'जमानत नियम है और जेल एक अपवाद' की बार-बार टिप्पणी करने वाले सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिका पर विचार करने से भी इनकार कर दिया है। साढ़े चार साल से जेल में बंद गुलफिशा पर 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे कथित बड़ी साज़िश को लेकर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत केस दर्ज है। इस मामले में वह जेल में हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इतना ज़रूर कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट तय तारीख पर ही जमानत अर्जी पर सुनवाई करे, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो।
गुलफिशा को 11 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। दंगों से संबंधित एक अन्य मामले में उन्हें जमानत दी गई थी। हालांकि, 16 मार्च, 2022 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत द्वारा दिल्ली की एक अदालत द्वारा बड़े षड्यंत्र मामले में तसलीम अहमद के साथ उन्हें भी जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
अदालत ने कहा था कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि तसलीम और गुलफिशा दोनों के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही थे। दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और रजनीश भटनागर की पीठ ने 11 मई, 2022 को ट्रायल कोर्ट के जमानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देने वाली गुलफिशा की याचिका पर नोटिस जारी किया था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस मृदुल को मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किए जाने के बाद जस्टिस सुरेश कुमार कैत और शैलेंद्र कौर की पीठ को जनवरी 2024 से जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी। मामला फिलहाल जस्टिस नवीन चावला और कौर के समक्ष है, जो 25 नवंबर से सुनवाई करने वाले हैं।
जमानत में हो रही इतनी देरी को लेकर ही गुलफिशा सुप्रीम कोर्ट पहुँची थीं। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मामले पर गौर किया। जैसे ही याचिका ली गई, जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि सह-आरोपी शरजील इमाम द्वारा दायर एक समान रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया है, जिसमें हाईकोर्ट से जमानत अर्जी पर जल्द फ़ैसला करने का अनुरोध किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले और इस पीठ द्वारा तय किए गए मामले में अंतर है। उन्होंने कहा, 'यह महिला चार साल और 7 महीने से जेल में है। और 24 तारीखों पर पीठ स्थगित कर दी गई क्योंकि पीठासीन अधिकारी छुट्टी पर थे और अन्य 26 तारीखों पर कोई दलील नहीं सुनी गई और मामले को बस स्थगित कर दिया गया। और दो अलग-अलग तारीखों पर दलीलें सुनी गईं, आदेश सुरक्षित रखा गया...।'
सिब्बल ने बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई की अगली तारीख 25 नवंबर है। उन्होंने कहा कि मैं यहां जमानत चाहता हूं।
सिब्बल ने मुकदमे में देरी और याचिकाकर्ता के लंबे समय तक जेल में रहने का हवाला देते हुए जमानत के लिए दलील रखी। जब पीठ ने सुझाव दिया कि उच्च न्यायालय से मामले की सुनवाई करने का अनुरोध किया जा सकता है तो सिब्बल ने कहा,
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यह फिर से चलेगा... जब बोर्ड इस पर पहुंचता है तो मामला स्थगित हो जाता है। किसी को 4 साल और 7 महीने जेल में रखने का क्या मतलब है? वह एक महिला है, जिसकी उम्र 31 साल है। मुकदमा शुरू होने का कोई सवाल ही नहीं है।
कपिल सिब्बल, गुलफिशा के वकील
जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, 'इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए, इसमें कोई संदेह नहीं है।' उन्होंने कहा कि जब वैधानिक उपाय लंबित है, तो अनुच्छेद 32 के तहत राहत नहीं मांगी जा सकती है।
पीठ ने आदेश में कहा, 'हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। यह कहा गया है कि उच्च न्यायालय के समक्ष निर्धारित अगली तारीख 25 नवंबर है। चूंकि याचिकाकर्ता 4 साल और 7 महीने से हिरासत में है, इसलिए अनुरोध है कि जमानत आवेदन पर निर्धारित तिथि पर सुनवाई की जाए, जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों।'
बता दें कि सह-आरोपी शरजील इमाम द्वारा भी इसी तरह की रिट याचिका दायर की गई थी, जिसे उसी पीठ ने 25 अक्टूबर को खारिज कर दिया था, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय से मामले की शीघ्र सुनवाई करने का आग्रह किया गया था।
ऐसे कई एक्टिविस्ट जो सीएए विरोधी प्रदर्शनों में सबसे आगे थे, उन्हें यूएपीए मामले में आरोपी बनाया गया है, उन पर आरोप है कि वे फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों को भड़काने की बड़ी साजिश में शामिल थे।
सितंबर 2021 में पिंजरा तोड़ के सदस्यों और जेएनयू की छात्रा देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा के खिलाफ मुख्य आरोपपत्र दायर किया गया था।
जिन अन्य लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया, उनमें पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान, निलंबित आप पार्षद ताहिर हुसैन, उमर खालिद, शादाब अहमद, तसलीम अहमद, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान शामिल हैं।
जून 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दे दी थी, यह देखते हुए कि वे केवल विरोध प्रदर्शन आयोजित कर रहे थे, जिसे यूएपीए के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने उस जमानत आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका को खारिज कर दिया था।