कुत्ते के मांस पर प्रतिबंध का नगा विद्रोही संगठन एनएससीएन ने किया विरोध

07:15 am Jul 28, 2020 | दिनकर कुमार - सत्य हिन्दी

नगा विद्रोही संगठन एनएससीएन (आई-एम) ने हाल ही में नगालैंड सरकार द्वारा राज्य में कुत्ते के मांस पर प्रतिबंध लगाने के आदेश का कड़ा विरोध जताया है। संगठन के सूचना और प्रचार मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति में कहा, ‘नगालैंड सरकार ने सिर्फ कुछ राजनीतिक हस्तियों को खुश करने के लिए कुत्ते के मांस पर प्रतिबंध लगाने जैसा अकल्पनीय कदम उठाया है।’‘

‘यह कल्पना करना हास्यास्पद बात होगी कि नगा लोगों की भोजन की आदत सिर्फ इसलिए बदल जाएगी क्योंकि मंत्रिमंडल ने कुत्ते के मांस पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया है,’ संगठन ने कहा है।

मामला क्या है

3 जुलाई को नगालैंड के मुख्य सचिव टेम्जेन टॉय ने ट्विटर पर राज्य सरकार की तरफ से कुत्तों के व्यावसायिक आयात और व्यापार पर प्रतिबंध लगाने, कुत्ते के बाज़ार पर प्रतिबंध लगाने और कुत्ते के मांस की बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा की। ट्वीट के अंत में उन्होंने मुख्यमंत्री नेफ़्यो रियो और मेनका गांधी, संसद सदस्य और पीपुल फॉर एनिमल्स (पीएफए) की संस्थापक को टैग किया।

4 जुलाई को जारी नगालैंड सरकार की अधिसूचना की सरकार के अनुसार इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 428 और 429 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 के तहत दंडित किया जाएगा। 

खाद्य सुरक्षा मानक

इन दो  अधिनियमों के अलावा सरकार ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) विनियमन, 2011 को भी विशेष रूप से उप-विनियमन 2.5.1 (ए) में शामिल किया है, जो उन जानवरों को परिभाषित करता है जो मानव उपभोग के लिए सुरक्षित हैं। अब कुत्ते के मांस को भारत में खाद्य सुरक्षा मानकों के बाहर भोजन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

यह कहते हुए कि यह पहली बार नहीं है कि नगालैंड सरकार ने किसी खाद्य पदार्थ पर प्रतिबंध लगाया है, एनएससीएन (आई-एम) ने कहा कि सरकार ने कथित रूप से हिंदुत्व के प्रभाव में गोमांस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की थी। ‘स्थानीय नगा लोगों की संस्कृति को ध्यान में रखे बिना कुत्ते के मांस पर प्रतिबंध लगाने का क्या मतलब है’ इसने पूछा है।

संगठन ने कहा कि पहले अपने लोगों को विश्वास में लिए बिना नगालैंड सरकार भारत की सरकार के सामने इस तरह रीढ़ विहीन होकर घुटने नहीं टेक सकती है। नस्लीय या जातीय रूप से नगा और भारतीय लोगों के बीच कोई समानता नहीं है।

क्या खाएं, क्या न खाएं

संगठन के अनुसार किसी की संस्कृति के तहत कुछ भी खाने के अधिकार पर केवल सत्ता में किसी के सनक और मर्जी को संतुष्ट करने के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए। यह कहते हुए कि नगा लोग किसी भी प्रकार के जानवरों के साथ क्रूरता के बारे में समान रूप से चिंतित हैं, संगठन ने कहा,

‘लेकिन हमें पशुओं के साथ क्रूरता के आधार पर कुत्ते के मांस को नहीं खाने के लिए मजबूर करना हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है। अन्य जानवरों या पक्षियों के बारे में क्या विचार है'


नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ़ नगालैंड

उनसे आगे कहा, 'क्या खाएं और क्या न खाएं, इसे तय करने या आदेश थोपने का किसी को हक नहीं मिला है। यह भोजन की पसंद की प्राकृतिक स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है।’

यह कहते हुए कि नगा लोग अपने सांस्कृतिक चरित्र में घुसपैठ को स्वीकार नहीं करेंगे, एनएससीएन (आईएम) ने कहा कि नगा संस्कृति से जो चीजें जुड़ी हुई हैं उनको नहीं छीनना चाहिए, न ही इसके साथ अवांछित चीजों को जोड़ा जाना चाहिए।

पहले भी हुआ था विरोध

ग़ौरतलब है कि जब नगालैंड सरकार द्वारा कुत्तों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के साथ-साथ पके हुए और बिना पके हुए दोनों प्रकार के कुत्तों के मांस की बिक्री पर भी रोक लगा दी गई, उसी समय से राज्य में बहस छिड़ गई कि राज्य सरकार द्वारा पारित आदेश लोकतांत्रिक है या नहीं।

एक गुट ने इसे स्वागत योग्य कदम के रूप में देखा तो दूसरे गुट ने राज्य सरकार के फ़ैसले की आलोचना की और कहा कि इस आदेश के ज़रिये बड़े पैमाने पर लोगों की आहार प्रथा का उल्लंघन किया गया है।

एक तरफ पालतू जीव प्रेमियों ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि नगा कुत्ते के मांस के बिना भी जीवित रह सकते हैं, दूसरी तरफ अन्य लोगों ने इसे ‘निरर्थक’ कदम के रूप में देखा जिससे नगालैंड शराब निषेध अधिनियम की विफलता की तरह कुत्ते के मांस का व्यापार भी ग़ैर क़ानूनी रूप से जारी रहेगा।

नगा आहार शैली

कई नगा जनजातियों के लिए कुत्ते का मांस आहार शैली का अंग है। कुछ नगा विद्वान प्रतिबंध को पारंपरिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं।

दूसरी ओर, कुछ लोगों ने महसूस किया कि सरकार द्वारा व्यापक विचार-विमर्श के बिना जल्दबाजी में निर्णय लिया गया है।एक सामाजिक कार्यकर्ता गुगु हरालू ने कहा, ‘इस तरह का प्रतिबंध लागू करने से पहले भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लोगों को बहस करने और चर्चा करने का अवसर मिलना चाहिए था। मैं एक पालतू जीव प्रेमी हूं और इसलिए मैं कुत्ते का मांस नहीं खाता हूं। हालांकि सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से व्यापक परामर्श करना चाहिए था। लेकिन उसने जल्दबाजी में फैसला लिया।’

कई लोगों ने सोशल मीडिया पर यह कहते हुए भी चिंता जताई कि ‘जानवरों के साथ क्रूरता बुरी है। जगह-जगह नैतिक मानदंड होने चाहिए, लेकिन बाहरी लोग जिस तरह स्थानीय और जनजातीय लोगों के आहार का निर्धारण करना चाहते हैं और जबरदस्ती करना चाहते हैं, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।’