भुलावे में न रहें, मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से भी कह दिया- जाति जनगणना नहीं होगी

10:48 am Sep 24, 2021 | सत्य ब्यूरो

जाति जनगणना पर फिर से मोदी सरकार का रूख एकदम साफ़ हो गया है। वह इसके पक्ष में नहीं है। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दो टूक कह दिया है कि जाति जनगणना नहीं हो सकती है क्योंकि यह व्यावहारिक नहीं है। सरकार ने कहा है कि जनगणना के दायरे से एससी-एसटी के अलावा किसी भी अन्य जाति की जानकारी जारी नहीं करना एक समझदारी वाला नीतिगत निर्णय है। हालाँकि सरकार ने पहले भी ऐसा जवाब दिया था, लेकिन बाद में बीच-बीच में बीजेपी नेताओं ने ऐसे बयान दिये कि लगने लगा कि शायद दबाव में बीजेपी जाति जनगणना पर अपनी राय बदल ले! बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कह दिया था कि बीजेपी जाति जनगणना की विरोधी नहीं है। हाल ही में जाति जनगणना की मांग के लिए प्रधानमंत्री से मिलने वाले बिहार के एक प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी नेता भी शामिल थे।

लेकिन इस सबके बावजूद केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने 2021 की जनगणना में अन्य पिछड़ी जातियों की गणना अलग से नहीं करने का फ़ैसला किया है। इसने इसके पीछे यह भी कारण दिया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जातियों की गणना प्रशासनिक रूप से बेहद जटिल होगी और यह पूरी या सटीक जानकारी नहीं दे सकती है।

सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर यह जानकारी दी है। यह महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में दायर किया गया। राज्य सरकार ने इसके निर्देश देने की मांग की थी कि 2021 की गणना में जनगणना विभाग को पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बीसीसी) पर जानकारी एकत्र करने को कहा जाए। 

केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार की मांग का विरोध किया। इसने अदालत को बताया कि '1951 से जनगणना में जाति-वार गणना नहीं करने को नीति के रूप में अपनाया गया है और इस प्रकार एससी व एसटी के अलावा अन्य जातियों को 1951 से आज तक किसी भी जनगणना में शामिल नहीं किया गया है।'

केंद्र सरकार ने इसके लिए एक तर्क यह भी दिया कि जनगणना कराने की तैयारी अंतिम चरण में है और अब मानदंड में कोई बदलाव संभव नहीं है। इसने कहा है कि कोरोना महामारी के कारण पहले ही काफ़ी देरी हो चुकी है।

हलफ़नामे में कहा गया है कि इस देरी के बीच ओबीसी जाति की गणना करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से कोई भी निर्देश भ्रम पैदा करेगा और सरकार के नीतिगत फ़ैसले में हस्तक्षेप करने के समान होगा।

मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को ऐसा जवाब तब दिया है जब इस पर जाति जनगणना को लागू करने के लिए काफ़ी ज़्यादा दबाव है। यह दबाव कितना है यह इससे समझा जा सकता है कि बीजेपी के बड़े नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि बीजेपी जाति जनणगना के ख़िलाफ़ कभी नहीं रही है। उन्होंने तो अपने ट्वीट में जाति जनगणना को लेकर ऐतिहासिक घटनाक्रमों का भी ज़िक्र किया। और तो और यह भी साफ़ किया था कि 'जातीय जनगणना कराने में अनेक तकनीकि और व्यवहारिक कठिनाइयाँ हैं, फिर भी बीजेपी सैद्धांतिक रूप से इसके समर्थन में है।'

बिहार से आने वाले बीजेपी नेता ने यह भी कहा था, 'ब्रिटिश राज में 1931 की अंतिम बार जनगणना के समय बिहार, झारखंड और उड़ीसा एक थे। उस समय के बिहार की लगभग 1 करोड़ की आबादी में मात्र 22 जातियों की ही जनगणना की गई थी। अब 90 साल बाद आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और राजनीतिक परिस्तिथियों में बड़ा फर्क आ चुका है।'

सुशील मोदी का यह ट्वीट तब आया था जब कुछ घंटे बाद ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व विपक्षी नेता तेजस्वी यादव सहित एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मुलाक़ात करने वाला था। ख़ास बात यह भी थी कि उस प्रतिनिधिमंडल में ख़ुद बीजेपी के भी विधायक शामिल थे। 

वैसे, प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात को लेकर भी कम विवाद नहीं हुआ था। उस मुलाक़ात से पहले नीतीश कुमार ने कह दिया था कि जाति जनगणना पर प्रधानमंत्री मोदी उन्हें मिलने के लिए समय नहीं दे रहे हैं। तब इसका यह निष्कर्ष निकाला गया था कि बीजेपी जाति जनगणना के पक्ष में नहीं है। क्योंकि उससे क़रीब एक महीने पहले लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि भारत सरकार ने जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जाति आधारित आबादी की जनगणना नहीं करने के लिए नीति के रूप में तय किया है।

सरकार के इस बयान के बाद से विरोधी दलों के नेता जाति जनगणना के लिए दबाव बनाने लगे। इसके साथ ही जेडीयू और अपना दल जैसे बीजेपी के ही सहयोगी दल भी विरोध करने लगे और जाति जनगणना की मांग का समर्थन करने लगे। इस बीच बीजेपी के ही कई सांसदों ने खुलकर तो कुछ सांसदों ने दबी जुबान में जाति जनगणना की पैरवी की। तो सवाल है कि इतने दबाव के बाद भी बीजेपी जाति जनगणना पर अपनी राय बदलने को तैयार क्यों नहीं है? और क्या अब नीतीश कुमार की पार्टी और अनुप्रिया पटेल की पार्टी जैसे सहयोगी दल बीजेपी की इस दलील को आसानी से मान लेंगे?