सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन को उनकी 'सनातन धर्म को खत्म करो' टिप्पणी के लिए फटकार लगाई। अदालत ने पूछा कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करने के बाद उन्होंने अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट में क्यों लगाई है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कथित भड़काऊ टिप्पणी करने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के मंत्री के फैसले पर सवाल उठाया। इसने कहा कि वह एक आम आदमी की तरह टिप्पणी नहीं कर सकते हैं और एक मंत्री के रूप में उन्हें अपने शब्दों के क्या नतीजे हो सकते हैं, इसके बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए।
उदयनिधि स्टालिन ने पिछले साल सितंबर महीने में कहा था कि सनातन धर्म लोगों को जाति और धर्म के नाम पर विभाजित करता है और इसे ख़त्म करने की ज़रूरत है। विवाद बढ़ने के बाद भी अपने बयान पर कायम रहते हुए उन्होंने कहा था, 'मुझे अपने भाषण के महत्वपूर्ण पहलू को दोहराना चाहिए- मेरा मानना है कि मच्छरों द्वारा डेंगू और मलेरिया और कोविड -19 जैसी बीमारियों के फैलाए जाने की तरह ही सनातन धर्म कई सामाजिक बुराइयों के लिए जिम्मेदार है।'
बहरहाल, जब यह मामला अदालत में पहुँचा तो सुप्रीम कोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन से कहा, 'आपने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया। आपने अनुच्छेद 25 के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया। अब आप अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं (सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के लिए)? क्या आप नहीं जानते कि आपने जो कहा उसका परिणाम क्या होगा? आप आम आदमी नहीं हैं। आप मंत्री हैं। आपको नतीजे पता होना चाहिए।' इसके साथ ही पीठ ने मामले को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।
उदयनिधि स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ डीएमके प्रमुख एम के स्टालिन के बेटे हैं। सितंबर 2023 में एक सम्मेलन में सनातन पर उदयनिधि के बयान से विवाद हो गया था। विवाद सोशल मीडिया पर बढ़ गया, भाजपा ने कांग्रेस पर सनातन धर्म के खिलाफ "नरसंहार" का आह्वान का समर्थन करने का आरोप लगाया।
उदयनिधि स्टालिन ने सोशल मीडिया पर आलोचना का जवाब देते हुए इस बात से इनकार किया कि उन्होंने सनातन धर्म का पालन करने वालों के नरसंहार का आह्वान किया था। उन्होंने तर्क दिया कि सनातन धर्म जाति और धर्म के आधार पर सामाजिक विभाजन को कायम रखता है और मूल रूप से समानता और सामाजिक न्याय का विरोधी है।
उन्होंने कहा, 'मैं किसी भी मंच पर पेरियार और आंबेडकर के व्यापक लेखन को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूं, जिन्होंने सनातन धर्म और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गहन शोध किया।' उन्होंने कहा था, 'मैं अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हूं, चाहे वह कानून की अदालत में हो या लोगों की अदालत में। फर्जी खबरें फैलाना बंद करें।'