मोदी की प्रचंड जीत भारत की आत्मा के लिए बुरी है, ‘द गार्जियन’ ने कहा

05:55 pm May 27, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

ब्रिटेन से छपने वाले अख़बार ‘द गार्जियन’ ने अपने संपादकीय में मोदी की जीत पर चिंता जताते हुए इसे भारत की आत्मा के लिए बुरा बताया है। अख़बार ने लिखा है कि इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव अभी अभी एक आदमी ने जीता है, नरेंद्र मोदी। मोदी 1971 के बाद से अकेले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने किसी  पार्टी को लगातार दो बार पूर्ण बहुमत दिलाया है। कांग्रेस पार्टी की अपील भ्रष्टाचार के धुंध में गुम होने के बाद साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार संसद के नीचले सदन में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया था। ख़राब अर्थव्यवस्था के बावजूद मोदी पाँच साल में संसद में अपना बहुमत बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। यह भारत और दुनिया के लिए बुरी ख़बर है।   

‘द गार्जियन’ का तर्क है कि बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक शाखा है, यह ऐसा आंदोलन है जो भारत को बदल कर बदतर बना रहा है। इसमें कोई अचरज नहीं क्योंकि बीजेपी हिन्दू समाज के सवर्णों के सामाजिक वचर्स्व की वकालत करता है, कॉरपोरेट समर्थक आर्थिक विकास की बात करता है, सांस्कृतिक उदारवाद, बढ़े हुए पुरुष प्रभुत्व और राज्य की मशीनरी पर उनकी पकड़ के लिए जाना जाता है। मोदी की जीत से भारत की आत्मा अंधेरी राजनीति में गुम हो जाएगी, इससे 19.50 करोड़ भारतीय मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक समझे जाते हैं।

अख़बार ने यह भी कहा है कि मोदी का दाहिना हाथ समझे जाने वाले अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान मुसलमानों को ‘दीमक’ कह कर अपमानित किया। इसके अलावा मुसलमानों को कई जगहों पर पीट-पीट कर मार दिया गया और इसके लिए किसी को सज़ा मिलती नहीं दिखी।

जनसंख्या के बावजूद मुसलमान राजनीतिक रूप से अनाथ हैं, राजनीतिक वर्ग ने बहुमत हिन्दुओं का समर्थन गँवाने के डर से त्याग दिया है।

चुनाव के पहले संसद में 24 मुसलमान सदस्य थे, यह कुल आबादी का 4 प्रतिशत है। यह तादाद 1952 के बाद सबसे कम है। यह संख्या और कम हो सकती है।

‘द गार्जियन’ के मुताबिक़, विभाजनकारी व्यक्तित्व मोदी निश्चित रूप से एक करिश्माई चुनाव प्रचारक हैं। धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा जैसी लोगों को बाँटने वाली चीजों को दुरुस्त करने के बाजय वे उन्हें बाहर फेंक देने में यकीन करते हैं। वह सार्वजनिक जीवन में होने के बावजूद आम जनता के बीच कुलीन समाज के लोगों की आलोचना करते हैं। मोदी विभाजनकारी तथ्यों और झूठे दावों का प्रयोग बखूबी करते हैं। हमें शायद इस पर आश्चर्य नहीं करना चाहिए था।

साल 2017 के चुनाव से यह साफ़ हो गया कि एक मजबूत स्वेच्छाचारी नेता को समर्थन मिलने की संभावना सबसे ज़्यादा 55 प्रतिशत भारत में है, यह व्लादिमीर पुतिन के रूस समेत किसी भी देश से अधिक है।

दुनिया को एक और लोकलुभावन बातें करने वाले राष्ट्रवादी नेता की ज़रूरत नहीं है। मोदी ने आज़ाद भारत की सबसे क़ीमती चीज को चुनौती दी है और वह है बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली।

बीजेपी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई दूसरा राजनीतिक दल उससे प्रतिस्पर्द्धा न करे क्योंकि उनकी निगाह में प्रतिस्पर्द्धा करने वाले विरोधी नहीं, दुश्मन हैं।


‘मैजोरिटैरियन स्टेट’

मोदी ने इस साल की शुरुआत में कश्मीर मुद्दे पर बेहद लापरवाही के साथ पाकिस्तान के साथ बर्ताव करना शुरू किया। वह दोनों देशों को युद्ध की कगार पर ले गए और उन्होंने विपक्ष पर कट्टरपंथी इसलाम के साथ साँठगाँठ करने का आरोप निहायत ही हास्यास्पद तरीके से लगाया।

‘द गार्जियन’ यह भी लिखता है कि कांग्रेस पार्टी और इसे चलाने वाले नेहरू-गाँधी खानदान को वाकई इस पर गंभीरता से सोचना होगा कि वे मोदी को कैसे हराएँ।

मोदी ने राजनीतिक दलों को पैसे मिलने की प्रक्रिया को पहले से कम पारदर्शी बना दिया, जिसके बाद बीजेपी को अज्ञात स्रोतों से 10.3 अरब रूपए मिले। जिन असमानताओं ने भारत की तस्वीर बिगाड़ रखी हैं, उन्हें कम करने के मामले में पार्टी सिर्फ़ ज़ुबान चलाती है, कुछ करती नहीं है। दूसरी ओर ओर भारत की पार्टी प्रणाली में मतभेद जाति और धर्म के आधार पर बने हुए हैं। यह व्यवसाय समर्थक और मुसलिम विरोधी राष्ट्रवाद वाली बीजेपी के अनुकूल है। सच तो यह है कि कांग्रेस यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम लेकर आई, हालाँकि वे इसे आम जनता तक ले कर जा नहीं सके। पहचान के प्रतीकों पर लड़ाई करने के बजाय इस पर ज़ोर देना चाहिए कि हर भारतीय को फ़ायदा पहुँचाने वाली राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा कैसे शुरू की जाए। इसके लिए भारत में ऐसे विपक्ष की ज़रूरत है जो ज़्यादा व्यावहारिक हो और देश के ग़रीबों के संपर्क में अधिक हो।