मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ने पर क्या देश को गुमराह कर रहे हैं आदित्यनाथ ?

05:53 pm Jan 15, 2020 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुसलमानों के बारे में एक नया विवादस्पद बयान दे दिया है। उन्होंने कहा है कि मुसलमानों को विशेष अधिकार दिए जाते हैं, ख़ास सुविधाएँ दी जाती हैं, इस कारण उनकी आबादी कई गुणा बढ़ गई है। उन्होंने मंगलवार को कहा कि आज़ादी के बाद से देश में मुसलमानों की जनसंख्या 7-8 गुणा बढ़ी है।  यह कह कर बीजेपी के इस फ़ायर ब्रांड नेता ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। क्या सचमुच आज़ादी के बाद से अब तक मुसलमानों की तादाद 7-8 गुणा बढ़ी है 

थोड़ी सी पड़ताल करने पर पता चलता है कि यह सच से परे है। आज़ादी के ठीक पहले यानी 1947 में देश की कुल जनसंख्या 39 करोड़ थी। इसमें हिन्दुओं की तादाद 20,61,17,326 और मुसलमानों की 9,20,58,096 थी। 

आज़ादी के पहले, आज़ादी के बाद

आज़ादी के बाद 1947 में भारत की जनसंख्या 33 करोड़ आँकी गई। उसी समय पाकिस्तान की आबादी 6 करोड़ आँकी गई थी, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश भी शामिल था।

आज़ादी के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी। उस समय भारत की जनसंख्या 36,10,88,000 थी। इसमें मुसलमानों की जनसंख्या 9.80 प्रतिशत थी। 

इसके बाद यह लगातार बढ़ती गई। साल 1961 की जनगणना में देश में मुसलमानों की तादाद  10.69 प्रतिशत हो गई तो 1971 में यह 11.21 प्रतिशत थी। इसके बाद 1991 की जनणगना में देश में मुसलिम आबादी 12.61 प्रतिशत थी, जो 2001 में बढ़ कर 13.43 प्रतिशत हो गई। अंतिम जनगणना यानी 2011 में भारत में मुसलमानों की आबादी 14.2 प्रतिशत थी। ये आँकड़े सेन्सस ऑफ़ इंडिया के हैं। 

1951 से लेकर अब तक की जनगणनाओं पर सरसरी निगार डालने से भी यह साफ़ हो जाता है कि मुसलमानों की जनसंख्या 9.80 प्रतिशत से बढ़ती हुई 14.23 प्रतिशत पर पहुँच गई। यानी, कुल मिला कर देश की आबादी में मुसलमानों के हिस्से में 4.43 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है।

कुल संख्या कितनी बढ़ी

मुसलमानों की कुल आबादी 1952 में 3,58,56.047 थी। यह बढ़ती हुई 1961 में 4,69.98,120 तो 1971 में 6,14,48,696 हो गई। इसके बाद 1981 के जनगणना में देश में मुसलमानों की कुल आबादी 7,75,57,852 थी जो 1991 में 10,25,86,957 हो गई। इसके बाद की जगणना के समय यानी 2001 में देश में 13,81,59,437 मुसलमान थे। अंतिम जनगणना यानी 2011 में देश में मुसलमानों की तादाद 17,22,45,158 पाई गई।

लेकिन यह याद रखना होगा कि इस दौरान पूरे देश की जनसंख्या निरंतर बढ़ी है। यह 1951 में देश की जनसंख्या 1951 में 36 करोड़ थी तो 2011 में 121 करोड़ हो गई। यानी इस दौरान देश की जनसंख्या लगभग लगभग 3 गुणा बढ़ी है। 

वृद्धि दर में कमी

योगी आदित्यनाथ इस बात को नजरअंदाज़ कर गए कि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि की दर पहले से कम हो रही है, हालाँकि वह अभी भी हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर से ज़्यादा है।

एक रिसर्च रिपोर्ट (हिन्दू-मुसलिम फ़र्टिलिटी डिफ़्रेन्शियल्स: आर. बी. भगत और पुरुजित प्रहराज) के मुताबिक़ 1998-99 में दूसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के समय जनन दर (एक महिला अपने जीवनकाल में जितने बच्चे पैदा करती है) हिन्दुओं में 2.8 और मुसलमानों में 3.6 बच्चा प्रति महिला थी. 2005-06 में हुए तीसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (Vol 1, Page 80, Table 4.2) के अनुसार यह घट कर हिन्दुओं में 2.59 और मुसलमानों में 3.4 रह गयी थी।

नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे यानी एनएफ़एचएस 2015-16 के सर्वे में पाया गया है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के प्रजनन दर में अंतर पहली बार कम हुआ है।

कम होती प्रजनन दर

प्रजनन दर का मतलब है कोई औरत अपने जीवन काल में औसतन कितने बच्चे पैदा करती है। एनएफएचएस 2005-06 में पाया गया था कि मुसलमानों की प्रजनन दर 3.4 थी जबकि हिन्दुओं में यह 2.6 बच्चे थी। इस तरह दोनों समुदायों के बीच 30.8 प्रतिशत का अंतर पाया गया था। लेकिन 2015-16 के सर्वे में यह अंतर 23.8 प्रतिशत हो गया।

प्रजनन दरों के अंतर में कमी

चालीस साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि दोनों समुदायों के बीच प्रजनन दर के अंतर में कमी आई है। आज़ादी के समय मुसलमानों की प्रजनन दर हिन्दुओं के प्रजनन दर से 10 प्रतिशत अधिक थी। यह अंतर 1970 के दशक में बढ़ने लगी कि क्योंकि हिन्दुओं में गर्भ निरोधक उपाय किए जाने लगे। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन दर में अंतर 1990 के दशक में 30 प्रतिशत था। जनगणना और एनएफएचएस सर्वे दोनों  से ही यह साफ़ है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के प्रजनन दर में अंतर यहीं रुक गया।