अलग-अलग कंपनियों की दो खुराक लेने यानी वैक्सीन के कॉकटेल लेना का जो मुद्दा काफ़ी समय से उठ रहा था उस पर अब एक शोध की रिपोर्ट सामने आई है। यह शोध ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी और फाइज़र की वैक्सीन के कॉकटेल पर हुआ है। दोनों टीकों की एक-एक खुराक को 4 हफ़्ते के अंतराल पर लेने से शरीर में काफ़ी ज़्यादा एंटी-बॉडी बनती है। इसका मतलब है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काफ़ी ज़्यादा बेहतर होती है। इस शोध की रिपोर्ट दो कारणों से उत्साहजनक है। एक, इसके बेहतर परिणाम आए हैं और दूसरा, किसी वैक्सीन की कमी होने पर दूसरी वैक्सीन की खुराक भी लगाई जा सकती है।
जिस क्रम में लोगों को टीके मिले, उसके परिणाम भी प्रभावित हुए। फाइज़र के बाद एस्ट्राज़ेनेका की अपेक्षा एस्ट्राज़ेनेका के बाद फाइजर के टीके लगाने से काफ़ी ज़्यादा एंटीबॉडी और टी-कोशिकाएँ बनीं। कोरोना वायरल जैसे संक्रमण से लड़ने में कारगर होती हैं।
हालाँकि, यह शोध सिर्फ़ एस्ट्राज़ेनेका और फाइज़र की वैक्सीन पर ही हुआ है और दूसरी कंपनियों की वैक्सीन पर नहीं। यह शोध ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने की है। इस शोध की रिपोर्ट विज्ञान की प्रसिद्ध पत्रिका लांसेट में प्रकाशित हुई है।
यदि इस शोध के परिणाम के आधार पर इन दोनों वैक्सीन के कॉकटेल की मंजूरी भी मिलती है तो भारत में फ़िलहाल इसका लाभ नहीं उठाया जा सकता है। ऐसा इसलिए कि फ़ाइज़र की वैक्सीन को अभी तक भारत में मंजूरी नहीं मिली है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड के नाम से बना रहा है और इसको भारत में मंजूरी मिली हुई है। यानी जब तक फाइजर को मंजूरी नहीं मिलती है तब तक इसका कॉकटेल भारत में संभव नहीं है। हालाँकि क़रीब एक हफ़्ते पहले ही फाइज़र के सीईओ एल्बर्ट बाउर्ला ने कहा है कि फाइज़र को भारत में जल्द ही मंजूरी मिलने की उम्मीद है और बातचीत अंतिम चरण में है।
ऐसे में यदि फाइज़र को भी भारत में मंजूरी मिलती है तो इससे कई मामलों में भारत को फायदा होगा। सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि वैक्सीन की कमी की स्थिति में दूसरी खुराक लेने में देरी होगी तो दूसरी वैक्सीन ली जा सकेगी। शोध में भी इस बात का ज़िक्र है।
डॉक्टर और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी टीके की आपूर्ति बढ़ाने के विभिन्न तरीक़ों का विश्लेषण करते रहे हैं। कई देशों में पहली और दूसरी खुराक के बीच के अंतराल को बढ़ाकर भी वैक्सीन की कमी से निपटने का रास्ता ढूंढा जा रहा है।
कई निम्न और मध्यम आय वाले देश यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि टीके की कमी से कैसे निपटा जाए। ऐसे में खुराकों के कॉकटेल का तरीक़ा वैक्सीन की कमी से निपटने में मदद कर सकता है।
परीक्षण का नेतृत्व करने वाले ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर मैथ्यू स्नेप ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि यह परिस्थितियों के अनुसार वैक्सीन की खुराकों के इस्तेमाल में लचीलेपन का विकल्प देता है।
एस्ट्राज़ेनेका के टीके की खुराकों के बीच अंतराल फ़िलहाल ब्रिटेन में 12 सप्ताह है। कोविशील्ड के नाम से भारत में लगाए जाने वाली एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन की खुराकों का अंतराल फ़िलहाल 12-16 हफ़्ते है। यह दूसरी बार है भारत में जब कोविशील्ड की खुराक के अंतराल को बढ़ाया गया है। शुरुआत में यह अंतराल 4-6 हफ़्ते का था। मार्च के दूसरे पखवाड़े में अंतराल को बढ़ाकर 6-8 सप्ताह किया गया था। और फिर मई के मध्य में इस अंतराल को बढ़ाकर 12-16 हफ़्ते कर दिया गया। इस बढ़ोतरी की आलोचना यह कहकर की गई थी कि सरकार ने वैक्सीन की कमी से निपटने के लिए यह तरीक़ा अपनाया है। हालाँकि सरकार ने इन आलोचनाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वैज्ञानिक आधार पर इसे बढ़ाया गया है। बाद में तो इस अंतराल को सिफ़ारिश करने वाले वैज्ञानिकों के पैनल के कम से कम तीन वैज्ञानिकों ने कहा था कि उन्होंने वैक्सीन को बढ़ाने की सिफ़ारिश नहीं की थी।