जिस समय मोदी सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा है कि सितंबर तक नगा शांति समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाएगा, उसी समय नगा विद्रोही नेता टी. मुइवा के दिए गए ताज़ा बयान से लगता नहीं कि समझौते को अंतिम रूप दे पाना मुमकिन हो पाएगा।
नगालैंड के राज्यपाल और लंबे समय से चली आ रही नगा वार्ता के वार्ताकार आर. एन. रवि के साथ चल रहे विवाद की पृष्ठभूमि में एनएससीएन (आई-एम) ने शांति समझौते पर अपना रुख सख़्त कर लिया है।
मोदी सरकार के साथ 2015 के नगा फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद पहली बार एनएससीएन (आई-एम) के प्रमुख टी. मुइवा ने कहा कि नगा ध्वज और संविधान की मांग कायम रहेगी
एनएससीएन (आई-एम) सख़्त
इस समझौते में असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के सभी नगा बहुल क्षेत्रों के एकीकरण की शर्त बनी रहेगी। इस बयान से शांति प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है क्योंकि सरकार पहले अलग संविधान की माँग ठुकरा चुकी है और कह चुकी है कि असम, अरुणाचल और मणिपुर को ग्रेटर नागालिम के लिए विभाजित नहीं किया जाएगा। मोदी सरकार, जिसने फ्रेमवर्क समझौते को एक बड़ी सफलता के रूप में चिह्नित किया था, ने इस वर्ष सितंबर तक एनएससीएन (आई-एम) के साथ शांति समझौते की उम्मीद की थी।मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि एनएससीएन (आई-एम) ने यह भी स्पष्ट किया है कि रवि, जिन्होंने सरकार की ओर से 2015 के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें आगे की बातचीत के लिए स्वीकार्य नहीं है। हालांकि एनएससीएन के नेता इस समय दिल्ली में हैं, और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों के साथ अनौपचारिक बातचीत कर रहे हैं, सूत्रों ने कहा कि रवि गुरुवार को पहुंचे लेकिन नगालैंड वापस चले गए।
'स्वतंत्रता दिवस’
मुइवा ने 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ नगालिम’ के 74 वें 'स्वतंत्रता दिवस’ के अवसर पर नगालैंड के लोगों को संबोधित करते हुए ये दावे किए हैं। मुइवा के लिए भाषण को सार्वजनिक करना भी असामान्य बात मानी जा रही है। उन्होंने 'स्वतंत्रता दिवस' पर पहले भी भाषण दिए हैं, लेकिन वे कभी सार्वजनिक नहीं किए गए।मुइवा ने कहा कि 2015 के समझौते पर 'सह-अस्तित्व और साझा संप्रभुता' के सिद्धांत के आधार पर हस्ताक्षर किए गए थे। ‘फ्रेमवर्क समझौते के माध्यम से भारत सरकार नगाओं की संप्रभुता को मान्यता देती है।
क्या है समझौते में
समझौते में यह भी कहा गया है , 'संप्रभु सत्ता साझा करने वाली दो संस्थाओं का समावेशी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व'। 'समावेशी' द्वारा इसका मतलब है कि विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों और राजनीतिक समूहों में सभी नगाओं को समझौते में शामिल किया जाना है। क़ानूनी विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि समझौते में 'सह-अस्तित्व' और 'साझा संप्रभुता' शब्द दो संस्थाओं पर लागू होते हैं, एक पर नहीं। मुइवा ने कहा,
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‘नगा भारत के साथ सह-अस्तित्व की शक्तियों को साझा करेंगे ... लेकिन वे भारत में विलय नहीं करेंगे।’
टी. मुइवा, प्रमुख, एनएससी (आई-एम)
'भारत में विलय नहीं'
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नगा सरकार से झंडा और संविधान नहीं मांग रहे थे - दूसरी तरफ, ये हमेशा से उनके पास थे। टी मुइवा ने कहा,
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‘हमारा अपना झंडा और संविधान है। झंडा और संविधान हमारी मान्यता प्राप्त संप्रभु इकाई और नगा राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। नगाओं को अपना झंडा और संविधान रखना चाहिए।’
टी. मुइवा, प्रमुख, एनएससी (आई-एम)
