राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अजेंडे ‘हिन्दू-हिन्दी-हिन्दुस्तान’ का विरोध दक्षिण भारत में शुरू हो गया है। तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति का विरोध यह कह कर किया जा रहा है कि इस बहाने कक्षा 8 तक हिन्दी पढ़ाने और इस तरह उन पर हिन्दी थोपने की साजिश की जा रही है।
शनिवार को सोशल मीडिया पर यह कैंपेन चल पड़ा कि हिन्दी को तृतीय भाषा नहीं बनाना चाहिए। प्रस्तावित नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि 1968 से ही स्कूल में चल रहे तीन-भाषा फ़ॉर्मूले को चालू रखना चाहिए। अब छात्रों को शुरू से ही तीन भाषाएँ पढ़ने का मौक़ा मिलेगा।
सोशल मीडिया कैंपेन
लेकिन इसे इस रूप में देखा गया है कि इस बहाने द्रविड़ भाषा भाषियों पर हिन्दी थोपी जा रही है। शनिवार को ट्विटर पर #StopHindiImposition और #TNAgainstHindiImposition तेज़ी से ट्रेंड करने लगा और सैकड़ों लोग इससे जुड़ गए। तमिलनाडु सरकार ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया है। राज्य के शिक्षा मंत्री के.ए. सैनगोत्तैयन ने कहा, तमिलनाडु दो-भाषा फ़ॉर्मूला पर चलेगा। यहाँ सिर्फ़ तमिल और अंग्रेज़ी मजबूती से आगे बढ़ेगी। तमिलनाडु का सत्तारूढ़ दल एआईएडीएमके केंद्र में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। तमिलनाडु में दोनों ने मिल कर संसदीय चुनाव लड़ा था।
भाषा युद्ध की चेतावनी
डीएमके नेता एम. के. स्टालिन ने कहा, ‘मैं बीजेपी को यह चेतावनी देना चाहता हूँ कि उसे इससे भयानक नुक़सान होगा।’ एमडीएमके नेता वाइको ने भाषा युद्ध की चेतावनी दे दी है। एएमएमके नेता टी. टी. दिनकरण ने कहा कि इससे देश की बहुलतावाद नष्ट हो जाएगा। उन्होंने कहा, ग़ैर-हिन्दी भाषियों पर हिन्दी थोपने से वे दूसरे दर्जे के नागरिक बन कर रह जाएँगे।
विरोध का इतिहास
तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन का इतिहास बहुत पुराना है। साल 1937 में जब मद्रास प्रान्त में इंडियन नेशनल कांग्रेस की सरकार बनी थी और सरकार के मुखिया चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश की थी तब द्रविड़ आंदोलन के नेता 'पेरियार' के नेतृत्व में हिंदी विरोधी आंदोलन हुआ था। आंदोलन इतना तीव्र और प्रभावशाली था कि सरकार को झुकना पड़ा था। इसके बाद 50 और 60 के दशकों में भी जब हिंदी को थोपने की कोशिश की गयी तब भी जमकर आंदोलन हुआ। कई जगह हिंसा भी हुई। हिंसा में कुछ लोगों की जान भी गयी। तमिलनाडु ने हमेशा ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव का भी विरोध किया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि तमिलनाडु में पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनने का कारण भी द्रविड़ आंदोलन ही था। तमिलनाडु की सभी द्रविड़ पार्टियाँ शुरू से ही हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश का विरोध करती रही हैं। पेरियार, अन्ना दुराई, एमजीआर, करुणानिधि, जयललिता जैसे सभी नेताओं ने तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य किये जाने का विरोध किया है। द्रविड़ पार्टियों का हिंदी विरोध इतना तीव्र है कि इन पार्टियों ने तमिलनाडु में राजमार्ग पर लगने वाले साइन बोर्ड/ दिशा-निर्देश पट्टिकाओं पर हिंदी में लिखे जाने का विरोध किया है।