फिर से लिखा जाएगा इतिहास, हार की जगह प्रतिरोध पर होंगे अध्याय

02:56 pm Oct 14, 2021 | सत्य ब्यूरो

बीजेपी पर शिक्षा के भगवाकरण करने की कोशिशों के आरोप तो पहले भी लगते रहे हैं, लेकिन सरकार और उसकी एजंसियों ने इस मामले में अब ज़मीनी स्तर पर महत्वपूर्ण कदम उठाना शुरू किया है।इसकी शुरुआत इतिहास के साथ छेड़छाड़ से होगी, जिसे सरकार के लोग 'नए तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में फिर से इतिहास लिखना' कह रहे हैं।

'नए तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में फिर से इतिहास लिखने' की यह थ्योरी नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविंद प्रसाद शर्मा की है। उनका कहना है कि इतिहास की किताबों में हार पर बहुत कुछ लिखा गया है, लिहाज़ा, अब हार के बजाय राजाओं के संघर्ष और उनके लड़ने की क्षमता पर अध्याय इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।वे इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं कि महाराणा प्रताप ने जिस बहादुरी से लड़ाई लड़ी, उसके बारे में बताया जाना चाहिए।

पाठ्यक्रम में बदलाव

दरअसल, केंद्र सरकार ने के. कस्तूरीरंगन की अगुआई में एक कमेटी का गठन किया, जो राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ़्रेमवर्क में संशोधन करेगी। यह स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए सुझाव देगी।

इस कमेटी का गठन 21 सितंबर को हुआ और इसकी पहली बैठक बीते मंगलवार को हुई। गोविंद प्रसाद शर्मा इस कमेटी के सदस्य हैं। इसमें स्कूली शिक्षा की सचिव अनिता करवल भी मौजूद थीं। इस बैठक में नई शिक्षा नीति पर भी बातचीत हुई।

एनबीटी के अध्यक्ष शर्मा ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 

आज जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है, उसमें है कि हम यहाँ हार गए, हम वहाँ हार गए। पर हमें इस पर ज़ोर देना चाहिए कि विदेशी आक्रमणकारियों के ख़िलाफ़ इन राजाओं ने कितनी बहादुरी से लड़ाई लड़ी।


गोविंद प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट

नया नैरेटिव

उन्होंने कहा, "इतनी सारी लड़ाइयाँ इसलिए हुईं कि इन लोगों ने ज़ोरदार प्रतिरोध किया। उदाहरणस्वरूप, एक नैरेटिव गढ़ा गया है कि राणा प्रताप को अकबर ने हरा दिया, जबकि इन दोनों के बीच कभी आमने-सामने की लड़ाई हुई ही नहीं।"

शर्मा ने कहा, 

नए तथ्यों के आधार पर इतिहास फिर से लिखा जाना चाहिए, या नए तथ्यों को इतिहास में शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सामाजिक समरसता और राष्ट्र गौरव भी विकसित किया जाना चाहिए।


गोविंद प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट

भगवाकरण

शिक्षा के भगवाकरण की बात इसलिए भी उठती है कि शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिक्षा विंग विद्या भारती के अध्यक्ष रह चुके हैं। विद्या  भारती कई स्कूलें चलाती है।

शिक्षा में यह बदलाव कितना व्यापक इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि स्वयं शर्मा ने कहा है कि शुरू में 25 क्षेत्रों पर फोकस किया जाएगा। इसमें प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, प्राचीन विज्ञान और संस्कृति पर ज़ोर दिया जाएगा।

इसके साथ ही प्राचीन भारत के भौतिक शास्त्र यानी फ़ीजिक्स और वैदिक गणित को भी शामिल किया जाएगा।

आरएसएस का एजेंडा

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से ही भगवाकरण के आरोप लग रहे हैं। इसके ठोस कारण हैं। बीजेपी की सरकारों ने कई जगहों पर ऐसा किया है और अपने एजेंडे को शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ाने की कोशिशें की हैं।

उत्तर प्रदेश के दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने साल 2020 में पोस्ट ग्रैजुएट यानी एम. ए. के स्तर पर नाथ संप्रदाय पढ़ाने का फ़ैसला किया।

यह एम. ए. में नियमित कोर्स के रूप में तो होगा ही, इसका सर्टिफिकेट कोर्स भी कराया जाएगा। नाथ संप्रदाय दर्शन शास्त्र, पर्यटन, सांस्कृतिक व धार्मिक अध्ययन के छात्रों को पढ़ाया जाएगा।

'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, विश्वविद्यालय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक शोध संस्थान भी स्थापित करने का फ़ैसला किया है। बता दें कि विश्वविद्यालय के तहत महायोगी गुरु गोरक्षनाथ शोधपीठ पहले से ही काम कर रहा है। इसे महायोगी गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीच्यूट फ़ॉर कल्चर एंड डेवलपमेंट स्टडीज़ के तहत रखा जाएगा।

नाथ संप्रदाय से जुड़े संस्थान के अलावा बौद्ध अध्ययन केंद्र, वैदिक अध्ययन, संस्कृति व धार्मिक अध्ययन केंद्र और भाषा अध्ययन केंद्र भी बनाए जाएंगे।

इसके पहले महाराष्ट्र की सरकार ने भी ऐसी कोशिश की है।

संघ का इतिहास

राष्ट्रसंत तुकदोजी महाराज राष्ट्रीय नागपुर विश्वविद्यालय ने साल 2019 में अपने छात्रों को आरएसएस का इतिहास पढाने का फ़ैसला किया।

इतिहास के पाठ्यक्रम के तीसरे हिस्से में ‘राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका’ को जोड़ा गया।

इसके पहले हिस्से में कांग्रेस पार्टी की स्थापना, राजनीति का स्वरूप, जवाहर लाल नेहरू का सामने आना और उनका विकास है तो दूसरे हिस्से में असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन शामिल किया गया है।

पाकिस्तान का उदाहरण

गोरखपुर और नागपुर के ये विश्वविद्यालय तो बी. ए. और एम. ए. स्तर पर ये काम करने की सोच रहे हैं। पर एनबीटी तो पूरे राष्ट्रीय स्तर पर ही नया इतिहास लिखने जा रहा है।

इसके दूरगामी नतीजे होंगे।

पर्यवेक्षकों ने इसकी तुलना पाकिस्तान से की है, जहाँ जनरल जिया उल हक़ के शासनकाल में इतिहास को फिर से लिखने की कवायद शुरू हुई। वहाँ के इतिहास में भारत, स्वतंत्रता आन्दोलन, कांग्रेस, गांधी वगैरह के बारे में तोड़- मरोड़ कर अध्याय लिखे गए। इसके साथ ही पाकिस्तान को इसलाम और अरब से जोड़ कर दिखाया गया।

उसका नतीजा सबके सामने है।