राजद्रोह या देशद्रोह कानून (धारा 124 ए) को पूरी तरह खत्म करने के लिए देश को अभी लंबी यात्रा तय करनी है। सरकार के खिलाफ नाराजगी या आलोचना से निपटने के लिए इस कानून का नाजायज इस्तेमाल जमकर किया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2016 और 2019 के बीच, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए (देशद्रोह) के तहत दर्ज मामलों की संख्या में 160% की बढ़ोतरी हुई, जबकि सजा की दर 2019 में घटकर 3.3% हो गई, जो 2016 में 33.3% थी। 2019 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए 96 संदिग्धों में से केवल दो पुरुषों को दोषी ठहराया गया है। 2019 में राजद्रोह के आरोपों के तहत सबसे अधिक गिरफ्तारियां 18 से 30 आयु वर्ग में 55 वर्ष की थीं, जिनमें एक महिला भी शामिल थी।
कर्नाटक में 2019 में देशद्रोह के सबसे अधिक मामले 22 दर्ज किए गए, इसके बाद असम (17), जम्मू-कश्मीर (11) और उत्तर प्रदेश (10) का स्थान रहा। उस समय जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था, जबकि अन्य तीन राज्यों में बीजेपी का शासन था। एनसीआरबी ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 2019 के आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए। सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान, दिल्ली पुलिस ने तीन युवा मुस्लिम महिलाओं सहित कई लोगों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाया था। इसी तरह, कर्नाटक पुलिस ने 19 वर्षीय अमूल्य लियोना को बुक किया था, जब उसने 2020 में सीएए के विरोध के दौरान एक रैली में "पाकिस्तान जिंदाबाद" के नारे लगाए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आईपीसी की धारा 124-ए का दुरुपयोग न करने के लिए आगाह किया था और राज्यों को निर्देश दिया था कि वे केदारनाथ बनाम बिहार राज्य परीक्षण के दौरान बताए गए निर्देशों का पालन करें।
यूपीए कार्यकाल के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने माओवादियों से संबंध रखने के आरोपी डॉ बिनायक सेन के खिलाफ देशद्रोह के आरोपों को खारिज कर दिया और सत्र अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बावजूद उन्हें जमानत दे दी।
क्या कहा था लॉ कमीशन ने
2018 में, लॉ कमीशन ने राजद्रोह पर एक रिपोर्ट में कहा था: हालांकि यह राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए आवश्यक है, लेकिन इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए एक हथियार के रूप में दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। असहमति और आलोचना जीवंत लोकतंत्र के हिस्से के रूप में नीतिगत मुद्दों पर एक मजबूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्व हैं। इसलिए, अनुचित प्रतिबंधों से बचने के लिए स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर हर प्रतिबंध की सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए। यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि 2014 से 2019 तक राष्ट्रद्रोह के 326 मामले दर्ज किए गए लेकिन सजा सिर्फ 4 फीसदी मामलों में सुनाई गई। यानी देशद्रोह कानून की धारा का जमकर राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है लेकिन उसके मुकाबले उनमें सजा कम हो रही है।
कन्हैया कुमार (अब कांग्रेस नेता)
कुछ प्रसिद्ध मामले
उमर खालिद और कन्हैया कुमार
