विश्व हिन्दू परिषद राम मंदिर के बहाने हिन्दुत्व की लहर बनाने के लिए गांव-गांव तक पहुँचना चाहती है। उसकी रणनीति है साल 1983 में एकात्मता यज्ञ यात्रा या कलश यात्रा जैसा वातावरण तैयार करना। इससे हिन्दुत्व की जो लहर बनेगी, परिषद उसके बस पर अपना जनाधार बढ़ा सकेगी। इसका तात्कालिक सियासी फ़ायदा इसकी भ्रातृ संस्था भारतीय जनता पार्टी को अगले आम चुनाव में मिल सकता है। इसके साथ ही परिषद भी मजबूत होगी।
हल्दी से शुरुआत
परिषद ने हल्दी और अक्षत हर गाँव, कस्बे, शहर में भेजना शुरू कर दिया है। यह न्योता है राम मंदिर आन्दोलन से जुड़ने का। अयोध्या में होने वाल सन्त समागम और धर्मसभा में आने के लिए लोगों को न्योता दिया जा रहा है। यह शुरुआत भर है। सन्त समागम या धर्मसभा के बाद यह मामला रुक नहीं जाएगा। विहिप इस बल पर एक आन्दोलन खड़ा करना चाहती है। यह वैसा ही होगा जैसा 1983 में हुआ था, यानी कलश यात्रा।क्या थी कलश यात्रा
ख़ुद को हिन्दुओं की पैरोकार कहने वाले इस संगठन ने 1983 में पूरे देश में एक बहुत ही बड़ी यात्रा निकाली थी, जिसे एकात्मता यज्ञ यात्रा या कलश यात्रा कहा गया था। इसके तहत बड़े-बड़े ट्रकों में गंगा का जल बहुत ही बड़े कलश में रख कर पूरे देश में घुमाया गया था। गंगा जल के साथ भारत माता की तस्वीर भी थी।इसके तीन चरण थे। पहले चरण में नेपाल की राजधानी काठमांडू से भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के रामेश्वरम तक 5,500 किलोमीटर की यात्रा निकाली गई थी। इसे पशुपति रथ कहा गया था। दूसरे चरण हरिद्वार से कन्याकुमारी तक महादेव रथ निकाला गया था। तीसरे चरण में गंगासागर से सोमनाथ तक कपिल रथ निकाला गया था।अलग-अलग जगहों पर इन रथों को जोड़ने के लिए स्थानीय स्तर पर कई रथ निकाले गए थे।
उस समय विहिप के अध्यक्ष मेवाड़ के राणा भगवत सिंह और महासचिव हरमोहन लाल थे। अशोक सिंहल उस समय इसके बहुत बड़े नेता नहीं थे। पर इस मुहिम के बाद वे कद्दावर नेता बन कर उभरे। परिषद का कहना था कि यह लोगों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने के लिए किया गया था। खुले तौर पर राम मंदिर की बहुत बातें नहीं की गई थीं। बस हर रथ पर भारत माता की तस्वीर रखी गई थी।
कुछ शहरों में सिमटी विहिप कलश यात्रा के बहाने दूरदराज़ के गाँवों तक पहुँचने में कामयाब रहा। पहली बार उसकी एक अखिल भारतीय पहचान बनी। राष्ट्रीय एकता के बहाने उसने हिन्दुत्व की भावना मजबूत की। उसने राम मंदिर पर चर्चा किये बग़ैर उसके लिए ज़मीन तैयार कर दी।
यात्रा के समय कुछ लोगों ने दबे-छुपे शब्दों में यह ज़रूर कहा था कि इसके बहाने हिन्दुत्व का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और उसके दूरगामी असर हो सकते हैं। लेकिन यात्रा के दौरान कहीं कोई दंगा-फ़साद नहीं हुआ। मुसलमान-बहुल इलाक़ों में भी ये रथ बग़ैर किसी विरोध के घूमते रहे।पर साल 1986 आते आते इस हिन्दूवादी संगठन ने अपना असली रंग दिखाया, तेवर तीखे किए और राम मंदिर बनाने की बात ज़ोर-शोर से उठाने लगा। वह यह मुद्दा पहले भी उठाता रहता था पर पहले कोई उसकी सुनने वाला नहीं था। अब उसकी मौजदूगी दर्ज़ की जाने लगी थी, माँग पर लोगों का ध्यान जाने लगा था। वह कट्टरता से बात करने लगा था।
अयोध्या के कारसेवकपुरम में रखे हुए तराशे गये पत्थर।
विहिप इस बार राम मंदिर का नाम खुल कर ले रही है। कोई दुराव-छिपाव नही। वह इस भावनात्मक मुद्दे को उछालने में गौरव भी महसूस कर रही है। लखनऊ में जगह-जगह पोस्टर लगे हैं, 'राम लला के वास्ते, खाली कर दो रास्ते'। इसके स्टिकर बाँटे जा रहे हैं।
विश्व हिन्दू परिषद की रणनीति साल 1992 जैसा बड़ा और आक्रामक आन्दोलन खड़ा करने की है। वह गाँव-गाँव तक पहुँच कर राम मंदिर की बात करना चाहता है। इसी बहाने हिन्दुत्व का बड़ा आधार तैयार करना चाहता है।
लेकिन साल 2018 और 1983 में बहुत अंतर है। गंगा में काफ़ी पानी बह चुका है। राम मंदिर के नाम पर अब तक कोई बहुत बड़ा आन्दोलन खड़ा नहीं हुआ है। साल 1992 को दुहराना शायद इस बार मुमक़िन न हो। लेकिन विहिप कोशिश तो करेगी ही।