यौन उत्पीड़न के मामले में देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई को क्लीन चिट मिलने पर आरोप लगाने वाली महिला ने कहा है कि उसे भी इस जाँच रिपोर्ट की कॉपी दी जाए। इससे पहले महिला ने कहा था कि सीजेआई को क्लीन चिट मिलने से उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी हुई है और वह इससे बेहद निराश है।बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की इन हाउस कमेटी ने कहा था कि वह इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि सीजेआई रंजन गोगोई पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे निराधार हैं और उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं। आरोप लगाने वाली महिला सीजेआई के दफ़्तर में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर चुकी है।
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, महिला ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को लेकर (रोकथाम, निषेध और निवारण) एक्ट 2013 का हवाला देते हुए कहा है कि दोनों ही पक्षों को जाँच रिपोर्ट को प्राप्त करने का अधिकार है।
बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्री जनरल ने एक नोटिस में कहा था कि इस मामले में एक अन्य वरिष्ठ जज को रिपोर्ट सौंप दी गई है। साथ ही इसकी एक कॉपी सीजेआई रंजन गोगोई को भी सौंपी गई है। नोटिस में इस बात को भी कहा गया था कि इन-हाउस प्रक्रिया होने के कारण इसे सार्वजनिक किया जाना अनिवार्य नहीं है।
ख़बर के मुताबिक़, यौन उत्पीड़न मामले की जाँच कर रही कमेटी को लिखे शिकायती पत्र में महिला ने कहा है कि अगर जाँच रिपोर्ट की एक कॉपी सीजेआई को दी जा सकती है तो वह भी इसकी कॉपी लेने की हक़दार है। कमेटी में जस्टिस एसए बोबडे, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी शामिल हैं।
महिला ने कहा है कि कमेटी की ओर से उन्हें भेजे गए पहले नोटिस और पहली सुनवाई में कई बार पूछने के बावजूद यह नहीं बताया गया कि यह जाँच प्रक्रिया इन हाउस है या नहीं। महिला ने कहा है कि हालाँकि कमेटी की ओर से अब मुझे और जनता को जाँच रिपोर्ट न देने के लिए इन हाउस प्रक्रिया के नियमों की बात की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेट्री जनरल की ओर से जारी किए गए नोटिस में इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट (2003) 5 एससीसी 494 मामले का हवाला देते हुए कहा गया था कि आंतरिक प्रक्रिया के तहत गठित कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करना अनिवार्य नहीं है। ख़बर के मुताबिक़, महिला ने कहा कि इस नोटिस से ही साफ़ पता चलता है कि मुझे शिकायतकर्ता होने के बावजूद जाँच रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी जाएगी। महिला ने कहा है कि उसके पास रिपोर्ट को प्राप्त करने, किसी भी गवाह, किसी अन्य व्यक्ति या कमेटी की ओर से विचार किए गए किसी अन्य सबूत को प्राप्त करने का अधिकार है।
महिला ने कहा कि यह बेहद अजीब है कि यौन उत्पीड़न के एक मामले में शिकायतकर्ता को तक उस रिपोर्ट की एक कॉपी नहीं दी जा रही है और कमेटी ने मेरी शिकायत को मुझे बिना कोई कारण बताए रोक लिया।
महिला ने पत्र में यह भी कहा है कि उसे जाँच रिपोर्ट की कॉपी नहीं दिया जाना प्राकृतिक नियमों के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा और यह न्याय पर बहुत बड़ी चोट होगी।
महिला ने पत्र में कहा है कि दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से दिए गए एक फ़ैसले के मुताबिक़, यहाँ तक कि न्यायाधीशों की संपत्ति के बारे में भी सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत किसी भी नागरिक को जानकारी लेने का अधिकार है।वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने भी ट्वीट कर जनहित में कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की माँग की थी। उन्होंने इस मामले को घोटाला करार दिया था।
सेक्रेटी जनरल के कार्यालय की ओर से क्लीन चिट मिलने के बाद महिला ने कहा था कि उसे सिर्फ़ उसके बयानों की कॉपी दी गई है। महिला ने कहा कि इसमें उसकी ओर से 26, 29 और 30 अप्रैल को दिए गए बयानों का ज़िक्र है। महिला ने कहा, ‘मैंने अपने बयानों की अशुद्धियों को ठीक करके 6 मई को वापस जमा कर दिया था। मैं अपने अगले क़दम के बारे में वकील से बातचीत करूंगी।’बता दें कि भारत की न्यायपालिका के इतिहास में यह पहली घटना है जिसमें किसी सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगा है। महिला ने आरोप लगाया था कि सीजेआई गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो उसे कई तरह से परेशान किया गया और अंत में उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया।
यौन उत्पीड़न के आरोपों के सामने आने के बाद सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’
सीजेआई गोगोई ने कहा था कि वह इन आरोपों से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि उन्हें निचले स्तर तक जाकर इसका जवाब देना चाहिए। सीजेआई ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश क़रार दिया था।