बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने घोषणा पत्र के मुद्दों पर तेज़ी से काम करना शुरू किया है। राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के एजेंडे को लागू करने की दिशा में काम कर रही है। लेकिन बड़ी बात यह है कि इस बार बीजेपी की गति तेज़ है जबकि अपने पहले कार्यकाल में उसने धीरे-धीरे इस दिशा में क़दम बढ़ाए थे।
2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के पीछे आरएसएस का ही समर्थन था। 2014 में सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव रैलियों में तीन तलाक़ का मुद्दा उठाना शुरू किया और अपने पहले कार्यकाल में इससे जुड़े विधेयक को क़ानून बनाने की भी पूरी कोशिश की। लेकिन राज्यसभा में गणित अपने पक्ष में न होने के कारण तब ऐसा नहीं हो सका।
2019 में दूसरी बार सरकार बनने के बाद बीजेपी ने पूरी ताक़त लगा दी है कि वह अब अपने सभी वायदों को पूरा करे। शुरुआत उसने की तीन तलाक़ पर क़ानून बनाने को लेकर, उसके बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के विधेयक को वह पास कराने में सफल रही। इस बीच वर्षों से अदालतों में अटके पड़े अयोध्या विवाद का फ़ैसला भी आ गया और बीजेपी समर्थकों ने इसे यह कहकर प्रचारित किया कि यह मोदी-शाह के नेतृत्व का ही परिणाम है।
निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मसला हो या फिर राम मंदिर निर्माण का, यह आरएसएस के एजेंडे में हमेशा प्राथमिकता से शामिल रहा है।
इस बीच, एनआरसी को लेकर देश भर में ख़ासा शोर हुआ। बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह देश भर की चुनावी रैलियों में घूम-घूमकर इस बात का दावा करते हैं कि 2024 से पहले मोदी सरकार पूरे देश में एनआरसी को लागू करेगी। लेकिन बीजेपी की मुश्किलें तब बढ़ गईं जब असम में एनआरसी से बाहर रहे 19 लाख लोगों में से कई लाख हिंदुओं के भी नाम शामिल थे। हिंदुओं के देश से बाहर होने पर बीजेपी को जवाब देना मुश्किल हो जाता, इसलिए आरएसएस ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह इन हिंदुओं को भारत में रखने के लिए क़ानून लेकर आए। नागरिकता संशोधन विधेयक उसी की कड़ी है और इसके तहत मोदी सरकार एनआरसी से बाहर रहे हिंदुओं को राहत दे सकती है।
राज्यसभा में ‘ताक़त’ बढ़ाने पर काम
2019 में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में इतनी सीटें मिलीं कि अब वह लोकसभा में किसी भी विधेयक को केवल अपने दम पर ही पास करा सकती है। लेकिन राज्यसभा में उसकी गणित कमजोर थी। इसलिए दूसरी बार सरकार बनने के बाद दूसरी पार्टियों के राज्यसभा सांसदों को ‘तोड़ने’ की योजना पर काम शुरू हुआ।
जून में सबसे पहले तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के 4 राज्यसभा सांसद बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद झटका समाजवादी पार्टी को लगा और उसके एक के बाद एक तीन सांसद उसका साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। इन सांसदों के नाम सुरेंद्र नागर, संजय सेठ और नीरज शेखर हैं।
गाँधी परिवार के क़रीबी रहे संजय सिंह राज्यसभा से इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में चले गए और राज्यसभा सांसद भुबनेश्वर कलिता भी बीजेपी में शामिल हो गए। ऐसे ही कई नाम और हैं जो बीजेपी में शामिल होते गए और मई तक राज्यसभा में जिस बीजेपी के पास 71 सांसद थे वह वर्तमान में 83 के आंकड़े तक पहुंच गई। और इस योजना पर बीजेपी का काम आगे भी जारी रहेगा, इसमें कोई शक नहीं है।
बीजेपी के दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद से अब तक का कार्यकाल देखें तो यह माना जा रहा है कि वह आरएसएस के ‘हिंदू राष्ट्र’ के एजेंडे को और मजबूती से और तेज़ी से आगे बढ़ाएगी। इस क्रम में वह अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से उत्पीड़ित हिंदुओं, सिखों और कुछ अन्य धर्मों के लोगों को को शरण देने की बात कहकर इस एजेंडे पर आगे बढ़ रही है।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भले ही यह कहें कि हिंदुत्व मुसलमानों के बिना अधूरा है लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक से एनआरसी में आए हिंदुओं को ही राहत देने की बात उन्होंने क्यों कही है, इसका सही जवाब देना उनके लिए बेहद मुश्किल है।
देश के बंटवारे के बाद भारत को धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र घोषित किया गया था और हमारे संविधान के मुताबिक़, यहां किसी के भी साथ धर्म आधारित कोई भेदभाव नहीं होगा। लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर बीजेपी की मंशा पर विपक्षी दल लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं।
आरएसएस के जानकार बताते हैं कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी आरएसएस के नेताओं ने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया क्योंकि वे लोकतांत्रिक भारत नहीं चाहते थे और भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आज़ादी के कई सालों बाद तक तिरंगे को नहीं अपनाया था और वे भगवा झंडा को ही लहराते हैं। आज़ादी के लगभग 67 साल बाद (2014 में) जब बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिला तो आरएसएस ने ‘हिंदू राष्ट्र’ की इस दिशा में धीरे-धीरे क़दम बढ़ाए और इस बार फिर से बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद वह तेज़ क़दमों से अपने ‘लक्ष्य’ की ओर बढ़ रहा है।