2014 में मोदी सरकार के कार्यकाल की शुरुआत में ही सबसे पहले जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उमर खालिद पर राजद्रोह कानून लगाया गया। उस समय इसकी कड़ी आलोचना हुई। इसके बाद दोनों नेता जमानत पर बाहर आ गए। कन्हैया तो इस समय सीपीआई से होते हुए कांग्रेस में हैं लेकिन उमर खालिद लगातार चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। 2020 में दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस ने उमर पर फिर से राजद्रोह और यूएपीए जैसे खतरनाक कानून में केस दर्ज किया। दोनों ही मामलों में अभी तक उमर की जमानत नहीं हो पाई है। उमर दो साल से जेल में बंद हैं। अदालत अब तक आठ-नौ बार उनकी जमानत अर्जी खारिज कर चुकी है।
दिशा रवि
दिशा रवि
बेंगलुरु की पर्यावरणवादी युवती दिशा रवि को पिछले साल सरकार के निर्देश पर गिरफ्तार किया गया था। दिशा पर एक टूल किट के जरिए मोदी सरकार के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार का इस बात के लिए मजाक भी बना कि टूलकिट के सहारे कोई कैसे सरकार के खिलाफ साजिश रच सकता है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ग्रेटा थनबर्ग ने भी इस मामले को उठाया था।
शारजील इमाम
शारजील इमाम
जेएनयू के छात्र और आईआईटियन शारजील इमाम भी करीब तीन साल से जेल में हैं। सीएए-एनआरसी के खिलाफ उन्होंने जामिया और शाहीनबाग आंदोलन में भाषण दिए थे। पुलिस ने उन पर राष्ट्रद्रोह का चार्ज लगा दिया। हालांकि शारजील ने अपने भाषण में किसी हिंसा की बात नहीं की थी। उन्होंने किसान आंदोलन की तर्ज पर दिल्ली को घेरने की बात कही थी।देवंगना कलिता-नताशा नरवाल
दिल्ली यूनिवर्सिटी की इन दोनों छात्राओं पर दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया था। लेकिन हकीकत ये है कि सीए-एनआरसी आंदोलन के दौरान उन्होंने डीयू की छात्राओं को लामबंद किया था। पिंजरा तोड़ आंदोलन को भी इन लोगों ने शुरू किया था।आसिफ इकबाल तन्हा
आसिफ इकबाल तन्हा को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामने से पुलिस ने उठाया था। वो सीए-एनआरसी आंदोलन के दौरान शांतिपूर्ण धरने पर थे। उन पर भी राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया गया।
सफूरा जरगर
सफूरा जरगर, इशरतजहां, गुलफिशा और मीरान हैदर
दिल्ली पुलिस ने इन लोगों पर भी राष्ट्रद्रोह लगाया है। इन पर सीए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौरान मोदी सरकार के खिलाफ साजिश रचने का आरोप है। सफूरा जरगर को जब दिल्ली पुलिस ने पकड़ा तो वो प्रेग्नेंट थी। उन्हें जेल से बाहर लाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई। वो लड़ाई आज भी जारी है। सैकड़ों ऐसे युवा कार्यकर्ता हैं जो जेलों में हैं और देशद्रोह कानून का सामना कर रहे हैं। हालांकि इनका देश के खिलाफ साजिश करने से कोई वास्ता नहीं है लेकिन दिल्ली पुलिस मानती है तो मानती है।कप्पन, आजमगढ़, एएमयू के छात्र
आजमगढ़ में भी करीब सौ युवकों पर राष्ट्रद्रोह के मामले दर्ज किए हैं। इनमें से कुछ जेल में हैं और कुछ बाहर भी हैं या उनका पता नहीं चल रहा है। इन सभी के खिलाफ सीएए-एनआरसी विरोधी कानून के दौरान केस दर्ज किया गया था। इसी तरह एएमयू के तमाम छात्र नेता जेलों में हैं। उन पर भी देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। इनमें से तमाम पर यूएपीए भी लगा हुआ है। केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन तो हाथरस गैंगरेप केस की रिपोर्टिंग करने जा रहे थे। लेकिन यूपी पुलिस ने उन्हें विदेशी एजेंट बताकर पकड़ा और देशद्रोह का आरोप लगा दिया। कप्पन अभी तक जेल में हैं। कप्पन के मामले को देश के तमाम पत्रकार संगठनों ने उठाया लेकिन योगी सरकार पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। कप्पन की तरह कई अन्य पत्रकार भी देशद्रोह कानून का सामना कर रहे हैं।
