राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिला सुरक्षा पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि लंबित मामले न्यायपालिका के लिए बड़ी चुनौती हैं। उन्होंने त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया, खासकर बलात्कार के मामलों में।
राष्ट्रपति जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा, 'यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में साधन-सम्पन्न लोग अपराध करने के बाद भी निर्भीक और स्वच्छंद घूमते रहते हैं। जो लोग उनके अपराधों से पीड़ित होते हैं, वे डरे-सहमे रहते हैं, मानो उन्हीं बेचारों ने कोई अपराध कर दिया हो।'
राष्ट्रपति ने कहा, 'जब बलात्कार जैसे मामलों में अदालती फ़ैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं, तो आम आदमी को लगता है कि न्याय प्रक्रिया में संवेदनशीलता की कमी है।'
राष्ट्रपति की यह टिप्पणी महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर पूरे देश में व्याप्त आक्रोश के बीच आई है। कोलकाता के एक अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बाद देश भर में ग़ुस्सा है। इसके साथ ही पिछले कुछ दिनों से लगातार दुष्कर्म के एक से बढ़कर एक संगीन मामले यूपी, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, असम, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से सामने आए हैं। मलयालम और तमिल फिल्म इंडस्ट्री में भी अब MeToo अभियान में यौन उत्पीड़न और बलात्कार के एक दर्जन से अधिक मामले आए हैं। इन घटनाओं के बाद फिर से देश भर में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा तेज़ हो गई है।
बहरहाल, राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि गांवों में लोग न्यायपालिका को ईश्वर तुल्य मानते हैं क्योंकि उन्हें वहां न्याय मिलता है। उन्होंने कहा, 'एक कहावत है - भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। लेकिन देरी कितनी लंबी है? यह कितनी लंबी हो सकती है? हमें इस बारे में सोचने की जरूरत है।'
उन्होंने कहा, 'जब तक किसी को न्याय मिलेगा, तब तक उनकी मुस्कान गायब हो चुकी होगी, उनका जीवन समाप्त हो चुका होगा। हमें इस पर गहराई से विचार करना चाहिए।'
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यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में संपन्न व्यक्ति अपराध करने के बाद भी खुलेआम घूमते रहते हैं, जबकि पीड़ित डर में रहते हैं। महिलाओं की स्थिति और भी बदतर है, क्योंकि समाज उनका साथ नहीं देता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
राष्ट्रपति ने महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या में वृद्धि पर खुशी जताई। इस कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल हुए।
जिला स्तरीय 6.7 प्रतिशत कोर्ट महिलाओं के अनुकूल: सीजेआई
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि जिला स्तर पर केवल 6.7 प्रतिशत न्यायालयों का बुनियादी ढांचा महिलाओं के अनुकूल है, इस तथ्य को बदलने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि न्यायालय समाज के सभी सदस्यों के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण मुहैया कराएँ।
सीजेआई ने कहा, 'हमें बिना किसी सवाल के इस तथ्य को बदलना चाहिए कि जिला स्तर पर हमारे न्यायालयों के बुनियादी ढांचे का केवल 6.7 प्रतिशत ही महिलाओं के अनुकूल है। क्या यह आज ऐसे देश में स्वीकार्य है, जहां कुछ राज्यों में भर्ती के बुनियादी स्तर पर 60 या 70 प्रतिशत से अधिक भर्तियां महिलाओं की हैं?
चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती संख्या के साथ, बार और बेंच में हमारे सहकर्मियों के प्रति हमारे मन में जो पूर्वाग्रह हैं, उनका सामना किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में संपन्न पहली राष्ट्रीय लोक अदालत में लगभग 1,000 मामलों का निपटारा पांच कार्य दिवसों के भीतर सौहार्दपूर्ण ढंग से किया गया।