श्रीलंका में ईस्टर के दिन हुए बम धमाकों के बाद बुर्क़े पर पाबंदी लगाने की ख़बरों के बाद इसे लेकर भारत में भी जमकर बवाल मचा। बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना ने भारत में भी बुर्क़े पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की माँग की। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने पार्टी के मुखपत्र सामना में एक लेख लिखकर केंद्र सरकार से पूछा कि जब रावण की लंका में बुर्क़े पर पाबंदी लग गई है तो राम की अयोध्या में कब लगेगी चुनावों के दौरान शिवसेना की इस माँग ने राजनीतिक और सांप्रदायिक रूप ले लिया। इसे लेकर दिन भर टीवी चैनलों पर बहस हुई। यह सवाल भी उठाया गया कि क्या बुर्क़ा इसलाम का ज़रूरी हिस्सा है क्या शरई एतबार से मुसलिम महिलाओं के लिए बुर्क़ा पहनना ज़रूरी है
बीजेपी ने फ़ौरन इस माँग से असहमति जताते हुए ख़ुद को इस मुद्दे से दूर रखने की कोशिश की। लेकिन भोपाल से चुनाव लड़ रहीं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अपना बेतुके बयानों के लिए बदनाम हो चुके मोदी सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह ने शिव सेना की माँग से सहमति जताई।
घूंघट पर पाबंदी क्यों नहीं
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदउदु्दीन ओवैसी ने शिवसेना और बीजेपी नेताओं को कड़ा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि आज बुर्क़े पर पाबंदी की बात हो रही है, कल दाढ़ी-टोपी पर पाबंदी लगाने की माँग हो सकती है। ओवैसी ने पूछा कि बुर्क़े और नक़ाब पर पाबंदी की माँग करने वाले घूंघट पर पाबंदी की माँग क्यों नहीं करते ग़ौरतलब है कि भारत में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में हिन्दू महिलाओं के घूंघट रखने की परंपरा है।
क्या है श्रीलंका का मामला
ईस्टर के मौक़े पर हुए बम धमाकों की जाँच के दौरान एजेंसियों को इन हमलों में बुर्क़ाधारी महिलाओं के शामिल होने के संकेत मिले थे। इन हमलों में 350 लोगों की मौत हुई थी और क़रीब 500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। जाँच रिपोर्ट में श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि डेमाटागोडा इलाक़े में बम धमाकों की घटनाओं में शामिल रहीं कई महिलाएँ भी बुर्का पहनकर भाग गईं।
बम धमाकों में बुर्क़ाधारी महिलाओं के शामिल होने की पुख़्ता जानकारी मिलने के बाद श्रीलंका में सार्वजनिक जगहों पर बुर्क़े पर पाबंदी लगाने का फ़ैसला किया गया है। सरकार मसजिद के अधिकारियों से विचार-विमर्श करके इस क़दम को लागू करने की योजना बना रही है। एकाध को छोड़कर श्रीलंका के बाक़ी मुसलिम संगठनों ने इसका स्वागत किया है।
इन देशों में है बुर्क़े पर पाबंदी
बुर्क़े पर पाबंदी के फ़ैसले के साथ ही श्रीलंका एशिया, अफ़्रीका और यूरोप के उन देशों में शामिल हो गया है जहाँ इसे पहनने पर प्रतिबंध है। बता दें कि चैड, कैमरून, गैबन, मोरक्को, ऑस्ट्रिया, बल्गारिया, डेनमार्क, फ़्रांस, बेल्जियम और उत्तर-पश्चिम चीन के मुसलिम बहुल प्रांत शिनजियांग में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी है। डेनमार्क में पिछले साल ही बुर्क़े पर पाबंदी लगाई गई है। वहाँ बुर्क़े पर पाबंदी लगाने वाले क़ानून में मुसलिम महिलाओं का ज़िक्र किए बिना कहा गया है, 'कोई भी अगर सार्वजनिक तौर पर चेहरे को ढकने वाला कपड़ा पहनेगा तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।'ग़ौरतलब है कि जिन देशों में बुर्के पर पाबंदी लगी है, उनमें से ज़्यादातर देशों में एकल समाजिक संरचना है। यानी एक जैसी संस्कृति और सोच वाले लोग ही वहाँ बहुमत में हैं। पुराने ज़माने में वहाँ बुर्के़ का ज़्यादा चलन नहीं था। ख़ुद श्रीलंका में 1900 से पहले बुर्के़ का चलन नहीं था। बाद में बरसों में यह चलन बढ़ा। यूरोपीय देशों में भी बीसवीं सदी के बाद के सालों में बुर्क़े का चलन बढ़ा है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में आतंकवादी घटनाओं के बढ़ने के साथ ही दुनिया भर में मुसलमानों पर शक करने का रिवाज बढ़ा है। कुछ देशों में आतंकवादी घटनाओं में बुर्क़ाधारी महिलाओं के शामिल होने के शक ने इन देशों में आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए बुर्क़े पर पाबंदी को एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
मिली-जुली संस्कृतियों वाला देश
भारत का मामला अलग है। भारत में हज़ारों साल से अलग-अलग संस्कृतियों का मेलजोल रहा है। मिलीजुली संस्कृति यहाँ की पहचान रही है। यहाँ देश के अलग-अलग हिस्सों में मुसलमानों के अलावा हिंदू समाज में भी घूंघट के रूप में पर्दे का चलन है। बुर्क़ा पहनने वाली महिलाओं को कभी शक की नज़रों से नहीं देखा जाता।
भारत कई दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है। लेकिन अभी तक किसी एक भी घटना में बुर्क़ा पहनने वाली महिला किसी भी रूप में शामिल नहीं रही है। ऐसे में यहाँ बुर्क़े पर पाबंदी की माँग पूरी तरह बेमतलब और बेतुकी लगती है।
