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धारा 370 हटने से आतंकवाद खत्म हुआः शाह, क्या सचमुच, जानिए हकीकत

धारा 370 हटने से आतंकवाद खत्म हुआः शाह, क्या सचमुच, जानिए हकीकत

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया। उनका कहना है कि धारा 370 की वजह से कश्मीरी युवकों में अलगाववाद के बीज पनपे। अमित शाह की इन बातों और दावों में कितना दम है, उसका विश्लेषण जरूरी है। पढ़ियेः

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को एक किताब के विमोचन के मौके पर कहा कि धारा 370 ने कश्मीर के युवाओं के मन में अलगाववाद के बीज बोए और इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने न केवल घाटी में आतंकवाद को खत्म किया है बल्कि पूरे ईको  सिस्टम को भी नष्ट कर दिया है,जो इसका समर्थन कर रहा था।

उन्होंने कहा- “वर्षों तक, देश चुपचाप देखता रहा क्योंकि इस क्षेत्र में हिंसा फैली हुई थी। धारा 370 के निरस्त होने के बाद, आतंकवाद की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे साबित होता है कि धारा 370 से ही आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा था।”

अमित शाह का यह बयान अनायास ही नहीं आया है। जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बन चुकी है। उसका रवैया केंद्र के प्रति अभी लचीला ही है। जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का फैसला मोदी सरकार को करना है, कोर्ट का आदेश है, करना पड़ेगा। लेकिन इस बहाने से अमित शाह और पूरी मोदी सरकार अपनी छवि बनाने और कश्मीर को लेकर लगे दाग को धोने की कोशिश में भी हैं। जिस तरह जम्मू कश्मीर को धारा 370 के तहत स्वायत्तता और सुविधाएं मिली हुई थीं, ठीक उसी तरह तमाम पहाड़ी राज्यों मसलन उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर में नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश आदि में विशेष व्यवस्थाएं आज भी लागू हैं। नागालैंड में तो मोदी सरकार ने उस संगठन से समझौता किया, जिसका अपना झंडा है, जिसका अपना संविधान है। लेकिन जम्मू कश्मीर हमेशा दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहा। 

पीएम मोदी ने 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 को रद्द करने की घोषणा की। जिससे पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर को कुछ हद तक स्वायत्तता मिली हुई थी। धारा 35A, जो विशेष संपत्ति अधिकार प्रदान करता था, उसे भी खत्म कर दिया गया। केंद्र ने जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया और नई दिल्ली के नियंत्रण में लाया गया।

सच तो यह है कि दशकों से धारा 370 को निरस्त करना हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का एजेंडा रहा है। आप उनका लोकसभा चुनाव के किसी भी साल का घोषणापत्र देख लें। उनमें यह लिखा होता था कि वे जब भी सत्ता में आये तो जम्मू कश्मीर में धारा 370 और धारा 35ए को खत्म कर देंगे। दक्षिणपंथियों का लंबे समय से तर्क रहा है कि इस संवैधानिक प्रावधान ने जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ का पूर्ण एकीकृत हिस्सा बनने से रोक दिया, इससे अलगाववादी मंसूबे जीवित रहे। इससे उग्रवाद और आतंकवाद को बढ़ावा मिला। मोदी ने 8 अगस्त, 2019 को राष्ट्र के नाम संदेश में कहा भी था- "धारा 370 और 35ए ने जम्मू कश्मीर को अलगाववाद, आतंकवाद, भाई-भतीजावाद और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं दिया है।"

कश्मीर में मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध स्वाभाविक था। जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों ने राज्य की स्वायत्तता खत्म करने को सही नहीं माना। बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए, सरकार ने निर्णय की घोषणा से पहले के दिनों में कश्मीर के दर्जनों राजनीतिक नेताओं को घर में नजरबंद कर दिया और उसके बाद के महीनों में, हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया। महीनों तक इंटरनेट बंद रखा गया और सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि हिन्दू बहुल इलाके जम्मू में इसका स्वागत हुआ।

क्या आतंकवाद खत्म हुआ

धारा 370 खत्म हुए पांच साल से ज्यादा हो चुके हैं। केंद्र सरकार आतंकवाद की घटनाएं कम होने का दावा कर रही है।द हिंदू अखबार के संकलित डेटा के मुताबिक, 2021, 2022 और 2023 में कश्मीर में क्रमशः 126, 103 और 29 आतंकवादी हमले हुए। इस साल जनवरी से जुलाई के बीच यह आंकड़ा घटकर सिर्फ पांच रह गया। हालाँकि, कश्मीर में आतंकवादी हमलों में गिरावट के साथ-साथ जम्मू क्षेत्र में हमलों में वृद्धि हुई है, जिसे 2000 के दशक की शुरुआत में आतंकवाद मुक्त घोषित किया गया था।

