केंद्र ने कथित फर्जी समाचारों से निपटने के लिए प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) में एक फैक्ट चेक यूनिट बनाई। इसे कानूनी दर्जा देने के लिए मोदी सरकार ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को इस पर रोक लगा दी। दरअसल, इसकी अधिसूचना की आड़ में प्रेस की आजादी लेकर तमाम चिंताएं जताई जा रही थीं। भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है। हालाँकि, अदालत ने मामले की योग्यता पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
केंद्र ने अप्रैल 2023 में फैक्ट चेक यूनिट के लिए नियम जारी किए, लेकिन कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और कुछ अन्य मीडिया संगठनों द्वारा नियमों को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद इसे आधिकारिक रूप से अधिसूचित करने पर रोक लगा दी गई।
हालाँकि, इस महीने की शुरुआत में, अदालत ने FCU की स्थापना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। लाइव लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ताओं ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और शीर्ष अदालत ने 21 मार्च को एफसीयू अधिसूचना पर स्टे लगा दिया।
अदालत ने गुरुवार को कहा कि "हमारा विचार है कि अंतरिम राहत के आवेदन की अस्वीकृति के बाद 20 मार्च, 2024 की अधिसूचना पर रोक लगाने की जरूरत है। 3(1)(बी)(5) की वैधता को चुनौती में गंभीर संवैधानिक प्रश्न और प्रभाव शामिल हैं। जिसमें भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी पर नियम का हाईकोर्ट द्वारा विश्लेषण करने की आवश्यकता है।"
एफसीयू को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 2021 के आईटी नियमों के तहत अधिसूचित किया गया था। अधिसूचना में कहा गया था कि यह नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगी कि केंद्र सरकार से संबंधित कोई भी जानकारी "फर्जी समाचार" या "गलत सूचना" है या नहीं। पीआईबी वेबसाइट के अनुसार, इस इकाई का नेतृत्व भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) के एक वरिष्ठ महानिदेशक/अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के अधिकारी द्वारा किया जाता है और इसके दैनिक कार्यों को विभिन्न स्तरों पर आईआईएस अधिकारियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वेबसाइट में कहा गया है, "यूनिट पीआईबी के प्रधान महानिदेशक को रिपोर्ट करती है जो भारत सरकार के प्रधान प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं।"
इस अधिसूचना का सबसे आपत्तिजनक नियम यह है कि अगर किसी खबर, ऑनलाइन कंटेंट, वीडियो, सोशल मीडिया पोस्ट को सरकार यानी एफसीयू फ्लैग कर देती या आपत्ति जता देती है तो इसे पोस्ट करने वाले के पास इसे हटाने या अस्वीकार करने का विकल्प होता है। दूसरा विकल्प अपनाने यानी अस्वीकार करने पर, मध्यस्थ कानूनी कार्रवाई के लिए जिम्मेदार होता है। इस नियम से यह साफ है कि जो खबर, रिपोर्ट, वीडियो, ट्वीट सरकार के खिलाफ है, सरकार की यह यूनिट उस पर आपत्ति जता सकती है और फिर उस पर कार्रवाई भी हो सकती है।