मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता स्टैन स्वामी की मौत के बाद अब एक ऐसी रिपोर्ट आई है जिससे मोदी सरकार की कार्रवाई पर सवाल खड़े होते हैं। एक अमेरिकी फोरेंसिक एजेंसी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आदिवासियों के लिए काम करने वाले सुरेंद्र गाडलिंग के कम्प्यूटर में वायरस के माध्यम से उन दस्तावेजों को डाला गया था जिनके आधार पर उनको आरोपी बनाया गया। स्टैन स्वामी की तरह ही सुरेंद्र गाडलिंग को भी प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) ग्रुप से संबंध रखने के आरोप में सख़्त आतंकवादी विरोधी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया था।
सुरेंद्र गाडलिंग से पहले एक और सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन के कम्प्यूटर में भी इसी तरह के वायरस के द्वारा आपत्तिजनक दस्तावेज डाले जाने की रिपोर्ट सामने आई थी। विल्सन के वकील ने अमेरिका स्थित एक डिजिटल फोरेंसिक लेबोरेटरी से उनके लैपटॉप की जाँच करवाई तो साइबर हमले की बात का खुलासा हुआ। 'वाशिंगटन पोस्ट' ने इसी साल फ़रवरी में इस पर रिपोर्ट छापी थी और इसने लिखा था कि ख़बर छापने के पहले इसने तीन निष्पक्ष लोगों से जाँच करवाई और उस रिपोर्ट को सही पाया। रिपोर्ट में कहा गया है कि रोना विल्सन और सुरेंद्र गाडलिंग के कम्प्यूटरों पर एक ही हैकर ने हमला किया था।
हालाँकि अभी तक इसकी जाँच नहीं कराई गई है कि क्या स्टैन स्वामी के कम्प्यूटर के साथ भी ऐसा ही किया गया। लेकिन आशंका जताई जा रही है कि उनके साथ भी ऐसा ही किया गया होगा। रिपोर्ट में इसके कुछ सुराग मिले हैं।
स्टैन स्वामी, सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन उन 16 आरोपियों में से एक हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव के मामले में आरोपी बनाया गया है। ये सभी 16 आरोपी किसी न किसी रूप में ग़रीब आदिवासियों के लिए काम करते रहे हैं या थे।
हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे थे। इस दौरान हिंसा हो गई थी। इस हिंसा का आरोप एल्गार परिषद पर लगाया गया। ऐसा इसलिए कि 200वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले एल्गार परिषद की बैठक हुई थी। इसी हिंसा के मामले में कार्रवाई की गई और इस मामले में जुड़े होने को लेकर जन कवि वर वर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, वरनों गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को भी अभियुक्त बनाया गया है।
एनआईए ने इस मामले की जाँच शुरू की। इसने इधर-उधर से सबूत इकट्ठे करने शुरू किए। बाद में भीमा कोरेगाँव मामले के आरोपियों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश रची है।
इसी मामले में रोना विल्सन और सुरेंद्र गाडलिंग ने अमेरिकी फोरेंसिक एजेंसी आर्सेनल कंसल्टिंग से संपर्क किया था। आर्सेनल कंसल्टिंग ने बचाव पक्ष के वकीलों के अनुरोध पर दो कार्यकर्ताओं, सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन के कंप्यूटरों की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियों के साथ-साथ ईमेल खातों की जाँच की।
आर्सेनल ने कहा कि एक अज्ञात हमलावर ने दो कंप्यूटरों में घुसपैठ करने के लिए मालवेयर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया और छिपे हुए फ़ोल्डरों में दर्जनों फाइलों को घुसा दिया। जाँचकर्ताओं ने बाद में ऐसे दस्तावेजों का हवाला दिया जिसमें इन एक्टिविस्टों को प्रतिबंधित माओवादी समूह से जोड़ने वाले सबूत के रूप में पेश किया गया।
सुरेंद्र गाडलिंगफोटो साभार: ट्विटर/आदित्य राज कौल
आर्सेनल की जो ताज़ा रिपोर्ट है वह जून 2021 की है। 'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार इस रिपोर्ट में आर्सेनल ने नागपुर स्थित एक दलित अधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग की हार्ड ड्राइव का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपकरण में नेटवेयर वायरस डाले गए थे जो मालवेयर का एक प्रकार है और यह व्यावसायिक रूप से उपलब्ध है। ये नेटवेयर गाडलिंग के उपकरण में उनकी गिरफ़्तारी से पहले 2008 में ही डाले गए थे। अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि आर्सेनल की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे गाडलिंग और विल्सन के कंप्यूटरों पर हमलों में समान पद्धति का इस्तेमाल किया गया था। दोनों ही मामलों में, हमलावर ने समान सर्वर से संचार करने के लिए एक समान मालवेयर डाले और शुरुआत में ईमेल के माध्यम से दोनों को निशाना बनाया।
आर्सेनल ने कहा है, 'जुलाई 2017 में एक दिन हमलावर 20 मिनट के अंतराल पर दो कंप्यूटरों पर सक्रिय था। उस दौरान समान दस्तावेज़ - प्रतिबंधित माओवादी समूह के वित्त पोषण का एक कथित खाता - दोनों उपकरणों में डाला गया था। 'वाशिंगटन पोस्ट' के अनुसार, ग्रेसन ग्रुप ऑफ़ कंपनीज के अध्यक्ष और डिजिटल फोरेंसिक विशेषज्ञ केविन रिपा ने रिपोर्ट की एक प्रति की समीक्षा करने के बाद कहा कि इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि एक ही हमलावर ने दोनों कंप्यूटरों को निशाना बनाया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्लेषण से साफ़ तौर पर पता चलता है कि हैकर या उस वायरस के माध्यम से केवल गैडलिंग और विल्सन ही निशाने पर नहीं थे। फ़रवरी 2016 में गाडलिंग को भेजे गए एक मालवेयर से भरे ईमेल को 14 अन्य लोगों को भी भेजा गया था।
इन 14 लोगों में वे दो लोग शामिल थे जिन्हें बाद में आरोपी बनाया गया। इन दोनों में से स्टैन स्वामी थे जिनकी सोमवार को मौत हो गई। उन सभी लोगों में से जिन्होंने भी अटैचमेंट खोला होगा उसके कंप्यूटर की निगरानी और नियंत्रण करने में सक्षम मालवेयर इंस्टॉल किया गया होगा।
अब सवाल है कि क्या एनआईए ने अब तक उन इलेक्ट्रानिक सबूतों के अलावा कोई अन्य ठोस सबूत पेश किया है? अभी तक तो ऐसी कोई जानकारी साफ़ नहीं है। लेकिन इतना ज़रूर है कि जिन इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के भरोसे एनआईए आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है उसकी फोरेंसिक जाँच में धज्जियाँ उड़ती हुई दिख रही हैं। एनआईए की तरफ़ से इन जाँच खुलासों पर अब तक प्रतिक्रिया भी नहीं आई है।