पेगासस मामले की जांच को लेकर ममता बनर्जी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार द्वारा की जा रही जांच पर रोक लगा दी है। पश्चिम बंगाल सरकार ने मामले में जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था।
सीजेआई एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वह इस बात से ख़ुश नहीं है कि इस मामले की जांच के लिए अलग से एक आयोग का गठन किया गया है जबकि अदालत पहले ही इस मामले में एक स्वतंत्र जांच कमेटी बनाने का निर्देश दे चुकी है।
सीजेआई एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच के सामने जस्टिस लोकुर आयोग द्वारा मामले की जांच करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा है कि राज्य सरकार के आश्वासन के बाद भी जस्टिस लोकुर आयोग ने जांच जारी रखी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीन सदस्यों की कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में डॉ. नवीन कुमार चौधरी, डॉ. प्रभाहरन पी. और डॉक्टर अश्निन अनिल गुमस्ते शामिल हैं। अदालत ने कमेटी से कहा था कि वह मामले की तेज़ी से जांच करे।
कमेटी के कामकाज पर नज़र रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज आरवी रविंद्रन को नियुक्त किया गया है। रविंद्रन की मदद के लिए आलोक जोशी, डॉ. संदीप ओबेराय को नियुक्त किया गया है।
इस मुद्दे को लेकर संसद के शीतकालीन सत्र में जमकर हंगामा हुआ था। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस पर चर्चा कराने की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन किया था।
शीर्ष अदालत में दायर याचिकाओं में इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई थी। इस मामले में एम. एल. शर्मा, पत्रकार एन. राम और शशि कुमार, परंजय गुहाठाकुरता, एस. एन. एम. आब्दी, एडिटर्स गिल्ड, टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा सहित कई लोगों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से यह भी मांग की थी कि वह सरकार को निर्देश दे कि वह इस बात को बताए कि उसने पेगासस स्पाईवेयर ख़रीदा या नहीं।