नफ़रत में पागल वहशी भीड़ ने झारखंड में तबरेज़ अंसारी नाम के नौजवान को बेहद बेरहमी से पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। तबरेज़ की दो महीने पहले ही शादी हुई थी। अब आप एक तरफ़ भीड़ के खूंखार चेहरे को रखिए और दूसरी तरफ़ उसकी पत्नी के रोते हुए चेहरे को। जिसके हाथों की मेहंदी अभी सूखी ही होगी। तबरेज़ की उम्र सिर्फ़ 22 साल थी और अभी उसने अपनी पत्नी के साथ सुनहरे जीवन के कई सपने देखे होंगे लेकिन वहशी भीड़ ने उसके और उसकी पत्नी के सारे सपनों को रौंद दिया।
जरा आप, इंसानियत की नज़र से उसकी पत्नी के बारे में सोचिए, तबरेज़ के आस-पास की उम्र की होगी। दोनों ने दो ही महीने पहले कितने सारे अरमान सजाए होंगे, एक-दूसरे के साथ कुछ यादगार पल बिताए होंगे। ख़ुशहाल जीवन के सपने बुने होंगे। लेकिन दो ही महीने में सब कुछ बिख़र गया। सब ख़त्म हो गया।
तबरेज़ की पत्नी शाइस्ता परवीन कहती है, ‘मेरे शौहर जमशेदपुर से आ रहे थे। मुसलिम होने के नाते उनको बहुत बेरहमी से मारा गया। मेरा कोई भी नहीं है। मेरी सास भी नहीं है, मेरे ससुर भी नहीं हैं, मेरा देवर भी नहीं हैं, मेरा आगे-पीछे कोई नहीं है। मेरा शौहर ही मेरा सहारा था, अब मैं किसके सहारे जियूँगी, मुझे इंसाफ़ चाहिए।’
ख़बरों के मुताबिक़, तबरेज़ के माता-पिता की मौत हो गई थी। उसने बड़ी मेहनत से ख़ुद को खड़ा किया होगा। जीवन भर दुखों का सामना किया होगा और यह सोचा होगा कि शादी के बाद वह सुखी जीवन जी सकेगा। लेकिन बाइक चोरी के आरोप में भीड़ ने उसे इस कदर पीटा कि उसका ख़ुशहाल जीवन शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया।
सवाल यह है कि क्या भारत में क़ानून का राज पूरी तरह ख़त्म हो चुका है कि महज बाइक चोरी के आरोप में भीड़ ख़ुद को सबसे शक्तिशाली मानकर किसी को भी सरेआम इतनी दर्दनाक सजा देगी।
बताया जाता है कि भीड़ ने तबरेज़ को तब तक पीटा जब तक वह बेहोश नहीं हो गया। तबरेज़ के चाचा मक़सूद आलम ने कहा कि उन्होंने तबरेज़ से पुलिस स्टेशन के लॉक-अप में बात की थी। तब वह बहुत कमज़ोर दिख रहा था और बात भी नहीं कर पा रहा था।
परिजनों का आरोप है कि तबरेज़ को पूरी रात पीटा गया और सुबह पुलिस के हवाले किया गया। तबरेज़ के रिश्तेदारों ने कहा कि उन्होंने पुलिस से तबरेज़ का सही इलाज कराने के लिए कहा था लेकिन पुलिस ने उनकी कोई मदद नहीं की।
आपने सोशल मीडिया पर वायरल तबरेज़ के वीडियो को देखा होगा तो आपको यह ज़रूर लगा होगा कि ‘जय श्री राम’ और ‘वंदे मातरम’ को बदनाम करने वाले कुछ लोग इस कदर बुजदिल हैं कि सैकड़ों लोगों की भीड़ एक नौजवान को खंभे से बांधकर घंटों तक पीटती है, तब तक पीटती है जब तक वह मरने की हालत में न पहुँच जाए।
तबरेज़ अपनी जान की भीख माँगता है, गिड़गिड़ाता है, रोता है, मार खाते-खाते बदहवास हो जाता है लेकिन बेरहम भीड़ उससे जय श्री राम और जय हनुमान का नारा लगवाती है। जान बचाने को तबरेज़ दोनों नारे लगाता है, बार-बार लगाता है, शायद उसकी आंखों में उसकी नवविवाहिता पत्नी का चेहरा रहा होगा। शायद वह सोच रहा होगा कि इन नारों को लगाने से उसकी जान बच जाएगी लेकिन वहशी भीड़ तो उसकी जान लेने पर आमादा थी और वह जान लेकर ही मानी।
अब उस भीड़ को बचाने के लिए आगे आने का आरोप लग रहा है झारखंड पुलिस पर। झारखंड की पुलिस ने मरने से पहले तबरेज़ का यह कबूलनामा तो करवा लिया कि उसने बाइक चुराने की कोशिश की थी और तभी ग्रामीणों ने उसे पकड़ लिया। लेकिन सोशल मीडिया पर चीख-चीखकर गवाही दे रहा वीडियो उसे नहीं दिखाई दिया कि किस तरह तबरेज़ के जिस्म को नोचा गया।
भीड़ की क्रूरता देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि तबरेज़ को इस बात की सजा नहीं दी गई कि वह चोरी के आरोप में पकड़ा गया था। उसे इस बात की सजा दी गई कि वह मुसलमान था। इसीलिए उससे बार-बार धार्मिक नारे लगवाए गए।
शायद वहशी भीड़ यह जताने की कोशिश कर रही थी कि ऐसा करके वह यह दिखा सकेगी कि वह जान बचाने की भीख माँग रहे दूसरे धर्म को मानने वाले आदमी से भी अपने धार्मिक नारे लगवा सकती है। लेकिन करुणा, प्रेम और दया को हिंदू धर्म का आधार मानने वालों का कहना है कि ऐसा करने वाले राक्षस हैं, निरपिचाश हैं। ऐसे लोगों का ग़ुस्सा सोशल मीडिया पर फूट रहा है।
अदालतों और सरकारों से उम्मीद मत रखिए। अखलाक, पहलू, रकबर के साथ क्या हुआ। गो हत्या के आरोपियों को केंद्र सरकार में मंत्री माला पहना आए। ऐसे में उनके हौसले बुलंद होंगे या नहीं। पिछले पाँच साल से मुसलमानों के ख़िलाफ़ फैलाई जा रही नफ़रत अब उनकी जान लेने की हद तक पहुँच चुकी है। अल्लामा इक़बाल ने 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन हैं, हिंदोस्ता हमारा' लिखते समय नहीं सोचा होगा कि गंगा-जमुनी तहजीब वाली धरती हिंदुस्तान पर धर्म के नाम पर ऐसा ख़ूनी खेल खेला जाएगा। ख़ुदा ख़ैर करे।