नगालैंड फ़ायरिंग के बाद स्थानीय कबीलों के संगठन कोन्याक यूनियन ने केंद्र सरकार के सामने पाँच माँगे रखी हैं। इसमें सबसे ज़्यादा ज़ोर पूरी वारदात की जाँच और दोषियों को सज़ा दिलाने पर है।
यह माँग ऐसे समय आई है जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में एक बयान में निर्दोष नागरिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की है और उसे ग़लत पहचान का नतीजा बताया है, पर उन्होंने दोषियों को सज़ा देने के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है।
नगालैंडं के जिस ओटिंग ज़िले में यह वारदात हुई, वहां कोन्याक कबीले का बोलबाला है। उनके संगठन कोन्याक यूनियन ने केंद्र सरकार के सामने पाँच माँगें रखते हुए उनके तुरन्त समाधान पर ज़ोर दिया है।
पाँच माँगें
कोन्याक यूनियन ने माँग की है कि नगालैंड फ़ायरिंग के पूरे मामले की जाँच के लिए किसी केंद्रीय एजेन्सी के तहत एक जाँच कमेटी बने।इसने यह भी कहा है कि सरकार ने जाँच के लिए जो स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया है, उसके कम से कम दो सदस्य नगा सिविल सोसाइटी के हों।नगालैंड के कबीलों के इस संगठन ने पूरे पूर्वोत्तर से आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल प्रोविज़न एक्ट (अफ़्सपा) हटाने की माँग की है।
इसने यह भी कहा है कि असम राइफ़ल्स को नगालैंड से वापस बुला लिया जाए।
कोन्याक यूनियन ने माँग की है कि इस सुरक्षा बल के जो लोग इस ऑपरेशन से जुड़े थे, उन्हें कड़ी सज़ा दी जाए।
इसके साथ ही एक्शन टेकन रिपोर्ट, यानी क्या कार्रवाई की गई, इसकी रिपोर्ट 30 दिनों के अंदर सार्वजनिक की जाए।
अफ़्सपा हटाने की माँग का समर्थन
बता दें कि अफ़्सपा को हटाने की माँग पहले से होती रही है और अब इसने ज़ोर पकड़ लिया है। नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ़ियो रियो और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरैड संगमा ने भी पूर्वोत्तर से अफ़्सपा हटाने की माँग की है।इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने भी अफ़्सपा को रद्द करने की माँग की है।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायटर्ड जज जस्टिस मदन लोकुर ने सोमवार को कहा कि अफ़्सपा का मतलब यह कतई नहीं होता कि सुरक्षा बल के लोग किसी को मार डालें।
उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले की जाँच पुलिस या केंद्रीय एजेन्सी को नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे सच्चाई छिपाने और मामले को रफदफ़ा करने की कोशिश कर सकते हैं।
जस्टिस मदन लोकुर ने यह भी कहा है कि इस मामले की जाँच के लिए स्वतंत्र व निष्पक्ष कमेटी बनाई जानी चाहिए जिसमें सिविस सोसाइटी के लोग हों।