पुलवामा हमला: आतंकियों को विस्फोटक कहां से मिले, एक साल बाद भी पता नहीं लगा सकी एनआईए

09:00 am Feb 14, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

पिछले साल आज के ही दिन यानी 14 फ़रवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 से ज़्यादा भारतीय जवान शहीद हो गये थे। आतंकवादियों ने योजना बनाकर इस हमले को अंजाम दिया था। हैरान करने वाली बात यह है कि हमले के एक साल बाद भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अब तक यह पता नहीं कर पाई है कि इस हमले के लिये विस्फ़ोटकों का इंतजाम कहां से किया गया। जवानों की सुरक्षा को लेकर ढेरों सवाल उठने के बाद केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि पुलवामा का हमला ख़ुफ़िया एजेंसियों की नाकामी नहीं था। 

अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ के मुताबिक़, एक अधिकारी ने कहा कि विस्फोटक को किसी शेल्फ से नहीं ख़रीदा जा सकता था क्योंकि सामान्य तौर पर यह सेना के सामानों से जुड़ी दुकानों में ही मिलता है। फ़ॉरेंसिक एक्सपर्ट का कहना है कि हमले में लगभग 25 किग्रा विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। सीआरपीएफ़ के आईजी ने पुलवामा हमले से पहले इस केंद्रीय बल के मुख्यालय को चिट्ठी लिख कर कहा था कि सीआरपीएफ़ के पास प्रशिक्षण की सुविधाएँ तक नहीं हैं लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।

इस हमले में आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के आतंकवादी ने विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी को सीआरपीएफ़ की एक बस से टकरा दिया था। यह विस्फोट इतना ज़ोरदार था कि सीआरपीएफ़ बस के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। यह बस सीआरपीएफ़ की 54वीं बटालियन की थी। पुलवामा के रहने वाले आतंकवादी आदिल अहमद डार ने इस घटना को अंजाम दिया था। सीआरपीएफ़ जवानों के काफ़िले में 70 बसें थीं। जवानों का यह काफ़िला जम्मू से श्रीनगर जा रहा था। काफ़िले में लगभग 2500 जवान थे। 

पुलवामा हमले के बाद सुरक्षा में हुई इस जबरदस्त चूक को लेकर सैकड़ों सवाल उठे थे। सवाल उठा था कि केंद्रीय पुलिस बल को बख़्तरबंद गाड़ियाँ यानी आर्म्ड व्हीकल क्यों नहीं मुहैया कराई गईं थीं। इतने बड़े काफ़िले के बीच जैश के आतंकवादी ने कैसे अपनी कार सीआरपीएफ़ की बस से टकरा दी

एनआई इस मामले में अब तक चार्जशीट भी दाख़िल नहीं कर सकी है क्योंकि हमले के साज़िशकर्ता भी अब जिंदा नहीं हैं। हमले के दो मुख्य साज़िशकर्ता मुदासिर अहमद ख़ान और सज़्जाद भट को पुलिस ने पिछले साल मार्च और जून में हुए एनकाउंटर में मार गिराया था। हमले के बाद जैश की ओर से एक वीडियो जारी कर घटना की जिम्मेदारी ली गई थी। आतंकवादी आदिल अहमद डार मुदासिर के संपर्क में था। फ़रवरी 2018 में सुजावां स्थित सेना के कैंप में हुए हमले में भी मुदासिर का हाथ था। 

एनआईए के मुताबिक़, पुलवामा हमले में इस्तेमाल की गई कार को पहली बार 2011 में बेचा गया था और इसके बाद भी इसे कई लोगों को बेचा गया। हमले से 10 दिन पहले यानी 4 फ़रवरी, 2019 को आतंकवादी सज्जाद भट ने यह कार ख़रीदी थी और मुदासिर ने विस्फ़ोटकों का इंतजाम किया था। सज्जाद भट भी जैश से जुड़ा था। 

‘द हिंदू’ के मुताबिक़, इस कार का इंजन ब्लाक भी नहीं मिल सका था। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि किसी भी संदिग्ध के जिंदा न होने के कारण इस साज़िश का ख़ुलासा नहीं हो सका। उन्होंने कहा, ‘हम यह नहीं जानते कि इसके लिये पैसा कहां से आया, कार का इंतजाम कैसे किया गया। इस कार को कौन चला रहा था और उसने कहां से आरडीएक्स व अन्य विस्फोटकों का इंतजाम किया।’ 

हमले के बाद भारत ने कहा था कि पाकिस्तान लगातार आतंकवादियों को शरण देता रहा है और इस हमले में उसका हाथ है और भारतीय वायुसेना की ओर से पाकिस्तान के बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी। जबकि पाकिस्तान ने पुलवामा हमले में उसका हाथ होने से इनकार किया था।