ऐसे समय जब राजनीतिक विरोधियों और सरकार के आलोचकों का मुँह बंद करने के लिए अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट (यूएपीए) के दुरुपयोग की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग कार्यालय ने इस क़ानून पर चिंता जताई है।
ऑफ़िस ऑफ़ द हाई कमिश्नर ऑफ युनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स (ओसीएचसीआर) ने बुधवार को जारी एक बयान में यूएपीए की तीखी आलोचना करते हुए इसमें संशोधन की बात कही है।
उसने बयान में कहा है,
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हम अपनी इस माँग को एक बार फिर दुहराते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों और मानकों को ध्यान में रखते हुए यूएपीए में संशोधन किया जाए।
ओसीएचसीआर के बयान का अंश
इसने कहा है, "इसके साथ ही हम यह अपील भी करते हैं कि जब तक यूएपीए में संशोधन नहीं हो जाता है, तब तक इस क़ानून या किसी और क़ानून के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सिविल सोसाइटी और मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश न लगाया जाए।"
विरोध क्यों?
संयुक्त राष्ट्र के इस संगठन ने यूएपीए की आलोचना करते हुए कहा है कि "आतंकवादी गतिविधियों की परिभाषा बहुत ही अस्पष्ट है, इसके आधार पर लोगों को लंबे समय तक बगैर मुक़दमा चलाए रखा जा सकता है और इसके तहत ज़मानत मिलना बहुत ही मुश्किल है। इसके तहत दोषी साबित होने तक निर्दोष मानने के नियम का भी उल्लंघन होता है।"
ओसीएचसीआर ने इसके साथ ही कहा है कि
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यूएपीए का इस्तेमाल कर जम्मू-कश्मीर व भारत के दूसरे हिस्सों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और आलोचकों को कुचला जा रहा है।
ओसीएचसीआर के बयान का अंश
संयुक्त राष्ट्र की इस एजेन्सी ने इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ की गिरफ़्तारी की आलोचना करते हुए उन्हें रिहा करने को कहा है।
दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और ओसीएचसीआर पर हमला बोला है।
भारत का तीखा जवाब
भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, "संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के प्रवक्ता का बयान आधारहीन है। इस बयान से यह भी पता चलता है कि भारत सीमा पार आतंकवाद का जिस तरह से सामना कर रहा है और उससे हमारे लोगों के मानवाधिकार जिस हद तक प्रभावित हो रहे हैं, उसका इन्हें अंदाज़ा नहीं है।"
विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र एजेन्सी पर पक्षपात करने का आरोप लगाया है। बयान में कहा गया है,
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आतंकवादी समूहों को ओएचसीएचआर की ओर से हथियारबंद समूह कहना, इनके पक्षपाती रवैए को दर्शाता है। एक लोकतांत्रिक देश के नाते हम मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर प्रतिबद्ध हैं। भारत सीमा पार के आतंकवाद को रोकने के लिए हर क़दम उठाएगा।
विदेश मंत्रालय के बयान का अंश
विदेश मंत्रालय ने यूएपीए में संशोधन की माँग को सिरे से खारिज करते हुए इसे ज़रूरी बताया है। बयान में कहा गया है, ''राष्ट्रीय सुरक्षा के क़ानून जैसे, यूएपीए एक्ट, 1967 को हमारी संसद ने भारत की संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया है। बयान में जिस गिरफ़्तारी की बात कही गई है, वह भारत के क़ानून के अनुसार है। हम ओएचसीएचआर से आग्रह करते हैं कि वह आतंकवाद और मानवाधिकार को लेकर अपनी समझ और बेहतर करे।''