पेगाससः कमेटी ने SC को बताया सरकार ने जांच में मदद नहीं की

01:14 pm Aug 25, 2022 | सत्य ब्यूरो

पेगासस के जरिए जासूसी के मामले में गुरुवार 25 अगस्त को कोई फैसला नहीं आया। लेकिन एक बात ये सामने आई की सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की जांच कमेटी को मदद नहीं कर रही है। अदालत ने कहा कि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।

एक खास बात ये भी है की सुप्रीम कोर्ट की दो जांच समितियों ने तीन रिपोर्ट अदालत को सौंपी है। लेकिन उनमें से सिर्फ एक ही रिपोर्ट सार्वजनिक करने की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है। यानी बाकी दो तकनीकी रिपोर्टों में क्या है, यह जनता कभी नहीं जान पाएगी। सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार के इस निर्देश से पेगासस पर शक अब और बढ़ जाएगा।

अदालत को सुप्रीम कोर्ट की जांच कमेटी ने बताया कि 29 फोन की जांच की गई और पांच फोन में मैलवेयर पाया गया, लेकिन इसमें पेगासस स्पाइवेयर था, इसका कोई निर्णायक सबूत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने गुरुवार को कहा कि समिति ने कहा है कि भारत सरकार सहयोग नहीं कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट राजनेताओं, एक्टिविस्टों और पत्रकारों के फोन की जासूसी करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर के कथित उपयोग पर गठित एक तकनीकी समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की जांच कर रहा है। मामले को चार हफ्ते के लिए टाल दिया गया है। चीफ जस्टिस रमना ने कहा - 

जांच रिपोर्ट तीन भागों में पेश की गई है। इसमें तकनीकी समिति की दो रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आरवी रवींद्रन समिति की एक रिपोर्ट शामिल है। रिपोर्ट का सिर्फ एक हिस्सा सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाएगा। हम अपनी वेबसाइट पर सिफारिशों के साथ जस्टिस रवींद्रन की रिपोर्ट का तीसरा हिस्सा सार्वजनिक करेंगे। समिति ने पूरी रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित नहीं करने के लिए कहा है।


- चीफ जस्टिस एन वी रमना, 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले की सुनवाई करते हुए

कुछ याचिकाकर्ताओं ने रिपोर्ट के पहले दो भागों की एक प्रति मांगी। चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि अदालत मांग की जांच करेगी। हम पूरी रिपोर्ट देखे बिना और कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते।

जब एक वकील ने कहा कि वह अपने विचार व्यक्त करना चाहता है। तो चीफ जस्टिस रमना ने कहा-  

...कल के बाद, मैं भी अपनी राय व्यक्त करूंगा।


-चीफ जस्टिस एन.वी. रमना, सुप्रीम कोर्ट में 25 अगस्त को पेगासस मामले की सुनवाई के दौरान

सुप्रीम कोर्ट ने यह बात साफ नहीं की है कि आखिर तकनीकी जांच समिति ने अपनी दोनों रिपोर्टों को सार्वजनिक करने से क्यों मना किया है। इसे लेकर अब लोगों के मन में सवाल जरूर उठेंगे कि उनमें ऐसा क्या है जिसका सार्वजनिक किया जाना घातक होगा। बहरहाल, मामले को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया। चार सप्ताह बाद सुनवाई होने पर शायद बेंच भी बदल जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह जांच करने के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई थी की कि क्या सरकार ने पेगासस की खरीद कर उसका इस्तेमाल किया था। पेगासस के जरिए जासूसी की खबरों ने भारत सहित पूरी दुनिया में एक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था। आरोप है कि इजरायली फर्म एनएसओ ग्रुप के स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल दुनिया भर में कई लोगों को टारगेट करने के लिए किया गया था।

भारत में, समाचार पोर्टल "द वायर" ने दावा किया था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत 142 से अधिक लोगों को निशाना बनाया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब द्वारा कुछ सेलफोन के फोरेंसिक विश्लेषण ने सुरक्षा उल्लंघन की पुष्टि की थी।

इस सूची में कांग्रेस के राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, दो सेवारत केंद्रीय मंत्री, एक पूर्व चुनाव आयुक्त, सुप्रीम कोर्ट के दो रजिस्ट्रार, एक पूर्व जज का पुराना नंबर, एक पूर्व अटॉर्नी जनरल के करीबी सहयोगी और 40 पत्रकार शामिल हैं।

सरकार ने संसद में एक बयान दिया था कि कोई अवैध काम यानी जासूसी नहीं की गई है लेकिन इस मुद्दे पर किसी भी सदन में कोई चर्चा नहीं हुई है। विपक्षी दल बार-बार इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर चुके हैं। लेकिन सरकार ने पेगासस पर चर्चा ही नहीं होने दी।

केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताते हुए कुछ भी खुलासा करने से इनकार कर दिया था। अदालत में भी सरकार का यही रुख कायम रहा। केंद्र के बचाव को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा था कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का आह्वान करने से राज्य को फ्री पास नहीं मिल सकता है। कोर्ट ने केंद्र के इस प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया कि वह किसी तकनीकी समिति से निष्पक्ष जांच करा सकती है। अदालत ने कहा था कि एक स्वतंत्र समिति की जरूरत है। इसके बाद सरकार ने दो जांच कमेटी बनाई थी।