सीएए पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट को नोटिस जारी किया है। इस पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र ने समय मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन हफ़्ते के भीतर जवाब दाखिल करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च, 2024 को अधिसूचित सीएए यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाले आवेदनों पर मंगलवार को केंद्र को नोटिस तो जारी किया, लेकिन उनके संचालन पर रोक लगाने वाला कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा है कि केंद्र के पास अपना जवाब दाखिल करने के लिए 2 अप्रैल तक का समय है। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को 8 अप्रैल तक अपना जवाब दाखिल करना होगा। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि पीठ 9 अप्रैल को मामले की सुनवाई करेगी।
सीएए को चुनौती देने वाली 236 याचिकाएँ और इसके नियमों को चुनौती देने वाली 20 याचिकाएँ दायर की गई हैं। इसी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया, 'सीएए किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनता है।' सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें उन आवेदनों पर जवाब देने के लिए कुछ समय चाहिए।
मेहता ने यह साफ़ किया कि अधिनियम और नियम किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनते हैं। कोई नया व्यक्ति भी नहीं दिया जा रहा है और केवल 2014 से पहले आए लोगों पर ही विचार किया जा रहा है। अदालत ने आगाह किया कि अगर वह मामले की खूबियों पर बहस कर रहे हैं तो उसे याचिकाकर्ताओं को भी सुनना होगा।
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत से यह निर्देश देने का आग्रह किया कि मामले का अंतिम फैसला आने तक किसी को भी नागरिकता नहीं दी जाएगी या आदेश में कहा जाए कि नियमों के तहत दी गई कोई भी नागरिकता फैसले के अधीन होगी। उन्होंने कहा, 'मुद्दा यह है कि एक बार दी गई नागरिकता कानून के तहत समाप्त नहीं की जा सकती। अदालत के आदेशों के तहत, यह एक अलग मामला है।'
हालाँकि अदालत ने इस अनुरोध पर कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। सीजेआई ने कहा, 'उनके पास बुनियादी ढांचा भी नहीं है- जिला अधिकार प्राप्त समिति, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति, कुछ भी मौजूद नहीं है।'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया, 'यदि नागरिकता की प्रक्रिया शुरू होती है, तो इसे पलटा नहीं जा सकता है। यदि उन्होंने अब तक इंतजार किया है तो वे जुलाई तक या जब भी यह अदालत मामले का फैसला करेगी तब तक इंतजार कर सकते हैं। कोई बहुत जल्दबाज़ी नहीं है।'
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की ओर से पेश वकील निज़ाम पाशा ने यह भी बताया कि केंद्र के जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि यह अधिनियम पर रोक का विरोध करने के लिए एक प्रारंभिक हलफनामा है।
बलूचिस्तान के एक हिंदू आप्रवासी की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने प्रतिवाद किया, 'इस व्यक्ति को बलूचिस्तान में सताया गया था। यदि उन्हें नागरिकता दी जाती है, तो इसका आप पर क्या प्रभाव पड़ेगा?' जयसिंह ने जवाब दिया, 'उन्हें वोट देने का अधिकार मिलेगा!'