मुइवा ने दावा किया कि रवि ने भी उनसे ऐसा ही वादा किया था। ‘31 अक्टूबर, 2019 को वार्ताकार श्री आर एन रवि ने कहा था कि हम आपके ध्वज और संविधान का सम्मान करते हैं। हम यह नहीं कहते कि भारत सरकार ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है, लेकिन हमें उन्हें जल्द से जल्द अंतिम रूप देना चाहिए'। मुइवा ने कहा, ‘हमने ध्वज और संविधान के बिना कोई सम्मानजनक समाधान नहीं देखते हुए अपना रुख दोहराया था।’
ग्रेटर नागालिम
नगा शांति वार्ता के जरिये औपनिवेशिक शासन के समय से चले आ रहे विवादों को निपटाने की कोशिश हो रही है। नगा एकल जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है, जिसमें कई जनजातियाँ शामिल हैं, जो नगालैंड और उसके पड़ोस में रहते हैं।
नगा समूहों की एक प्रमुख माँग ‘ग्रेटर नगालिम’ की रही है जो न केवल नगालैंड राज्य बल्कि पड़ोसी राज्यों के हिस्सों और यहां तक कि म्यांमार के राज्यों को भी कवर कर सके।
1826 में अंग्रेजों ने असम पर अधिकार कर लिया था, जिसमें बाद में उन्होंने नगा हिल्स ज़िला बनाया और अपनी सीमाओं का विस्तार किया। ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ नगा राष्ट्रवाद का जोर आज़ादी के बाद भी जारी रहा और नगालैंड राज्य बनने के बाद भी। इस तरह अनसुलझे मुद्दों ने दशकों के विद्रोह को जन्म दिया, जिसने नागरिकों सहित हजारों लोगों की जान ले ली।
1918 का नगा क्लब
नगा प्रतिरोध का सबसे पुराना संकेत नगा क्लब के गठन के साथ 1918 का है। 1929 में क्लब ने साइमन कमीशन को ‘प्राचीन काल की तरह स्व-शासन निर्धारित करने के लिए खुद को अकेला छोड़ने के लिए’ कहा था।
1946 में ए. जेड. फिज़ो ने नगा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) का गठन किया, जिसने 14 अगस्त, 1947 को नगा स्वतंत्रता की घोषणा की और फिर 1951 में एक जनमत संग्रह कराने का दावा किया, जिसमें भारी बहुमत ने एक स्वतंत्र राज्य का समर्थन किया।
नगा विद्रोह
1950 के दशक के प्रारंभ में एनएनसी ने हथियार उठा लिए और भूमिगत हो गया। एनएनसी 1975 में विभाजित हो गई। अलग हुआ समूह एनएससीएन कहलाया, जो बाद के वर्षों में फिर विभाजित हो गया। 1988 में एनएससीएन(आई-एम) और एनएससीएन (खापलांग) अस्तित्व में आए।2015 से चल रहे वार्ता समझौते से पहले नगा समूहों और केंद्र के बीच दो अन्य समझौते हुए। 1975 में शिलांग में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें एनएनसी नेतृत्व ने हथियार छोड़ने पर सहमति व्यक्त की। इसाक चिशी स्वू, थुइंगलेंग मुइवा और एस. एस. खापलांग सहित कई एनएनसी नेताओं ने समझौते को इनकार कर दिया। 1988 में एक और विभाजन हुआ, जिसमें खापलांग ने एनएससीएन (के) का गठन किया, जबकि इसाक और मुइवा ने एनएससीएन (आई-एम) का नेतृत्व किया।
युद्ध विराम
एनएससीएन (आईएम) ने 1997 में सरकार के साथ एक युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए। प्रमुख समझौता यह था कि एनएससीएन (आईएम) के ख़िलाफ़ कोई उग्रवाद विरोधी आक्रमण नहीं होगा, जो बदले में भारतीय सेना पर हमला नहीं करेगा।
अगस्त 2015 में केंद्र ने एनएससीएन (आईएम) के साथ एक समझौता पर हस्ताक्षर किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत में सबसे पुराने उग्रवाद’ को निपटाने के लिए एक ‘ऐतिहासिक समझौता’ बताया था।
इसने चल रही शांति वार्ता के लिए मंच तैयार किया। 2017 में नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स के बैनर के तहत छह अन्य नगा सशस्त्र संगठन बातचीत में शामिल हुए।
सरकार ने अभी तक फ्रेमवर्क समझौते का सार्वजनिक रूप से विवरण नहीं दिया है। समझौते के बाद सरकार ने एक प्रेस बयान में कहा था: ‘भारत सरकार ने नगाओं के अद्वितीय इतिहास, संस्कृति और स्थिति और उनकी भावनाओं और आकांक्षाओं को मान्यता दी है।'
एनएससीएन (आईएम) ने भारतीय राजनीतिक प्रणाली और शासन को समझा और उसकी सराहना की है। रवि और एनएससीएन (आई-एम) के बीच संबंध खराब हो गए हैं क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री नेफ़्यू रियो को हाल ही में राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति की आलोचना करते हुए पत्र लिखा था। उन्होने विशेष रूप से ‘बड़े पैमाने पर जबरन वसूली और हिंसा’ का उल्लेख किया। रवि ने कहा था कि ‘सशस्त्र गिरोह’ समानांतर सरकारें चला रहे थे।