कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश को बुरी तरह तोड़कर रख दिया है लेकिन शायद हमारी अक्ल अभी भी दुरुस्त नहीं हुई है। कोरोना के मामले 1 लाख से कम क्या हुए, हजारों लोग छुट्टी मनाने शिमला पहुंच गए।
इस भीड़ के पहुंचने के लिए इन लोगों से ज़्यादा जिम्मेदार हिमाचल की सरकार है जिसने बिना आरटी-पीसीआर टेस्ट के राज्य में किसी को भी आने की छूट दे दी है। बस नाम मात्र का लॉकडाउन या कोरोना कर्फ्यू है। लेकिन जब हजारों लोग वहां पहुंच गए हैं तो ऐसे लॉकडाउन का क्या मतलब है।
हालात ये हैं कि शिमला में गाड़ियों का लंबा काफिला पहुंच गया और इस वजह से सड़कों पर कई किमी लंबा जाम लग गया।
लोगों के तर्क
अब इस मसले के अंदर कई बाते हैं। जैसे- हर साल गर्मियों की छुट्टी में बाहर जाने वाले लोग पिछले साल कोरोना और लॉकडाउन की वजह से नहीं जा पाए, इस साल के लिए तैयार थे तो दूसरी लहर आ गई। इस लहर के थमने तक वे इंतजार नहीं कर सके और निकल पड़े। उनका कहना है कि शहरों में जबरदस्त गर्मी है और साल भर की थकान को मिटाने का यही एक मौक़ा होता है।
दूसरी बात ये है कि लोगों के बड़ी संख्या में पहुंचने से पिछले सीजन में भयंकर घाटा उठा चुके होटल और पयर्टन के कारोबारियों की जान में जान आई है।
लेकिन हमें सोचना होगा कि डॉक्टर्स और तमाम फ्रंट लाइन वॉरियर्स ने अपनी जान जोखिम में डालकर देश को बचाया है। ऐसे में हमें कम से कम उनकी मेहनत, मुश्किलों का ध्यान तो रखना चाहिए।
वैक्सीन लगवाना हो ज़रूरी
हिमाचल प्रदेश की सरकार को आरटी-पीसीआर टेस्ट तो ज़रूरी करना ही चाहिए इसके अलावा जिन लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज़ नहीं लगी हैं, उन्हें भी प्रदेश में नहीं आने देना चाहिए। ऐसे में जब देश के कई इलाक़ों से लोग वहां पहुंचेंगे तो कोरोना संक्रमण के बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।
वैज्ञानिक और सरकार भी तीसरी लहर के आने की बात कह चुके हैं लेकिन इसे रोकने के लिए इतनी कड़ाई तो होनी ही चाहिए कि टूरिज्म वाली जगहों पर उन्हीं लोगों को आने दिया जाए जिन्हें वैक्सीन की दोनों डोज़ लग चुकी हैं, जिससे पर्यटन उद्योग फिर से जिंदा भी हो सके और संक्रमण का ज़्यादा ख़तरा भी न हो। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है और यह सीधे-सीधे आफत को दावत देने जैसा है।
बात सिर्फ़ शिमला की नहीं है, इसी तरह देश के दूसरे पर्यटक स्थलों पर भी जाने की लोग कोशिश करेंगे और वहां भीड़ लग जाएगी। अच्छा यह होगा कि लोग वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवा लें और दिसंबर के आख़िर तक जब अधिकतर आबादी को दोनों डोज़ लग चुकी होंगी तब ही घूमने के लिए बाहर निकलें।