बिहार चुनाव से पहले 2015 में 'आरक्षण नीति की समीक्षा' की बात कहकर हलचल मचाने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अब आरक्षण की पैरवी करते दिख रहे हैं। भागवत ने बुधवार को कहा है कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक समाज में भेदभाव मौजूद है। उन्होंने साफ़-साफ़ कहा कि आरएसएस संविधान में दिए गए आरक्षण का पूरी तरह से समर्थन करता है। लेकिन क्या आरएसएस प्रमुख की राय आरक्षण पर हमेशा इसी तरह से साफ़-साफ़ रही है? यदि ऐसा है तो उनके बयानों पर अक्सर विवाद क्यों होता रहा है?
आरक्षण पर भागवत की कैसी-कैसी राय रही है, यह जानने से पहले यह जान लें कि उन्होंने अब क्या कहा है। महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'हमने अपने ही समाज के साथियों को सामाजिक व्यवस्था में पीछे रखा। हमने उनकी परवाह नहीं की और यह 2000 वर्षों तक जारी रहा। जब तक उनको समानता पर नहीं लाया जाता, तब तक कुछ विशेष उपाय करने होंगे। आरक्षण उनमें से एक है। इसलिए, आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक ऐसा भेदभाव न हो। आरएसएस संविधान में दिए गए आरक्षण को पूरा समर्थन देता है।'
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार भागवत ने कहा, 'अगर समाज के कुछ वर्गों को 2000 वर्षों तक भेदभाव का सामना करना पड़ा, तो हम (जिन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा) अगले 200 वर्षों तक कुछ परेशानी क्यों स्वीकार नहीं कर सकते।' उन्होंने तर्क दिया कि जब तक इन समुदायों को समान अवसर नहीं दिए जाते, तब तक आरक्षण जैसे विशेष उपाय ज़रूरी हैं।
वैसे, आरक्षण पर मोहन भागवत का यह कोई पहला बयान नहीं है। इससे पहले 2019 में भी उनका बयान आया था। तब आरएसएस से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के दीक्षांत समारोह कार्यक्रम में भागवत ने कहा था कि ‘आरक्षण के मुद्दे पर सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में बातचीत की जानी चाहिए।’ यानी उन्होंने आरक्षण पर बहस की वकालत कर दी थी।
उन्होंने 2019 में कहा था, 'जो लोग आरक्षण के ख़िलाफ़ हैं, उन्हें इसके समर्थकों के बारे में सोचना चाहिए और जो लोग इसका समर्थन करते हैं, उन्हें इसके विरोधियों के बारे में सोचना चाहिए।' संघ प्रमुख ने कहा था कि आरक्षण के मुद्दे पर काफ़ी क्रिया-प्रतिक्रिया होती है, जबकि समाज के अलग-अलग वर्गों के बीच समरसता होनी चाहिए।
भागवत ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी आरक्षण के मुद्दे को उठाया था। जिसे बाद में विपक्ष ने उछाला और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।
तब बिहार चुनाव से कुछ हफ्ते पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संगठन के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर और पांचजन्य को दिए एक साक्षात्कार में आरक्षण नीति की 'सामाजिक समीक्षा' का आह्वान कर दिया था। विपक्ष ने इसको खूब मुद्दा बनाया और आरोप लगाया था कि आरएसएस और बीजेपी आरक्षण को ख़त्म करना चाहते हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने संघ प्रमुख के बयान के जरिए सियासी माहौल को पूरी तरह बदल दिया था। लालू यादव अपनी हर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख पर सीधा निशाना साधते हुए कहते थे कि अगर किसी में हिम्मत है तो वह आरक्षण खत्म करके दिखाए। लालू के इन बयानों से आरजेडी और जेडीयू गठबंधन को जबरदस्त फायदा मिला था। बीजेपी का बिहार में माहौल बिगड़ गया और करारी हार का समाना करना पड़ा था।
हालाँकि, आरएसएस ने तब एक बयान जारी कर आरोपों को खारिज कर दिया था कि भागवत ने पिछड़े समुदायों के लिए सकारात्मक भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान किया था। भाजपा ने साफ़ किया था कि वह एससी, एसटी और अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण अधिकारों का 100 प्रतिशत सम्मान करती है। आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने एक बयान जारी कर कहा था, 'भागवत ने लोगों से हमारे संविधान के निर्माताओं के विचारों के अनुसार भारतीय समाज के सभी कमजोर वर्गों को आरक्षण का लाभ देने पर विचार करने का आह्वान किया था।'
इस बीच भागवत ने 2017 में राजस्थान में एक कार्यक्रम में भी आरक्षण पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था, ‘जाति के आधार पर समाज के एक वर्ग के साथ भेदभाव लंबे समय से किया जाता रहा है। संविधान में जाति-आधारित भेदभाव को दुरुस्त करने की व्यवस्था है और यह लंबे समय से चली आ रही है। हालाँकि, जब जब विवाद हुए हैं तब तब सफाई यही आई कि वह आरक्षण को ख़त्म करने की बात नहीं करते हैं और इसको जारी रखने के पक्ष में हैं।