तीस्ता में पानी का प्रवाह कम हो गया है और अनुमान है कि अगर बांग्लादेश के साथ पानी साझा किया जाता है तो उत्तर बंगाल के लाखों लोग गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। इसलिए बांग्लादेश के साथ तीस्ता का पानी साझा करना संभव नहीं है।'

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