केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम द्वारा भेजे गए 19 नामों को वापस लौटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कुल 21 नाम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजे थे। इन 19 नामों में से 10 नाम ऐसे थे जिन्हें कॉलिजियम ने फिर से केंद्र सरकार के पास भेजा था जबकि 9 नाम पहली सिफारिश के बाद पेंडिंग थे। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने मंगलवार को ट्वीट कर बताया था कि केंद्र सरकार ने 2 नामों को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
ये दो नाम जस्टिस संतोष गोविंद चपलगांवकर और मिलिंद मनोहर सथाये हैं। इन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने की सिफारिश कॉलिजियम ने की थी।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 28 नवंबर को न्यायिक नियुक्तियों के मामले में अदालत में हुई सुनवाई से कुछ घंटे पहले ही केंद्र सरकार ने इन नामों को वापस लौटाया था।
बताना होगा कि कॉलिजियम को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच बीते कुछ दिनों में एक बार फिर विवाद शुरू हुआ है।
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कुछ दिन पहले कहा था कि कॉलिजियम सिस्टम भारतीय संविधान के लिए एलियन की तरह है। उन्होंने कहा था कि अदालत ने खुद ही फैसला करके कॉलिजियम सिस्टम बना लिया जबकि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार के द्वारा ही की जाती थी।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति कॉलिजियम सिस्टम के जरिए ही हो सकती है और इसमें केंद्र सरकार की भूमिका बेहद सीमित होती है। हालांकि सरकार खुफिया विभाग से इस बात की जांच करा सकती है कि क्या कोई वकील हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज के पद पर प्रोन्नत किए जाने लायक है या नहीं। सरकार कॉलिजियम के द्वारा भेजे गए नामों को लेकर आपत्ति दर्ज करा सकती है और कॉलिजियम से सफाई भी मांग सकती है।
लेकिन अगर कॉलिजियम के द्वारा उन्हीं नामों को फिर से सुप्रीम कोर्ट के पास भेजा जाता है तो सरकार उन्हें नियुक्त करने के लिए बाध्य होती है। कई बार ऐसा होता है कि सरकार जजों की नियुक्तियां करने में देर लगाती है। खासतौर से ऐसे मामलों में जब यह माना जाता है कि सरकार कॉलिजियम के द्वारा सिफारिश किए गए कुछ नामों को लेकर राजी नहीं है। नियुक्तियों में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज भी अपनी नाराजगी जता चुके हैं।
बीते दिनों यह सवाल भी उठा है कि केंद्र सरकार कॉलिजियम सिस्टम को लेकर बार-बार सवाल खड़े क्यों कर रही है। यह आरोप लगता है कि केंद्र सरकार कॉलिजियम सिस्टम को खत्म कर ऐसे लोगों को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज बनाना चाहती है, जो उसके मनमुताबिक फैसले दें।
11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने कानून मंत्रालय को नोटिस जारी कर पूछा था कि सरकार इस मामले में 28 नवंबर से पहले जवाब दे कि वह कॉलिजियम के द्वारा भेजी गई सिफारिशों को मंजूरी देने में आखिर देर क्यों कर रही है।
सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि उसे कॉलिजियम सिस्टम को मानना ही पड़ेगा। अदालत ने केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के बयानों को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार जजों की नियुक्ति में जानबूझकर देरी नहीं करे। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ए. एस. ओका की बेंच ने यह टिप्पणियां की थी।
कॉलिजियम के दोबारा भेजने के बाद भी जिन 10 नामों को लौटाया गया है, उनमें पांच इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए थे जबकि कोलकाता हाई कोर्ट के लिए दो, केरल हाई कोर्ट के लिए दो और एक कर्नाटक हाई कोर्ट के लिए था। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 10 नाम ये हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट
कोलकाता हाई कोर्ट
कर्नाटक हाई कोर्ट
केरल हाई कोर्ट