दक्षिणपंथी समूह क्या बुद्धिजीवियों से इतने डरे हुए हैं कि उन्हें मारने के लिए पिस्तौल चलाने, बम बनाने और हत्या करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं? डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में कम से कम पुलिस को दिया गया आरोपी का बयान तो यही कहता है। एक मीडिया रिपोर्ट में पुलिस के हवाले से लिखा गया है कि दाभोलकर की हत्या के आरोपी शरद कलस्कर ने पुलिस बयान में कबूल किया है कि उसने पहले बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ली और फिर हत्या को अंजाम दिया। उसने बम बनाने का प्रशिक्षण भी लिया था। 'एनडीटीवी' ने उसके बयान पर रिपोर्ट पब्लिश की है। बता दें कि सीबीआई ने दाभोलकर की हत्या के मामले में दो शूटरों, शरद कलस्कर और सचिन अंदुरे को गिरफ़्तार किया था।
पुलिस को दिया गया शरद कलस्कर का बयान ख़तरनाक स्थिति की ओर इशारा करता है, क्योंकि ऐसी हत्याएँ काफ़ी पहले से चली आ रही हैं। पिछले कुछ सालों में चार बड़े बुद्धिजीवियों की हत्या की गई। गौरी लंकेश का मामला सबसे बाद का है। उनसे पहले एम. एम. कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और नरेंद्र डाभोलकर को भी मौत के घाट उतार दिया गया। उनका क़सूर बस इतना था कि वे हिंदू धर्म की उन मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलते थे जिन्हें वे दक़ियानूसी मानते थे। यह बात उनके क़ातिलों को पसंद नहीं आईं लिहाज़ा उनको जान से मार दिया गया। ये चारों लोग समाज में प्रतिष्ठित थे। उनका बड़ा नाम था पर उन्हें हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ बताया गया। ये सारे लोग हिंदू धर्म की दक़ियानूसी मान्यताओं के ख़िलाफ़ सुधार की बात करते थे। यानी यह तो साफ़ है कि दक्षिणपंथी ताक़तें तर्क को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और ऐसी किसी तर्कवादी सोच के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर साज़िश रची जाती है। कलस्कर के पुलिस को दिये बयान में भी यही बात दिखती है।
हत्या का 'क्रैश कोर्स'
'एनडीटीवी' ने पुलिस को दिए शरद कलस्कर के इस बयान को प्रकाशित किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शरद ने कबूल किया है उससे कुछ दक्षिणपंथी सदस्यों ने संपर्क किया था और उन्होंने विचारधारा, हथियार चलाने और बम बनाने के बारे में ‘क्रैश कोर्स’ यानी ज़ल्दबाज़ी में ट्रेनिंग दी थी। उससे कहा गया था कि उसे हत्या करनी होगी। कथित तौर पर मुख्य साजिशकर्ता वीरेंद्र तावड़े ने कलस्कर से कहा था, ‘हमें कुछ बुरे लोगों को ख़त्म करना है।’ बता दें कि वीरेंद्र तावड़े को सीबीआई गिरफ़्तार कर चुकी है और उसके ख़िलाफ़ आरोप-पत्र भी दाख़िल किया गया है।
ट्रेनिंग में हत्या के लिए किस तरह तैयार किया जाता है और कैसी नफ़रत भरी जाती है, वह भी कलस्कर के बयान से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ‘एनडीटीवी’ की रिपोर्ट के अनुसार कलस्कर ने कर्नाटक पुलिस के सामने यह भी कबूल किया है कि उसने 67 वर्षीय दाभोलकर को दो बार गोली मारी, एक बार पीछे से सिर में और जब वह गिर गए तो एक बार दाहिनी आँख के ऊपर। 14 पेज के कबूलनामे में शरद कलस्कर ने दो अन्य हत्याओं, सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या से जुड़े होने की बात स्वीकार भी की है।
पिस्टल बनाने को लेकर हुई थी कलस्कर की गिरफ़्तारी
बता दें कि महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते ने पालघर ज़िले के नालसोपारा में एक पिस्टल निर्माण इकाई में छापे के सिलसिले में शरद कलस्कर को गिरफ़्तार किया था। पूछताछ के दौरान उन्हें कुछ ऐसी जानकारी मिली जिससे गौरी लंकेश जैसे बुद्धिजीवियों की हत्याओं और दक्षिणपंथी समूहों के बीच तार जुड़ते थे। यह जानकारी बाद में कर्नाटक पुलिस के साथ साझा की गई। इसके बाद कलस्कर को पिछले साल अक्टूबर में गौरी लंकेश की हत्या के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था। इस मामले में पूछताछ के दौरान कलस्कर ने दाभोलकर की हत्या की बात का ज़िक्र किया था।
गौरी लंकेश की हत्या की साज़िश
रिपोर्ट के अनुसार कलस्कर ने कबूल किया है कि, ‘अगस्त 2016 में, बेलगाम में एक बैठक हुई थी, जिसमें हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ काम करने वाले लोगों के नाम माँगे गए थे। उस बैठक में गौरी लंकेश का नाम सामने आया और उनकी हत्या का फ़ैसला लिया गया। एक साल बाद, अगस्त 2017 में एक और बैठक हुई जहाँ योजनाओं को अंतिम रूप दिया गया और जिम्मेदारियाँ सौंपी गईं। पत्रकार गौरी लंकेश की एक महीने बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। रिपोर्ट के अनुसार शरद कलस्कर ने यह भी कबूल किया कि सेवानिवृत्त बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बी.जी. कोलसे पाटिल को निशाना बनाने की योजना थी।
आख़िर कब रुकेगा हत्याओं का सिलसिला?
एक के बाद एक बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या का सिलसिला आख़िर कब रुकेगा? जिस तरह के मामले सामने आते रहे हैं उससे तो लगता है कि दक्षिणपंथी ताक़तों ने अपने पैर जमा लिए हैं और लगातार ऐसी हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। अब तक चार बुद्धिजीवियों की हत्या की जा चुकी है। दाभोलकर की हत्या अगस्त 2013 में पुणे में तब की गई थी जब वह सुबह की सैर पर निकले थे। उसके बाद फ़रवरी 2015 में गोविंद पानसरे और उसी साल अगस्त में कोल्हापुर में एम.एम. कलबुर्गी की हत्या हुई थी। गौरी लंकेश की सितंबर 2017 में बेंगलुरु में उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसी हत्याओं को रोकने के लिए दक्षिणपंथी ताक़तों की साज़िशों का भंडाफोड़ होगा और उनपर कार्रवाई होगी?