ईडी को झटका! अधिकारियों पर मुकदमे के लिए पूर्व मंजूरी ज़रूरी

02:07 pm Nov 07, 2024 | सत्य ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी को झटका दिया है। इसने कहा है कि लोक सेवकों के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुक़दमा चलाने के लिए सरकार से पूर्व अनुमति लेना ज़रूरी है। तेलंगाना के दो अधिकारियों के ख़िलाफ़ ईडी की कार्रवाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला आया है।

शीर्ष अदालत ने फ़ैसला दिया है कि सीआरपीसी की धारा 197 (1) की तरह ही पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा दायर अभियोजन की शिकायत (चार्जशीट) का संज्ञान लेने के लिए मंजूरी लेना ट्रायल कोर्ट के लिए अनिवार्य है। जस्टिस ओका और जस्टिस मसीह ने यह फ़ैसला दिया है। अब तक ईडी द्वारा दायर सभी चार्जशीट अभियोजन मंजूरी के बिना हैं और कई मामलों में ट्रायल कोर्ट ने उन चार्जशीटों का संज्ञान लिया है। इस फैसले का अब परिणाम यह होगा कि ईडी की इन कार्रवाइयों को चुनौती दी जाएगी।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 197 (1) जो लोक सेवक के ख़िलाफ़ अपराध का संज्ञान लेने के लिए सरकार से पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य करती है, वह मनी लॉन्ड्रिंग यानी पीएमएलए के मामले में भी लागू होती है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार यह कहते हुए जस्टिस ए एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मासीह की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। इसने आईएएस अधिकारियों बिभु प्रसाद आचार्य और आदित्यनाथ दास के खिलाफ शिकायत का संज्ञान लेते हुए एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। आँध्र प्रदेश के पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी के साथ ही दोनों अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया था।

ट्रायल कोर्ट के आदेश को तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो हाईकोर्ट ने ईडी के ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया था। हाईकोर्ट के इसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ ईडी ने चुनौती देने वाली अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। ईडी ने कहा कि आचार्य सीआरपीसी की धारा 197 (1) के तहत एक लोक सेवक नहीं थे, क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता है कि उक्त पद को धारण करते समय वह पद से हटाने योग्य नहीं थे।

ईडी ने यह भी कहा कि पीएमएलए की धारा 71 के मद्देनजर इसके प्रावधानों को सीआरपीसी सहित अन्य क़ानूनों के प्रावधानों पर अधिक तरजीह मिलती है।

लेकिन अदालत इस बात से सहमत नहीं हुई कि धारा 197 (1) के तहत दोनों सिविल सेवक नहीं हैं। अदालत के फ़ैसले में कहा गया है कि कुछ शर्तों के साथ पीएमएलए की धारा 65 में पीएमएलए के तहत सभी कार्यवाही पर सीआरपीसी के प्रावधान लागू होते हैं।

अदालत ने कहा, 'हमने पीएमएलए के प्रावधानों को ध्यान से देखा है। हम नहीं पाते हैं कि इसमें कोई प्रावधान है जो सीआरपीसी की धारा 197 (1) के प्रावधानों के साथ असंगत है। सीआरपीसी की धारा 197 (1) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इसके मक़सद को तब तक बाहर नहीं किया जा सकता है जब तक कि पीएमएलए में कोई प्रावधान न हो जो कि धारा 197 (1) के साथ असंगत है। ऐसा कोई प्रावधान हमें नहीं बताया गया है। इसलिए, हम मानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 197 (1) के प्रावधान पीएमएलए की धारा 44 (1) (बी) के तहत एक शिकायत पर लागू होते हैं।'