जैसे ही सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में आतंकवादियों पर कथित नियंत्रण हासिल किया, जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी हमलों की कुछ हाई प्रोफाइल घटनाएं हुईं, जिनमें मुख्य रूप से सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया। ऐसा जम्मू क्षेत्र में पहले नहीं हो रहा था। हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों में मारे गए सुरक्षा बलों में से चालीस प्रतिशत जम्मू क्षेत्र में थे।


आखिर आतंकवादियों का ध्यान कश्मीर से जम्मू की ओर होने की क्या वजह है? कुछ लोगों ने इसे 2019 के बाद से कश्मीर में सरकार के बढ़े हुए आतंकवाद विरोधी अभियानों की सफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 12 जून 2023 को मीडिया से कहा था कि “जिस तरह से आतंकियों पर कश्मीर में सुरक्षा बलों का दबाव बढ़ रहा है, आतंकी अपना ध्यान जम्मू पर करने को मजबूर हुए, लेकिन वे यहां सफल नहीं होंगे।” जितेंद्र उधमपुर से बीजेपी सांसद हैं। जितेंद्र सिंह के बयान का आशय यही है कि कश्मीर में आतंकी हमले कम हुए लेकिन वे जम्मू में बढ़ गये। अब यहां रुककर अमित शाह के गुरुवार के बयान पर गौर करें। धारा 370 और 35ए के हटने से अगर कश्मीर में आतंकवाद 70 फीसदी तक कम हुआ मान लिया जाए तो वो फिर जम्मू में क्यों बढ़ गया। सवाल है कि मोदी सरकार जम्मू में आतंकी घटनाएं क्यों नहीं रोक पा रही। इसका मतलब साफ है कि जम्मू कश्मीर लद्दाख को लेकर मोदी सरकार का फैसला सही नहीं ठहराया जा सकता।

कश्मीर की बजाय जम्मू में आतंकवाद की घटनाएं बढ़ने के अपने नतीजे भयानक हो सकते हैं। जम्मू की आबादी को देखते हुए - खासतौर पर कश्मीर घाटी में मुस्लिम आबादी के विपरीत, जम्मू की आबादी का मामला पेचीदा है। क्योंकि जम्मू में हिंदू, मुस्लिम, गुज्जर और बकरवाल शामिल हैं। किसी भी आतंकी हमले के बाद जम्मू क्षेत्र में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने की संभावना हमेशा बनी रहती है। लेकिन कश्मीर में ऐसा नहीं है। वहां किसी भी आतंकी घटना के बाद साम्प्रदायिक हिंसा नहीं होती।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व पुलिस प्रमुख एस.पी. वैद ने एक इंटरव्यू में कहा था- "जम्मू में हमले करने वाले लोग "सामान्य आतंकवादी नहीं हैं। वे अत्यधिक प्रोफेशनल और अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं... वे अफगान युद्ध के अनुभवी हैं और उन्हें आतंकवादी हमलों को अंजाम देने और क्षेत्र में शांति भंग करने के लिए आईएसआई (पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी)  ने भेजा है। वे अमेरिका निर्मित एम-4 राइफल और चीनी कवच-भेदी गोलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे आधुनिक हथियारों से लैस हैं।" वैद ने कहा था केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति चिंताजनक है।

जम्मू कश्मीर में रोजगार के वादे का क्या हुआ

अमित शाह ने अपने ताजा भाषण में आतंकवाद खत्म होने का दावा तो किया लेकिन यह नहीं बताया कि मोदी सरकार वहां बेरोजगारी कितना खत्म कर पाई है, जिसका वादा किया गया था। जम्मू-कश्मीर में नौकरियां पैदा करने और निवेश आकर्षित करने के मोदी सरकार के वादे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। राष्ट्रीय औसत 6.1 प्रतिशत की तुलना में केंद्र शासित प्रदेश में बेरोजगारी 26.6 प्रतिशत है। निवेश आकर्षित करने के लिए कई योजनाओं की कई घोषणाएं की गई हैं, लेकिन जमीन पर बहुत कुछ नहीं बदला है।

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