काम करने के विवादास्पद तौर तरीक़ों के लिए सुप्रीम कोर्ट से आलोचना झेलती रही सीबीआई के काम का अब आकलन किया जाएगा। यह शायद पहली बार होगा। सुप्रीम कोर्ट यह देखना चाहता है कि सीबीआई मामलों को तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचाने में कितनी सफल है और अभियोजन में एजेंसी का प्रदर्शन कैसा है। अदालत ने एजेंसी की सफलता दर का विश्लेषण करने का निर्णय लिया है। अदालत ने सीबीआई निदेशक को निर्देश दिया कि वह उन मामलों की संख्या को उसके सामने रखे जिनमें एजेंसी निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों में अभियुक्तों को दोषी ठहराने में कितनी सफल रही।
देश की शीर्ष अदालत उस प्रीमियर जाँच एजेंसी की आकलन करना चाहती है जिसके बारे में उसकी राय बहुत अच्छी नहीं रही है। जिसकी जाँच पर सुप्रीम कोर्ट अक्सर सवाल उठाता रहा है। 2013 में कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में सीबीआई जांच की प्रगति रिपोर्ट पर तो सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की थी वह एक बड़ा उदाहरण बन गई है। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि 'सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो अपने मालिक की बोली बोलता है। यह ऐसी अनैतिक कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं।'
भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने ही पिछले महीने कहा था कि जब निचली अदालतों के जज धमकियों के बारे में शिकायत करते हैं तो सीबीआई और ऐसी ही दूसरी जाँच एजेंसियाँ कोई प्रतिक्रिया नहीं देती हैं। उन्होंने कहा था कि जब न्यायाधीश शिकायत करते हैं तो वे बिल्कुल मदद नहीं करते हैं और सीबीआई ने अपने रवैये में कोई बदलाव नहीं दिखाया है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फिर से सीबीआई के कामकाज को लेकर सख़्त टिप्पणी की है। जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश वाली बेंच ने सीबीआई को यह बताने को कहा है कि एजेंसी कितने आरोपियों को दोषी ठहराने में सफलता रही है। बेंच ने कहा कि एजेंसी के लिए सिर्फ़ मामला दर्ज करना और जाँच करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि अभियोजन सफलतापूर्वक किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट सीबीआई की अभियोजन दक्षता की जांच कर रहा है क्योंकि उसने पहले कहा था कि एजेंसी की 'कर्तव्यों को निभाने में घोर लापरवाही की एक गाथा' रही है। अदालतों में मामले दर्ज करने में बेहद देरी हुई। एजेंसी के निदेशक से कोर्ट ने जवाब मांगा था।
शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर के मोहम्मद अल्ताफ और शेख मुबारक के ख़िलाफ़ सीबीआई और गृह मंत्रालय की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियाँ कीं।
बता दें कि जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया था कि विशेष अनुमति याचिका दायर करने में जांच एजेंसी की ओर से 542 दिनों की काफ़ी ज़्यादा देरी हुई थी। 24 जनवरी, 2020 के एक आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा था कि एजेंसी को याचिका दायर करने का निर्णय लेने में दस महीने से अधिक समय लगा।
तब अदालत ने कहा था, 'अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने 3 मई, 2019 को राय दी कि मामला अपील दायर करने के लिए उपयुक्त है, याचिका का मसौदा तैयार करने के लिए केंद्रीय एजेंसी द्वारा मामले को चिह्नित करने में तीन महीने से अधिक समय लगा।'
इसने तब यह भी कहा था कि प्रथम दृष्टया यह सीबीआई के क़ानूनी विभाग में स्पष्ट रूप से घोर अक्षमता को दर्शाता है। इससे मामलों में मुक़दमा चलाने के लिए इसकी प्रभाविकता पर गंभीर सवाल उठता है।
तब अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि हम यह समझने में विफल हैं कि 9 मई, 2018 से 19 जनवरी, 2019 तक शाखा प्रमुख के कार्यालय में उप कानूनी सलाहकार की टिप्पणियों के लिए फाइल कैसे लंबित रही।
सीबीआई के ऐसे कामकाज के बीच ही अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, 'हम सीबीआई द्वारा निपटाए जा रहे मामलों के बारे में डाटा चाहते हैं। सीबीआई कितने मामलों में मुक़दमा चला रही है, कितनी अवधि से मुक़दमे अदालतों में लंबित हैं और निचली अदालतों व उच्च न्यायालयों में सीबीआई की सफलता दर क्या है। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सीबीआई निदेशक को डाटा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।