तूफान मिचौंग और उसके बाद बाढ़ से तमिलनाडु में काफी तबाही हुई थी। इसी तरह कर्नाटक को सूखे का सामना करना पड़ा। राज्यों को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) से फंड पाने का अधिकार है। लेकिन केंद्र सरकार ने लंबे समय से इसे लटका रखा था और फंड जारी नहीं कर रही थी। दोनों राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।लेकिन अब मोदी सरकार ने इस घटनाक्रम के कुछ हफ्ते बाद "प्राकृतिक आपदा राहत सहायता" के नाम पर ₹3,730.32 करोड़ जारी करने का आदेश दिया है।
द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्रालय के एक आदेश में कहा गया है कि 24 अप्रैल को गृह मंत्रालय (एमएचए) की सिफारिश पर दोनों राज्य सरकारों को फंड जारी किया जा रहा है। आदेश में कहा गया है कि एमएचए ने 2023 में राज्य में सूखे को देखते हुए कर्नाटक के लिए ₹3,498.82 करोड़ की सहायता को मंजूरी दी थी, हालांकि एनडीआरएफ से जारी की जाने वाली कुल सहायता ₹3,454.22 करोड़ थी।
गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ केंद्र की मोदी सरकार का यह रुख नया नहीं है। फंड रोकना तो आम बात है। केंद्र द्वारा राज्यों में तैनात राज्यपाल वहां की गैर भाजपाई सरकारों को अक्सर परेशान करते पाए जाते हैं। तमिलनाडु और केरल के राज्यपालों की हरकतों के मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। दोनों राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यपालों को भाजपाई एजेंट तक करार दिया। पश्चिम बंगाल में जब मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राज्यपाल होते थे तो उस समय भी जबरदस्त रस्साकशी रही है। बंगाल की टीएमसी ने तो आरोप तक लगाया था कि धनखड़ की तरक्की का राज़ बंगाल में उनकी हरकतें थीं। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने तो केजरीवाल सरकार को घुटनों पर ला दिया है। इसी तरह कई अन्य राज्यों में भी राज्यपाल केंद्र के इशारे पर वहां की सरकारों को परेशान करते पाए जाते हैं।
द हिन्दू के मुताबिक दिसंबर 2023 में चक्रवात मिचौंग और बाद में दक्षिणी तमिलनाडु में बाढ़ से हुए नुकसान के लिए, गृह मंत्रालय ने क्रमशः ₹285.54 करोड़ और ₹397.13 करोड़ की मदद को मंजूरी दी। हालाँकि एनडीआरएफ के तहत दिया गया कुल फंड ₹115.49 करोड़ और ₹160.61 करोड़ था।
23 मार्च को, कर्नाटक सरकार ने सूखा राहत राशि जारी करने की मांग करते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था क्योंकि पांच महीने पहले मंत्रालय की टीम द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपने के बावजूद केंद्र ऐसा करने में नाकाम रहा था। इसी तरह इसी तरह, तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार को धन जारी करने का निर्देश देने की मांग करते हुए 3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
केंद्र सरकार के आदेश में 1 अप्रैल, 2023 तक राज्य के राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) खाते में उपलब्ध 50% धनराशि के रूप में ₹44.60 करोड़ (कर्नाटक के लिए) और ₹406.57 करोड़ (तमिलनाडु के लिए) का जिक्र किया गया था।
बता दें कि राज्य सरकारें एसडीआरएफ के जरिए ही पीड़ितों को फौरन राहत इसी के जरिए देती हैं। इसे प्राथमिक निधि भी कहा जाता है। केंद्र सामान्य श्रेणी के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एसडीआरएफ आवंटन का 75% और विशेष श्रेणी के राज्यों (पूर्वोत्तर राज्य, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर) के लिए 90% का अपना योगदान देता है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46 के अनुसार, "गंभीर प्रकृति की आपदा के मामले में एनडीआरएफ राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) की जगह ले लेता है, बशर्ते एसडीआरएफ में पर्याप्त धन उपलब्ध न हो।" राज्यों को फंड पाने के लिए उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा करना होता है, जिसके लंबित रहने पर भविष्य में कोई आवंटन नहीं किया जाता है।