तीन आपराधिक कानून (भारतीय न्याय संहिता- BNS, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-BNSS और भारतीय साक्ष्य अधिनियम- BSA)) सोमवार 1 जुलाई से लागू हो रहे हैं। लेकिन अपराध के पुराने केसों में आईपीसी, सीआरपीसी लागू रहेगी। नए कानून गजट अधिसूचना लागू होने के बाद किए गए अपराधों में लागू होंगी। यानी हत्या के पुराने मामलों की सुनवाई आईपीसी की धारा 302 के तहत ही होगी लेकिन 1 जुलाई या उसके बाद हत्या का नया केस धारा 103 में दर्ज होगा। इसी तरह चोरी में 303 (1), हत्या के प्रयास में 309, जालसाजी में 420 की जगह 318, रेप की घटना में 376 की जगह 64, रंगदारी में 308, दहेज हत्या के लिए 80 धारा लगेगी।
प्रमुख बदलावों में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में नए अपराधों के लिए सजा कड़ी की गई है। इसमें शादी का झूठा वादा करने के मामले में 10 साल तक की जेल; नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग के आधार पर 'मॉब लिंचिंग' में अब उम्रकैद या मृत्युदंड; स्नैचिंग में 3 साल तक की जेल से लेकर आतंकवाद विरोधी, संगठित अपराधों को इसके दायरे में लाकर सजाएं कड़ी की गई हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत अब पुलिस हिरासत मौजूदा 15 दिन की सीमा से बढ़ाकर 90 दिन तक कर दी गई है। दरअसल इसी मुद्दें पर पूर्व जजों, सिविल सोसाइटी, मानवाधिकार संगठनों ने चिन्ता जताई थी।सामान्य दंडात्मक अपराधों के केस में अब पुलिस लंबे समय तक आरोपी को अपनी कैद में रख सकेगी। ऐसे में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
तीनों नए आपराधिक कानूनों से केंद्र सरकार किसी भी पक्ष को खुश नहीं कर पाई है। पिछले साल जब इस विधेयक को सरकार संसद में लाने वाली थी, उसी समय से इसका विरोध शुरू हो गया था। विपक्ष शासित राज्यों के दो मुख्यमंत्रियों पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और तमिलनाडु के एमके स्टालिन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इन्हें स्थगित करने की मांग की थी। संसद में भारी विरोध हुआ तो स्पीकर ओम बिड़ला ने विपक्ष के 100 से ज्यादा सांसदों को सदन से निलंबित कर इन्हें सरकार को पास कराने दिया। ओम बिड़ला पर यह दाग इतिहास में दर्ज हो चुका है।
कर्नाटक और तमिलनाडु ने कानूनों के हिन्दी शीर्षकों पर भी आपत्ति जताई थी। दोनों ने संविधान के अनुच्छेद 348 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि संसद में पेश किए जाने वाले कानून अंग्रेजी में होने चाहिए। लेकिन मोदी सरकार ने तीनों कानूनों का हिन्दीकरण कर दिया है।
कर्नाटक ने कुछ प्रमुख प्रावधानों पर भी चिंता जताई है - एक पुलिस अधिकारी को एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच के लिए 14 दिनों की मंजूरी मिलना और आईपीसी की धारा 377 को पूरी तरह से बाहर करना, जो अब किसी पुरुष के यौन उत्पीड़न के मामलों में लागू की जाती है।
नए कानूनों की तैयारी के सिलसिले में, उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 जून को अग्रिम जमानत प्रावधानों में बदलाव के लिए एक अध्यादेश लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसमें गैंगस्टर (रोकथाम) अधिनियम, 1986; यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970; यूपी सार्वजनिक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम, 2020; यूपी डकैती प्रभावित क्षेत्र अधिनियम, 1983; यूपी विशेष सुरक्षा बल अधिनियम, 2020; और यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 में बदलाव शामिल है। इन्हें नए आपराधिक कानूनों से तालमेल बिठाने के लिए बदला गया है।
गृह मंत्रालय ने सभी केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक गजट अधिसूचना भी जारी की, जिसमें तीनों कानूनों के तहत राज्यों को दी गई शक्तियां केंद्रशासित क्षेत्र के उपराज्यपालों को भी दी गई हैं।