'म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के?' वैसे तो आमिर ख़ान की फ़िल्म दंगल का यह डायलॉग यह बताने के लिए है कि बेटियां किसी भी मामले में बेटों से पीछे नहीं हैं, लेकिन महिलाओं की आबादी पर भी यह डायलॉग सटीक बैठता है। भारत में अब पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं की आबादी हो गई है। हर 1000 पुरुषों के मुक़ाबले 1020 महिला। पहली बार ऐसा हुआ है। यह आँकड़ा राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस के सैंपल सर्वे में सामने आया है।
एनएफएचएस के पांचवें दौर के इस सर्वे को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी किया गया। 2005-06 में आयोजित एनएफएचएस-3 के अनुसार, अनुपात बराबर था, 1000: 1000; 2015-16 में एनएफएचएस-4 में यह घटकर 991:1000 हो गया था।
यह उस देश में बदलाव की एक खुशनुमा तसवीर है जहाँ दुर्भाग्य से महिलाओं के साथ बलात्कार, उनके ख़िलाफ़ हिंसा की ख़बरें आती रहती हैं। भ्रूण हत्या, दहेज हत्या से लेकर ऑनर किलिंग के मामले आते रहे हैं। कई रिपोर्टें ऐसा इशारा करती हैं कि पितृसत्तात्मक समाज की वजह से महिलाएँ एक दायरे में रहने के लिए मजबूर हैं और कई जगहों पर तो महिलाओं के लिए रातें 'नाइट कर्फ्यू' जैसी होती हैं। क़ानूनन भले ही महिलाओं को संपत्ति का अधिकार है, लेकिन अधिकतर महिलाओं के साथ वास्तविकता में ऐसा होता नहीं दिखता है।
इस तरह के हालात के बीच पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं की आबादी होने की सैंपल सर्वे की रिपोर्ट एक उम्मीद की किरण की तरह है। ऐसा इसलिए कि जब महिलाओं की आबादी पुरुषों की अपेक्षा काफ़ी कम हो गई थी तो यह समाज पर एक धब्बा से कम नहीं था। तभी तो नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने 1990 में 'लापता महिला' शब्द गढ़ा था। उस वक़्त भारत में प्रति 1,000 पुरुषों पर 927 महिलाएँ थीं।
ताज़ा सैंपल सर्वे दर्शाता है कि स्थिति में सुधार हो रहा है। 'द हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहली बार है, जब किसी एनएफएचएस या जनगणना में लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक विकास शील ने कहा, 'लिंगानुपात और जन्म के समय का बेहतर लिंगानुपात भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है; भले ही वास्तविक तसवीर जनगणना से सामने आएगी, हम अभी के परिणामों को देखते हुए कह सकते हैं कि महिला सशक्तिकरण के हमारे उपायों ने हमें सही दिशा में आगे बढ़ाया है।'
हालाँकि पिछले पाँच वर्षों में पैदा हुए बच्चों के लिए जन्म के समय लिंग अनुपात अभी भी 929 है, जो बताता है कि बेटे की चाहत अभी भी लोगों में है और यह समस्या बड़ी है।
हालाँकि, लिंगानुपात अभी सुधरा हुआ दिख रहा है, लेकिन भ्रूण की लिंग जाँच की कुप्रथा और कन्या भ्रूण हत्या की समस्या अभी भी है। भारत में महिलाओं की आबादी पुरुषों की तुलना में अधिक होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि महिलाओं की जीवन प्रत्याशा दर पुरुषों से ज़्यादा है यानी वे पुरुषों से ज़्यादा जीवित रहती हैं।
भारत की जनगणना वेबसाइट के आँकड़ों के अनुसार, 2010-14 में जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा दर पुरुषों के लिए 66.4 वर्ष और महिलाओं के लिए 69.6 वर्ष थी।
बता दें कि सरकार ने बुधवार को जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य को लेकर पूरे देश और 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एनएफएचएस के दूसरे चरण के आँकड़े जारी किए हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि इस चरण में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली के एनसीटी, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं। 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एनएफएचएस-5 के पहले व दूसरे चरण के निष्कर्ष दिसंबर, 2020 में जारी किए गए थे।