श्रद्धा वाकर हत्याकांड मामले में भले ही पुलिस पूछताछ के आधार पर आरोपी आफताब पूनावाला गिरफ़्तार हो गया, कथित तौर पर हत्या की बात कबूल की, अपराध की जगह बताई और यहाँ तक कि शव के कुछ टुकड़े भी बरामद हुए हैं, लेकिन क्या ये तथ्य कोर्ट में किसी भी तरह से हत्या में आफ़ताब के हाथ होने को साबित कर पाएँगे? पुलिस के सामने दिए गए बयान को अदालत में सबूत नहीं माना जाता है। ऐसे में अगर आरोपी आफताब मजिस्ट्रेट के सामने हत्या की बात कबूल करने से इनकार करता है तब क्या होगा? यदि वह कह दे, जैसा कि पहले वह पुलिस से कह भी चुका था, कि श्रद्धा 22 मई को ही लड़ाई के बाद घर छोड़कर चली गई थी तो ऐसे में क्या आफताब के ख़िलाफ़ कोई सबूत है?
हत्या के मामले में अभी तक जो भी बातें सामने आई हैं वे पुलिस के सामने आफताब द्वारा कबूल की गई कहानी ही है। कथित तौर पर उसके बताए अनुसार ही शव के क़रीब 13 टुकड़े बरामद किए गए हैं, वो भी सिर्फ़ हड्डियाँ बची हैं।
सवाल है कि क्या इन हड्डियों के बरामद होने से यह साबित हो पाएगा कि हत्या किसने की? इन हड्डियों से इतना तो हो सकता है कि उसके परिवार वालों से डीएनए मैच कर जाए और यह पुख्ता हो जाए कि शव श्रद्धा का ही है, लेकिन अदालत में आफ़ताब को दोषी साबित करने के लिए क्या यह काफी है? अब तक की जाँच से जो तथ्य सामने आये हैं उसके अनुसार-
- सर्कमस्टैंशियल एविडेंस यानी परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं है
- हत्या का कोई चश्मदीद गवाह या सीसीटीवी फुटेज नहीं है
- किसी ने शव या शव के टुकड़ों को ले जाते नहीं देखा है
- जिस फ्रीज में 35 टुकड़े रखे थे उसमें ख़ून के धब्बे नहीं मिले
- जिस बाथरूम में शव के टुकड़े किए गए वहाँ कोई धब्बा नहीं मिला
- जिस हथियार से हत्या की गई थी, वह अभी तक नहीं मिला है
- श्रद्धा का मोबाइल भी अब तक नहीं मिला है।
श्रद्धा वालकर की हत्या 18 मई को हुई थी। यह हत्या क़रीब छह महीने तक राज रही। इतने दिनों बाद सबूत जुटाना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि इतने दिनों में तो शव पूरी तर नष्ट हो चुके होंगे। हथियार मिलना भी अब तक मुश्किल लग रहा है।
इसके अलावा, आरोपी ने कथित तौर पर सबूत को नष्ट करने के लिए जो तरीक़ा अपनाया उसे आम तौर पर हार्डकोर क्रिमिनल अपनाते हैं।
सबूत मिटाने के लिए आरोपी ने हज़ारों लीटर पानी का इस्तेमाल किया, केमिकल का इस्तेमाल किया। शव को ठिकाने लगाने के लिए नया फ्रीज खरीदा, शवों को टुकड़े कर फ्रीज में रखा, एक-एक टुकड़े को 18 दिनों तक फेंकता रहा।
आरोपी कितना शातिर है, यह इससे समझा जा सकता है कि साक्ष्य और डीएनए मैच के लिए नमूने लेने के लिए आफताब पूनावाला को साथ ले जाने वाली एफएसएल टीम ने कहा है कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल की तरह पेश आ रहा था। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार एफ़एसएल टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि वह सब कुछ के बारे में बहुत सामान्य रूप से पेश आ रहा था।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार आरोपी के घर और अपराध स्थल का दौरा करने वाले एक अधिकारी ने कहा कि उसने घर के अंदर से सभी सबूतों को बेहद सावधानी से हटा दिया था। अधिकारी ने कहा, 'उसने कहा कि उसने रेफ्रिजरेटर को पानी और रसायनों से धोया था, जिसे उसने दुकानों से खरीदा था और साथ ही ऑनलाइन ऑर्डर किया था।'
अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा है कि अपराध छह महीने पहले किया गया था और जिस तरह से आफताब ने सबूत मिटाए हैं, यह हमारे लिए एक कठिन काम है। अधिकारी ने तो यहाँ तक कहा, 'हमने कई क्राइम सीन की जांच की है, लेकिन एक भी ऐसा नहीं देखा है जिसे इतनी अच्छी तरह से साफ़ किया गया हो। उसने सबूत मिटाने के लिए रसायनों का इस्तेमाल किया था और यह सुनिश्चित किया कि कोई दाग नहीं बचे। आरोपी ने किताबें पढ़कर या ऑनलाइन शोध करके बहुत प्रयास किया था।'
टीम एक नाले से बरामद क़रीब 13 हड्डियों की एफएसएल जांच कर रही है। अधिकारियों का कहना है कि प्रथम दृष्टया ये मानव हड्डियाँ हैं इससे डीएनए मैच करके देखा जाएगा। अब अधिकारी और सबूत जुटाने के लिए नार्को टेस्ट की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए दिल्ली की साकेत की अदालत ने इसके लिए दिल्ली पुलिस के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है।
तो सवाल है कि क्या पुलिस इन सभी सवालों के जवाब नार्को टेस्ट से हासिल कर लेगी? नार्को टेस्ट की सटीकता को लेकर सवाल भी उठाए जाते रहे हैं। आरोप लगाया जाता है कि नार्को टेस्ट सौ फ़ीसदी सटीक नहीं हो सकता है। कई मामलों में यह विफल भी साबित हो जाता है। एक तथ्य यह भी है कि नार्को टेस्ट के दौरान संदिग्ध द्वारा कबूल की गई बातें अदालत में सबूत के तौर पर नहीं मानी जा सकती हैं। इसका मतलब है कि नार्को टेस्ट के ज़रिये पुलिस सिर्फ़ जांच में मदद ले सकती है। अब उसे इससे सबूत जुटाने में कितनी मिलती है, यह तो बाद में ही पता चलेगा।