किसान आंदोलन के स्थगित होने के बाद से यह सवाल चौतरफ़ा पूछा जा रहा है कि क्या किसान नेता अब जनता की सियासत में उतरेंगे। किसान आंदोलन में बड़ी भूमिका पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों की थी। और यहीं के किसान नेताओं की ओर पत्रकार चुनाव में उतरने का सवाल दाग देते हैं। इन दोनों राज्यों में चुनाव होने हैं।
किसान नेताओं के चुनाव लड़ने की चर्चा एक बार फिर तब तेज़ हुई जब राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी के एक पोस्टर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले किसान नेता राकेश टिकैत की फ़ोटो लगी हुई दिखी।
इसके बाद राकेश टिकैत ने इस मामले में एक बार फिर अपना रूख़ साफ किया। टिकैत ने एएनआई से कहा है हम लोग चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनके फ़ोटो का कोई भी राजनीतिक दल इस्तेमाल न करे।
राजेवाल को लेकर चर्चा
दूसरी चर्चा पंजाब में किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल को लेकर है कि क्या वे आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के चेहरे होंगे? हालांकि राजेवाल ने कहा है कि उन्हें किसी ने एप्रोच ही नहीं किया है और यह सिर्फ़ चर्चा ही है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ भी हो सकता है। एक और किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी की भी पंजाब में सक्रियता को लेकर सवाल उठते रहते हैं जबकि वह हरियाणा के रहने वाले हैं। वह पंजाब चुनाव में उतर सकते हैं।
पंजाब में लगे थे राजेवाल के पोस्टर।
भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल का कहना है कि वे पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनका संगठन न तो चुनाव में भाग लेगा और न ही किसी राजनीतिक दल का समर्थन करेगा। एक और किसान संगठन लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसाइटी की भी राय दल्लेवाल से मिलती है।
पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष रुलदू सिंह मनसा ने कहा है कि उन्होंने इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं किया है लेकिन वे बहुमत की राय के साथ जाएंगे। जबकि कुछ किसान संगठनों के नेताओं ने कहा है कि वे इस बारे में फ़ैसला लेने के लिए जल्द ही बैठक करेंगे।
बीकेयू उगराहां और किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) ने भी कहा है कि वे किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करेंगे।
हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ कहा है कि उनका कोई भी सदस्य चुनावी राजनीति में नहीं उतरेगा। लेकिन फिर भी अगर ऐसा हो जाए तो देखना होगा कि क्या इससे मोर्चा में किसी तरह की टूट होगी।