राहुल गाँधी के इस्तीफ़े से परेशान कांग्रेस के नेता अब प्रियंका में पार्टी का भविष्य देख रहे हैं। कुछ बड़े नेता अब इस कोशिश में जुटे हैं कि अगर राहुल अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं तो फिर प्रियंका उनकी जगह लें और अध्यक्ष बनें। 10 जनपथ के बेहद क़रीबी और भरोसेमंद सूत्र अब यहाँ तक दावा करने लगे हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच इस बात को लेकर सहमति भी बन चुकी है। उनके पक्ष में माहौल बनाने के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कुछ और दिनों के लिए टाली जा सकती है।
‘सत्य हिंदी’ ने आपको कई बार बताया कि कांग्रेस में नेहरू-गाँधी परिवार से अलग किसी और नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। जनार्दन द्विवेदी और डॉ. कर्ण सिंह समेत कई वरिष्ठ नेता कार्यसमिति की बैठक बुलाकर नए अध्यक्ष का चुनाव करने की माँग कर चुके हैं। लेकिन किसी न किसी बहाने कार्यसमिति की बैठक टाली जा रही है। पहले यह बैठक 10 जुलाई को प्रस्तावित थी। इसके बाद इसे 13 जुलाई तक टाला गया और फिर 18 जुलाई की तारीख़ भी दी गयी। फिर बताया गया कि 22 जुलाई को कार्यसमिति की बैठक बुलाए जाने पर फ़ैसला होगा। लेकिन अब इसे भी टाल दिया गया। पार्टी ने इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित के आकस्मिक निधन को इसे टालने की वजह बताया जा रहा है।
बता दें कि पिछले हफ़्ते ‘सत्य हिंदी’ ने बताया था कि कांग्रेस में 10 जनपथ के क़रीबी नेताओं का एक गुट प्रियंका गाँधी को अगला पार्टी अध्यक्ष बनाने की क़वायद में जुटा हुआ है। पार्टी के कुछ दरबारी नेता प्रियंका में इंदिरा गाँधी का अक्स देख रहे हैं। यहाँ तक कि अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज भी यह बात कह चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि प्रियंका के पक्ष में माहौल को और पुख़्ता करने के मक़सद से ही उन्हें उत्तर प्रदेश में 'अति सक्रिय' किया गया है।
सोनभद्र में प्रियंका के एक दिन के धरना-प्रदर्शन के बाद उनकी छवि को इंदिरा गाँधी के समकक्ष खड़ा किया जा रहा है और उनकी यात्रा की इंदिरा गाँधी की बेलछी यात्रा से तुलना की जा रही है। यह माना जाता है कि बेलछी यात्रा की वजह से ही 1977 की करारी हार के बाद कांग्रेस में जनता का खोया विश्वास फिर लौटा था।
वरिष्ठ नेताओं ने की वकालत
दस जनपथ के क़रीबी माने जाने वाले नेताओं में पार्टी के नए अध्यक्ष के लिए प्रियंका गाँधी का नाम आगे बढ़ाने की होड़ सी मच गई है। रविवार को कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे नटवर सिंह ने प्रियंका को पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने की पुरजोर वकालत की। उन्होंने कहा कि प्रियंका गाँधी में पार्टी को आगे ले जाने की क्षमता है। पार्टी को उनकी इस क्षमता का इस्तेमाल करना चाहिए। हालाँकि नटवर सिंह अब कांग्रेस में नहीं हैं। साल 2005 में ‘तेल के बदले अनाज’ कार्यक्रम में उनके बेटे का नाम घोटाले में आने के बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। लेकिन नटवर सिंह हमेशा दस जनपथ के साथ अपनी वफ़ादारी निभाते रहे हैं। प्रियंका और राहुल को वह अपने बच्चों की तरह ही मानते रहे हैं। इस नाते इस बयान की ख़ासी अहमियत है।इससे पहले पार्टी के पूर्व सचिव और पार्टी के मुखपत्र कांग्रेस संदेश के प्रभारी रहे अनिल शास्त्री ने भी प्रियंका गाँधी को पार्टी का अगला अध्यक्ष बनाने की खुलकर वकालत की थी। उनसे पहले यूपीए सरकार में मंत्री रहे श्रीप्रकाश जायसवाल ने प्रियंका को पार्टी का अगला अध्यक्ष बनाने की वकालत की थी। एक प्रमुख न्यूज़ एजेंसी के साथ-साथ कई अख़बारों को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि प्रियंका में पार्टी को नेतृत्व देने की क्षमता है और उनके नेतृत्व पर तमाम कांग्रेसजनों को भरोसा है। लिहाजा उन्हें आगे बढ़कर कांग्रेस की कमान संभाल लेनी चाहिए।
ये नेता दावा करते नहीं थकते कि सोनभद्र जिले में आदिवासियों के नरसंहार के मसले पर प्रियंका ने यूपी सरकार को घेर कर यह संकेत दे दिया है कि वह संसद में पार्टी की ताक़त बढ़ाने के लिए सड़क पर संघर्ष करने के लिए तैयार हैं।
प्रियंका के सड़क पर उतरकर संघर्ष करने से योगी सरकार को बैकफ़ुट पर आना पड़ा। प्रियंका की इस अति सक्रियता की वजह से योगी सरकार को डैमेज कंट्रोल की क़वायद करनी पड़ी। वहीं, सपा-बसपा भी प्रियंका के तेवरों से हैरान हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल गाँधी के एकदम से निष्क्रिय हो जाने के बाद प्रियंका की यह अति सक्रियता कांग्रेस कार्यकर्ताओं के टूटे हुए हौसले के लिए क्या संजीवनी साबित होगी
लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रियंका ख़ुद ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं दूसरा सवाल - क्या राहुल प्रियंका के नाम पर तैयार होंगे राहुल कह चुके हैं कि कांग्रेस को नेहरू-गाँधी परिवार से बाहर नया अध्यक्ष खोजना चाहिये। तीसरा सवाल, क्या सोनिया गाँधी भी प्रियंका के नाम पर राज़ी होंगी सोनिया इस बारे क्या सोचती हैं, यह अभी साफ नहीं है। क़ांग्रेस फ़िलहाल मँझधार में फँसी है। पार्टी लगातार नीचे जा रही है। उसे जल्द फ़ैसला करना चाहिये। कहीं ऐसा न हो कि वह पछताने लायक भी न बचे।