प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर हिंसा पर संसद में बयान देंगे, इसके जल्द आसार नहीं नज़र आ रहे हैं। विपक्षी दलों की इस मांग के बीच ही राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि वह पीएम मोदी को सदन में रहने का निर्देश नहीं दे सकते और न ही देंगे क्योंकि किसी भी अन्य सांसद की तरह प्रधानमंत्री का यह विशेषाधिकार है। इसको लेकर विपक्ष ने वाकआउट कर दिया। उधर लोकसभा में भी इसी मुद्दे को लेकर लगातार हंगामा होता रहा और सदन को कई बार स्थगित करना पड़ा। दिल्ली में सेवा को नियंत्रित करने वाला विधेयक भी पास नहीं हो सका जिसे मंगलवार को पेश किया गया था।
लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के वाकआउट के बाद सदन चला। मणिपुर मुद्दे पर चर्चा की मांग को लेकर सभापति ने कहा कि उन्हें नियम 267 के तहत 58 नोटिस मिले हैं, जो मणिपुर में हिंसा और अशांति पर अध्यक्ष की सहमति से किसी मुद्दे पर चर्चा की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि ये नोटिस स्वीकार नहीं किए गए क्योंकि उन्होंने पहले ही 20 जुलाई को नियम 167 के तहत इस मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा स्वीकार कर ली थी।
विपक्ष के लगातार नारे लगाने और प्रधानमंत्री की उपस्थिति की मांग करने पर सभापति ने कहा, 'मैंने साफ़ तौर पर उचित संवैधानिक आधार और मिसाल पर बहुत दृढ़ता से संकेत दिया था कि इस आसन से प्रधानमंत्री की उपस्थिति के लिए यदि मैं कोई निर्देश देता हूँ तो मैं अपनी शपथ का उल्लंघन करूँगा। ऐसा कभी नहीं किया गया...। यदि प्रधानमंत्री आना चाहते हैं, तो बाकी सभी की तरह, यह उनका विशेषाधिकार है। इस कुर्सी से इस प्रकृति का एक निर्देश, जो कभी जारी नहीं किया गया है, जारी नहीं किया जाएगा।'
कांग्रेस का हमला
इधर, लोकसभा के बार-बार स्थगित किए जाने बीच कांग्रेस ने सरकार को सदन नहीं चलने देने का ज़िम्मेदार ठहराया है। सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, '...नापाक मंसूबे ये हैं कि सदन को अपना खिलौना समझकर जो मर्जी वो करते रहो क्योंकि सत्ता उनके हाथ में है। ...एक नया नज़ारा पेश करते हुए सत्तारुढ़ पार्टी खुद सदन को ठप्प करती है। मतलब यह सरकार प्रायोजित स्थगन है।'
बीजेपी ने अपने लोकसभा सांसदों को सरकार के रुख और कुछ विधायी कार्यों का समर्थन करने के लिए गुरुवार को पूरे दिन उपस्थित रहने के लिए तीन-लाइन का व्हिप जारी किया है।