यूरोपीय देशों में बुर्के पर पाबंदी लगी है, श्रीलंका इस पर पाबंदी लगा रहा है, इसलिए हम भी लगा दें। यह बेहद कमज़ोर तर्क है।
हिंदू संगठनों का नया शगूफा
दरअसल, बुर्क़े पर पाबंदी की माँग हिंदू संगठनों का नया शगूफा है। इसकी शुरुआत ठीक वैसे ही हो रही है जैसे लव जिहाद और तीन तलाक़ के मुद्दे की हुई थी। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के दौरान मोदी सरकार में मंत्री रहे संजीव बालियान ने मुज़फ़्फ़रनगर में मुसलिम महिलाओं पर बुर्के़ की आड़ में बड़े पैमाने पर फ़र्जी वोटिंग का आरोप लगाया था। चुनाव आयोग ने इस आरोप को पूरी तरह बेबुनियाद बताया था।दूसरे चरण के मतदान में अमरोहा से बीजेपी के उम्मीदवार करण सिंह तंवर ने ठीक वैसा ही आरोप लगाया। बाद में गिरिराज सिंह ने भी बेगूसराय में यही आरोप लगाया। टीवी चैनलों पर इन आरोपों को ज़ोर-शोर से उठाए जाने की वजह से बुर्क़े की ज़रूरत, अहमियत, शरीयत में इसके हुक्म पर ख़ूब चर्चा हो रही है।
श्रीलंका में बुर्क़े पर पाबंदी लगने की ख़बरों के बाद भारत मे भी इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है। हिंदू संगठन मुसलिम विरोध के प्रति अपनी वचनबद्धता को साबित करने के लिए इसे हवा दे रहे हैं तो टीवी चैनल टीआरपी के लिए।
जहाँ तक देश की सुरक्षा का सवाल है तो उससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता। देश में हर जगह महिलाओं की सुरक्षा जाँच के लिए अलग व्यवस्था होती है। सुरक्षा जाँच से बुर्क़े वाली मुसलिम महिलाओं को भी गुज़रना पड़ता है। इसी तरह पोलिंग बूथों में महिलाओं की पहचान के लिए अलग से महिला पीठासीन अधिकारी होती हैं।
चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बगैर पहचान साबित किए किसी का वोट न पड़े। चाहे वो दाढ़ी-टोपी वाला पुरुष हो फिर तिलकधारी या लुंगी वाला, बुर्क़ेवाली महिला हो या फिर घूंघट वाली महिला।
इसलाम क्या कहता है बुर्क़े के बारे में
न बुर्क़े से इस्लाम है और न ही बुर्क़े में इस्लाम है। क़ुरआन में औरतों को पर्दे का हुक्म हैं। मर्दों को निगाहें नीची करके चलने का हुक्म है। क़ुरआन (सूरह नूर आयत न. 30) “ऐ नबी (मुहम्मद साहब स.अ.व.) कह दो मोमिन (मुसलमान) मर्दों से कहो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें। ये उनके लिए बेहतर है।”
इसमें यह भी कहा गया है, 'और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने शृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों पर अपने दुपट्टे डाल रहें और अपना शृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें, सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिससें स्त्री की ज़रूरत होती है या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों। और स्त्रियाँ अपने पाँव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो शृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए। ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।
(सूरह नूर, आयत न. 31) (सूरह अहज़ाब, आयत न. 59) ऐ नबी अपनी बीवियों और अपनी लड़कियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो कि बाहर निकलते वक़्त अपनी चादरों को थोड़ा लटका लिया करें। ये उनकी शराफ़त की पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब है तो उन्हें कोई छेड़ेगा नहीं और अल्लाह तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
क़ुरआन की इन आयतों की व्याख्या को लेकर इसलामी विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि क़ुरआन औरतों को चेहरा ढकने का हुक्म देता है तो वहीं कुछ मानते हैं कि चेहरा ढकने का हुक्म नहीं है।
उलेमाओं के बीच इन्हीं मतभेदों की वजह से मुसलिम देशों में कहीं हिजाब का चलन है जिसमें चेहरा खुला रहते हैं तो कहीं नक़ाब का चलन है जिसमें चेहरा ढका रहता है। सिर्फ़ आंखों पर जाली लगी होती है। कुछ महिलाएँ चादर ओढ़ती हैं। कुछ सिर पर सिर्फ़ दुपट्टा रखती हैं। माडर्न मुसलिम लड़कियाँ तो जींस टी-शर्ट पहनती हैं। कहीं कोई रोक-टोक नहीं है।
मुसलिम समाज में कुछ उलेमा महिलाओं के बुर्क़े और नक़ाब पहनने पर ज़ोर ज़रूर देते हैं, लेकिन इसके बावजूद मुसलिम समाज में इसे लेकर कोई कट्टर सोच नहीं है।
एक ही परिवार में आधी महिलाएँ बुर्क़ा पहनती हैं और आधी नहीं पहनतीं। उलेमा ने भी इसे महिलाओं की मर्जी पर छोड़ रखा है। उनका कहना है कि इस्लाम में पर्दे का हुक्म है। जिसे बुर्क़ा, नक़ाब, हिजाब या चादर जो पहनना है पहने। कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है। इसलिए जब इसे पहनने पर ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है तो इस पर पाबंदी थोपने का कोई तार्किक आधार नहीं है। इसीलिए पाबंदी की माँग मेतलब और बेतुकी है।