अमेरिका ने क्यों दी नसीहत, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे भारत?

05:23 pm Dec 13, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर एक अमेरिकी आयोग द्वारा भारत के गृह मंत्री अमित शाह पर प्रतिबंध लगाए जाने की पैरवी करने के बाद अब अमेरिका के विदेश विभाग ने भारत को नसीहत दी है। इसने कहा है कि संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए भारत अपने देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे। अमेरिका का यह वही विदेश विभाग है जिसको अमेरिकी आयोग सिफ़ारिश भेजता है कि धार्मिक स्वतंत्रता का पालन नहीं करने पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिए। इसी आयोग ने अमित शाह के मामले में प्रतिबंध की बात की थी। 

अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट यानी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने गुरुवार को कहा, ‘नागरिकता संशोधन विधेयक के संबंध में हम घटनाक्रमों पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं। धार्मिक स्वतंत्रता और क़ानून के तहत समान व्यवहार हमारे दोनों लोकतंत्रों के मूल सिद्धांत हैं।’ इसके साथ ही प्रवक्ता ने यह भी कहा, ‘अमेरिका भारत से भारत के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने का आग्रह करता है।’

बहरहाल, नागरिकता संशोधन विधेयक अब राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद क़ानून बन गया है। बता दें कि नागरिकता संशोधन क़ानून में 31 दिसंबर 2014 तक देश में आने वाले इसलामिक राष्ट्र पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसमें से मुसलिमों को बाहर रखा गया है। इसी बात को लेकर इसका भारत में भी ज़बरदस्त विरोध हो रहा है।

लेकिन जब यह विधेयक लोकसभा में पास हुआ था तब अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग यानी यूएससीआईआरएफ़ ने कहा था कि यह विधेयक 'ग़लत दिशा में एक ख़तरनाक मोड़' है। इसके साथ ही इसने यह भी कहा था कि यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा 'धार्मिक आधार' वाले इस विधेयक को पास कर दिया जाता है तो इसके लिए अमित शाह और दूसरे प्रमुख भारतीय नेताओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जाए।

यूएससीआईआरएफ़ ने बयान जारी कर कहा था, ‘...सीएबी ग़लत दिशा में एक ख़तरनाक मोड़ है; यह भारत के धर्मनिरपेक्ष बहुलवाद और भारतीय संविधान के उस समृद्ध इतिहास के ख़िलाफ़ है, जो आस्था की परवाह किए बिना क़ानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है।’

इसने कहा था कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के साथ-साथ चल रहे सीएबी की प्रक्रिया की शुरुआत ने आशंका जताई है कि लाखों मुसलिम अपनी नागरिकता गँवा देंगे।

वैसे तो यूएससीआईआरएफ़ की सिफ़ारिशें लागू करना बाध्यकारी नहीं है। हालाँकि, इसकी सिफ़ारिशों पर अमेरिकी सरकार और विशेष रूप से विदेश विभाग विचार करता है। विदेश विभाग को धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए विदेशी संस्थाओं और व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार है।

ऐसे में अमेरिकी विदेश विभाग का ताज़ा बयान काफ़ी बड़ा संकेत देता है। इससे एक संकेत तो साफ़ मिलता है कि अमेरिका इससे खफा है। यदि ऐसा नहीं होता तो जब तब ऐसे बयान नहीं आते।

पहले हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी ने भी नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर चिंता व्यक्त की थी। इसने कहा था कि यह देखते हुए कि नागरिकता के लिए कोई भी ‘धार्मिक परीक्षा’ बहुलवाद को कम करता है, जो भारत और अमेरिका दोनों के लिए मुख्य साझा मूल्य हैं। कांग्रेस कमेटी ने इस मुद्दे पर द न्यूयॉर्क टाइम्स का एक लेख भी साझा किया था। 

तब यूएससीआईआरएफ़ की प्रतिक्रिया पर विदेश मंत्रालय को बयान जारी कर सफ़ाई देनी पड़ी थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा था कि इस पर यूएससीआईआरफ़ का बयान न तो सही है और न ही ज़रूरी। उन्होंने यह भी कहा था, 'संयुक्त राज्य अमेरिका सहित हर देश को अपनी नागरिकता को मानने और मान्य करने और विभिन्न नीतियों के माध्यम से इस विशेषाधिकार का उपयोग करने का अधिकार है। यूएससीआईआरएफ़ द्वारा व्यक्त की गई स्थिति उसके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए आश्चर्यजनक नहीं है। हालाँकि, यह अफ़सोसजनक है कि उसने केवल अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर निर्णय लिया है, जिससे साफ़ है कि उसको इस पर कम जानकारी है और वास्तविक स्थिति का बिल्कुल पता नहीं है।’