स्व. फादर स्टेन स्वामी
यल्गार परिषद के योद्धा
महाराष्ट्र में भीमा कोरेगांव आंदोलन पर बीजेपी की शुरू से नजर रही है। 1818 की एक लड़ाई को दलित समुदाय के लोग अब इसे भीमा कोरेगांव के नाम से इस आंदोलन को याद करते हैं। जिसमें देशभर से सामाजिक कार्यकर्ता जुटते हैं। इसी दौरान यल्गार परिषद की बैठक होती है। इस बैठक में भाग लेने वाली सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्वेस, तेलगू कवि वरवर राव, हनी बाबू, दलित समाज सुधारक और आईआईटी प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बडे, शोमा सेन, पत्रकार गौतम नवलखा, सुरेंद्र गाडलिंग, दिवंगत फादर स्टेन स्वामी, अरुण फरेरा, रोना विल्सन, महेश राउत और सुधीर धवाले पर राष्ट्रद्रोह कानून लगाकर जेलों में बंद कर दिया गया। इनमें से सुधा भारद्वाज लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जेल से बाहर आईं। कवि वरवर राव की तबियत खराब होने पर जमानत मिली। फादर स्टेन स्वामी की मौत इलाज न मिलने की वजह से हिरासत में हो गई। उन्हें बहुत क्रूरता पूर्वक अस्पताल के बेड पर भी हथकड़ी बेड़ी में जकड़ कर रखा गया था। फादर स्टेन स्वामी की पूरी जिन्दगी आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ते बीती। इन सभी पर भारत सरकार ने माओवादियों से संपर्क होने का आरोप लगाया है।
हार्दिक पटेल
हार्दिक पटेल
2016 में गुजरात में पाटीदार आंदोलन के बड़े युवा नेता हार्दिक पटेल और उनके पांच अन्य साथियों पर राजद्रोह के आरोप में केस दर्ज किया गया। हार्दिक पटेल इसके बाद कांग्रेस में आ गए। हार्दिक अब कांग्रेस छोड़ने जा रहे हैं। गुजरात सरकार उन पर से सभी मामले वापस लेने जा रही है।असीम त्रिवेदी
2014 से पहले जब अन्ना हजारे केंद्र की यूपीए सरकार को गिराने के लिए करप्शन का नाम लेकर आंदोलन चला रहे थे तो कॉर्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने अन्ना हजार के मंच पर यूपीए सरकार के खिलाफ कॉर्टून बनाया था। उन पर देशद्रोह कानून लगा और गिरफ्तार कर लिए गए।डॉ बिनायक सेन
डॉ सेन पेशे से डॉक्टर थे। छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके संबंध माओवादियों से बताकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन 15 अप्रैल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने डॉ बिनायक सेन को रिहा करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।
अरुंधति रॉय
अरुंधति रॉय
दिल्ली पुलिस ने 2010 में एक विचार गोष्ठी में एक भाषण को देशद्रोह मानते हुए प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय, हुर्रियत और अलगाववादी नेता स्व. सैयद शाह गिलानी के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया था। अरुंधति कश्मीर के लोगों के पक्ष में बोलती रही हैं। अमेरिका के राष्ट्रपतियों के भारत आने पर भी उन्होंने विरोध किया था। कश्मीर में वहां के अवाम पर जो गुजर रही है, उसे उन्हें अपने पिछले उपन्यास रिपब्लिक ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस में बहुत खूबसूरती से कलमबंद किया है।प्रवीण तोगड़िया
राजस्थान सरकार ने हिन्दू नेता प्रवीण तोगड़िया पर नफरती भाषण देने के आरोप में 2003 में देशद्रोह का केस दर्ज किया था। 2013 में प्रवीण तोगड़िया को खतरनाक घोषित किया गया था। 2014 में मोदी सरकार आ गई लेकिन तोगड़िया को राहत नहीं मिली। उन पर कई और केस लाद दिए गए।
अकबरुद्दीन ओवैसी