मोदी की तारीफ़ पर जस्टिस मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी की आलोचना

08:54 am Feb 27, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के बाद अब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन यानी एससीबीए ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जज अरुण मिश्रा के उस बयान की आलोचना की है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की जमकर तारीफ़ की थी। एससीबीए ने कहा है कि जस्टिस मिश्रा की वह तारीफ़ संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं थी। 

जस्टिस मिश्रा ने तब 22 फ़रवरी को इंटरनेशनल ज्यूडिशियल कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं जिनके पास वैश्विक नज़रिया है और काम स्थानीय स्तर पर करते हैं। उन्होंने मोदी को 'अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख़्यात विज़नरी' यानी दूरदर्शी बताया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद उस कार्यक्रम में शामिल हुए थे। 

जस्टिस मिश्रा की तारीफ़ पर एससीबीए ने बुधवार को एक बयान में कहा, ‘एससीबीए का मानना ​​है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना है और ऐसी स्वतंत्रता को अक्षरश: और भावना के अनुरूप संरक्षित किया जाना चाहिए।’ एसोसिएशन के अध्यक्ष वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे द्वारा जारी बयान में जजों से आह्वान किया गया है कि वे भविष्य में ऐसा बयान जारी नहीं करें और कार्यपालिका के साथ ऐसी नज़दीकी नहीं दिखाएँ। 

एससीबीए ने कहा है कि ऐसी "निकटता और मेलजोल न्यायाधीशों की निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं" और इससे मुक़दमा लड़ने वालों में परिणाम के बारे में तर्कसंगत संदेह पैदा हो सकते हैं।

कुछ ऐसा ही बयान बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने भी जारी किया था। बयान में कहा गया था, 'बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की कार्यकारी समिति का मत है कि धन्यवाद ज्ञापन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा द्वारा प्रशंसा और प्रशंसा के सांकेतिक शब्दों का उपयोग औपचारिक शिष्टाचार की शर्तों से परे है। ऐसा कार्य निष्पक्षता और स्वतंत्रता की धारणा को कम करने और आम जनता के विश्वास को डगमगाने का काम करता है...।"

इस एसोसिएशन की ओर से इसके अध्यक्ष अधिवक्ता ललित भसीन द्वारा जारी बयान में कहा गया था कि जजों से अपेक्षा होती है कि वे संवैधानिक सिद्धाँतों और क़ानून का पालन करेंगे और कार्यपालिका के ख़िलाफ़ मामलों पर फ़ैसले देने की प्रक्रिया में भी।

बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के बयान में यह भी कहा गया था कि न्यायाधीशों का यह दायित्व है कि वे कार्यपालिका से विवेकपूर्ण और सम्मानजनक दूरी बनाए रखें, न केवल उनके न्यायिक आचरण में, बल्कि जनता की नज़र में भी।

बता दें कि जस्टिस मिश्रा ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की यह कहते हुए तारीफ़ की थी कि पुराने पड़ चुके 1500 क़ानूनों को ख़त्म कर दिया गया है।