देशद्रोह कानूनः सुप्रीम कोर्ट ने पूछा पेंडिंग केसों का क्या होगा, बुधवार को जवाब दें

05:12 pm May 10, 2022 | सत्य ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई टालने के केंद्र के सुझाव पर सवाल किया कि ऐसे में पेंडिंग केसों का क्या होगा, क्या तब तक सभी केस होल्ड पर रहेंगे। अदालत ने केंद्र से कहा कि वो बुधवार को अपना लिखित जवाब दाखिल करे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि अगर आप इस पर पुनर्विचार करने जा रहे हैं तो क्यों नहीं इसकी समयसीमा तीन-चार महीने तय करते और राज्यों से कहा जाए कि इस पर तब तक वो कोई कार्रवाई न करें। अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि इस कानून का गलत इस्तेमाल कैसे रोका जा सकेगा।

अदालत केंद्र के पुनर्विचार वाले आग्रह पर सहमत होती दिखी लेकिन उसके सवालों ने केंद्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से जानना चाहता है कि जब तक वो देशद्रोह कानून पर फिर से विचार करेगा और जांच करेगा  तो तब तक इस कानून में दर्ज पिछले पेंडिंग मामलों का क्या होगा। अदालत ने इसीलिए केंद्र से लिखित जवाब मांगा है। 

राजद्रोह कानून पर केंद्र सरकार का रुख सोमवार को बदलता दिखा था। केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर राजद्रोह (देशद्रोह) कानून के प्रावधानों की फिर से जांच करने और पुनर्विचार करने का फैसला किया है और अनुरोध किया है कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती, तब तक वह राजद्रोह का मामला नहीं उठाए। केंद्र सरकार ने कहा कि उसने धारा 124 ए आईपीसी (देशद्रोह) के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है।दो दिन पहले शनिवार को, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में देशद्रोह पर दंडात्मक कानून का बचाव किया था और कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के 1962 के फैसले की संवैधानिक पीठ ने इसकी वैधता को बरकरार रखा था। अब इसे एक और बड़ी बेंच में भेजने की जरूरत नहीं है। केंद्र ने कहा था कि इसके दुरुपयोग के उदाहरण इसके पुनर्विचार के लिए औचित्य नहीं हो सकते हैं।

चीफ जस्टिस एन वी रमना की तीन जजों की बेंच ने इस सवाल पर कि क्या धारा 124 ए (देशद्रोह) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदार नाथ सिंह बनाम केदार नाथ सिंह बनाम में 1962 के फैसले के आलोक में पांच जजों की संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि उक्त निर्णय एक संविधान पीठ का निर्णय है और तीन जजों की पीठ पर बाध्यकारी है।

देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा सहित पांच पक्षों ने दायर की थीं। मोदी सरकार पर इस कानून के नाजायज इस्तेमाल का आऱोप लगता रहा है। छात्र नेता रहे उमर खालिद, कन्हैया कुमार समेत कई युवा आंदोलनकारियों पर राजद्रोह कानून में केस दर्ज किया गया। अभी हाल ही में मुंबई पुलिस ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर भी राजद्रोह कानून की धारा लगाई थी।